आराधना स्वरचित भजन संग्रह का विमोचन संपन्न

आरिणी का फागोत्सव संपन्न
आरिणी स्वयंसिद्धा एवं ऊर्जस्विता सम्मान समारोह का आयोजन
हिन्दी भवन के महादेवी वर्मा कक्ष में आज आरिणी चैरिटेबल फाउंडेशन भोपाल के तत्वावधान में डॉ मीनू पांडेय द्वारा संपादित भजन संग्रह ‘आराधना’ आरिणी स्वरचित भजन संग्रह का विमोचन कार्यक्रम अध्यक्ष पं विष्णु राजोरिया, अध्यक्ष, परशुराम कल्याण बोर्ड, मुख्य अतिथि डॉ रघुनंदन शर्मा, कार्याध्यक्ष, तुलसी मानस प्रतिष्ठान , डॉ मनोज श्रीवास्तव, संपादक, अक्षरा पत्रिका, विशिष्ट अतिथि डॉ साधना बलबटे, निदेशक निराला सृजनपीठ एवं डॉ ऊषा खरे, प्राचार्य, जहांगीराबाद एवं गोकुल सोनी, वरिष्ठ साहित्यकार द्वारा किया गया। इस अवसर पर आरिणी स्वयंसिद्धा 2024 सम्मान डॉ साधना बलवटे एवं डॉ ऊषा खरे को आरिणी ऊर्जस्विता सम्मान 2024 से सम्मानित किया गया। साथ ही इस अवसर पर फागोत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें फूलों एवं हर्बल रंगों के द्वारा होलीगीत एवं नृत्य की रंगारंग प्रस्तुति सभी महिला साहित्यकारों द्वारा दी गई।
पं रघुनंदन शर्मा ने ‘पगले मां को भज ले’ भजन को उद्धृत करते हुए भजन की महत्ता बताई। मुख्य अतिथि पं विष्णु राजौरिया भारतीय साहित्य में हिंदी और संस्कृत शब्द के उपयोग पर जोर दिया। मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि साहित्यकारों द्वारा उत्कृष्ट भजन लेखन का संकलन प्रकाशित किया गया है जो कि समय की आवश्यकता भी है। डॉ साधना बलवटे एवं डॉ उषा खरे ने संघर्ष से सफलता की कहानी बताते हुए भजन संग्रह की भूरि भूरि प्रशंसा की तथा यह भी कहा कि इससे बच्चों में संस्कृति एवं संस्कार की पुनर्स्थापना होगी।
कार्यक्रम का शुभारंभ हंसा श्रीवास्तव के द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। पुस्तक विमोचन के बाद, उसके सह संपादक डॉ रंजना शर्मा एवं हंसा श्रीवास्तव को सम्मानित किया गया फिर उसमें सम्मिलित समस्त प्रबुद्ध साहित्यकार, ईश भक्तों एवं भजन लेखकों डॉ.रंजना शर्मा,हंसा श्रीवास्तव ,रजनी खरे, रंजना शर्मा सुमन, इंदु सोनवानी, प्रमिला झरबडे, लीना वाजपेई, रीना मिश्रा, सुशीला सैनी, सरोज दवे, डॉ रेणु श्रीवास्तव, एवं प्रेक्षा सक्सेना को सम्मानित किया गया। इस भजन संग्रह में संपूर्ण देश के सत्ताईस रचनाकार सम्मिलित हैं, मगर समयाभाव के कारण बहुत सारे लोगों का कार्यक्रम में आना संभव न हो सका। मगर कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए रंजना शर्मा इंदौर से पधारीं थीं।
कार्यक्रम दो सत्रों में संपन्न हुआ। प्रथम सत्र का संचालन गोकुल सोनी एवं द्वितीय सत्र का प्रेक्षा सक्सेना द्वारा किया गया।
