मध्य प्रदेश

मध्यप्रदेश में भाजपा ने बनाया क्लीन स्वीप का रिकार्ड

भोपाल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मध्य प्रदेश के झाबुआ में हर बूथ पर 370 वोट शेयर बढ़ाने का जो मंत्र दिया था, वही यहां भाजपा की जीत का मजबूत आधार बना। पीएम मोदी ने कहा था कि हर बूथ पर पिछले तीन चुनाव में मिले परिणाम निकालिए, जब भी सबसे ज्यादा वोट मिले हों, उसमें 370 वोट और जोड़ लीजिए। इसी मंत्र पर भाजपा संगठन ने बूथ प्रबंधन का माडल खड़ा किया और सभी 29 सीटों पर जीत का लक्ष्य पा लिया। बेहतर बूथ प्रबंधन के कारण ही भाजपा के आठ नवनिर्वाचित सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने चार लाख से लेकर पौने 12 लाख वोटों के अंतर से जीत प्राप्त की। भाजपा के आक्रामक चुनाव प्रचार और रणनीति का ही परिणाम है कि 44 वर्ष बाद आम चुनाव में छिंदवाड़ा सीट को भी उसने कांग्रेस से छीन लिया। पिछले लोकसभा चुनाव (वर्ष 2019) में भाजपा ने 58 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 28 सीटें जीती थी, इस बार यही वोट शेयर बढ़कर 59.27 प्रतिशत हो गया और कांग्रेस का वोट शेयर 34.5 से घटकर 32.44 प्रतिशत पर आ गया। इधर, मध्य प्रदेश में भाजपा के क्लीन स्वीप के कारण कांग्रेस के दिग्गज नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, कमल नाथ और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया की चुनावी राजनीति का सूर्य भी अस्त हो गया।

29 में दो सीटों से पहले ही बाहर हो गई थी कांग्रेस

प्रदेश में कांग्रेस 29 में से 27 सीटों पर ही चुनाव लड़ी थी। दरअसल, कांग्रेस का चुनाव प्रबंधन शुरू से ही गड़बड़ा गया था। कांग्रेस ने आइएनडीआइ गठबंधन के तहत समाजवादी पार्टी को खजुराहो सीट दी लेकिन वहां नाटकीय घटनाक्रम के बाद सपा प्रत्याशी मीरा यादव का नामांकन पत्र निरस्त हो गया था। मीरा यादव ने जानबूझकर नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर ही नहीं किए थे। फिर इंदौर से कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम भी आखिरी दिन नामांकन वापस लेकर भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस के कमजोर संगठन का ही नतीजा रहा कि मतदान से पहले ही कांग्रेस दो सीटों से बाहर हो गई थी। यह भी भाजपा का आक्रामक रणनीति का ही नतीजा था कि वह कांग्रेस को मनोवैज्ञानिक दबाव में ले आई।

पहली बार आम चुनाव में छिंदवाड़ा सीट जीती भाजपा

 

स्वतंत्रता के बाद से अब तक का यह पहला आम चुनाव है, जब कांग्रेस छिंदवाड़ा सीट भी हार गई। इससे पहले वर्ष 1977 में आपातकाल के दौरान जनता पार्टी की लहर में भी कांग्रेस यहां से चुनाव जीती थी। वर्ष 1980 के बाद से कमल नाथ यहां नौ बार सांसद रहे और पिछला चुनाव उनके बेटे नकुल नाथ ने जीता था। वर्ष 1997 के उपचुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी कमल नाथ चुनाव हारे थे। इसके बाद यह दूसरा अवसर है, जब यहां से भाजपा जीती है। भाजपा को आदिवासियों का भी मिला साथ छह महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में जिस आदिवासी वर्ग ने पूरे मनोयोग से भाजपा का साथ नहीं दिया था, वह इस लोकसभा चुनाव में पूरी तरह भाजपा के साथ लौट आया। प्रदेश में भाजपा को मिले क्लीन स्वीप में आदिवासी वर्ग के साथ का बड़ा योगदान है। सभी छह आदिवासी सीटों पर भाजपा ने विजय पाई। जबकि 2023 के विधानसभा चुनाव में कुल 47 सीटों में भाजपा को 22, कांग्रेस को 24 और एक पर अन्य को जीत मिली थी।

 

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