सभी अतिथि जन प्रखर मेधा वाले प्रबुद्ध रामानुरागी हैं, तो कार्यक्रम में दिव्यता तो होनी ही थी। सभी का वक्तव्य बहुत ही ज्ञानवर्धक रहा। साथ ही साथ फाग का असर भी आप लोगों के वक्तव्य में नजर आये, वो चुटीले व्यंग्य सभी को गुदगुदाने और हंसते-हंसते लोटपोट होने के लिए मजबूर कर गये। रीना मिश्रा जी का भजन तो बिल्कुल वायरल हो गया, उसकी समीक्षा आदरणीय विप्रद्वय ने इस तरह से की कि संपूर्ण सदन तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान होता रहा।डॉ रघुनन्दन शर्मा, कार्याध्यक्ष तुलसी मानस प्रतिष्ठान ने कहा कि आराधना भजन संग्रह की विशेषता है कि इसमें सभी देवी-देवता के भजनों को समाहित किया गया है, यह संग्रह सनातन संस्कृति के संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। कार्यक्रम अध्यक्ष पं विष्णु राजोरिया, अध्यक्ष परशुराम बोर्ड ने श्वेताभ पाठक के भजन की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की। साथ ही साथ अन्य भजनों का भी सस्वर पाठ किया। आपने कहा कि यह एक संग्रहणीय ग्रंथ हो गया है। आपने कहा ‘मातृ शक्ति के साहित्य, संस्कार,एवं सनातनसंस्कृति की शक्ति भारत को पुनः विश्वगुरु के रूप में पदासीन करेगी’ ।
डॉ साधना बलबटे, निदेशक निराला पीठ को आरिणी स्वयंसिद्धा सम्मान 2024 से एवं डॉ उषा खरे, प्राचार्य, उमावि जहांगीराबाद को आरिणी ऊर्जस्विता सम्मान 2024 से सम्मानित कर संस्था बेहद गौरवान्वित हुई। हालांकि ये दोनों ही नामों से संपूर्ण भारतवर्ष परिचित है, मगर लोगों के अनुरोध पर, आप दोनों ने अपने संघर्ष की कहानी और सफलता के मुकाम तक पहुंचने के अनुभव साझा किये। आप लोगों का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा बना। आप लोगों ने भजन संग्रह की बहुत प्रशंसा की। डॉ साधना बलवटे ने कहा कि भजन एक ऐसी विधा है जिसे लोग साहित्य से अलग कर देते हैं मगर इसे साहित्य के साथ जोड़कर, स्वरचित भजन संग्रह तैयार करना और इसके विमोचन का इस तरह का आयोजन भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित होगा। डॉ उषा खरे ने एक बेहद खूबसूरत स्वरचित फाग गीत प्रस्तुत किया।
मनोज श्रीवास्तव, संपादक, अश्ररा एवं पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, ने भजन संग्रह की अत्यंत प्रशंसा की और कहा कि यह आज के समय की आवश्यकता है। साथ ही साथ यह भी कहा कि यदि मुझे यह ज्ञात होता तो मैं भी अपने भजन इस संग्रह में शामिल करवाता।
किसी भी कार्यक्रम का अभिन्न अंग होता है संचालन। हालांकि संचालन के लिए भी उपयुक्त व्यक्ति एवं उपलब्धता ढूंढना आजकल बहुत ही टेड़ी खीर हो गया है क्योंकि भोपाल जैसी उत्कृष्ट साहित्यिक नगरी में प्रतिदिन कम से कम तीन या चार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक आयोजन होते ही रहते हैं और ऐसे में संचालकों की अनुपलब्धता जायज है, तो चार पांच लोगों से विनय पूर्वक आमंत्रण ठुकराये जाने के बाद भोपाल के वरिष्ठ साहित्यकार श्री गोकुल सोनी द्वारा अत्यंत विषम परिस्थितियों में भी (भाभीजी की शल्य क्रिया, एक दिन पूर्व ही संपन्न हुई) संचालन के लिए सहमति प्रदान करना, उनका कार्य के प्रति समर्पित भावना एवं सहयोग की भावना को दर्शाता है, उनके इस स्तुत्य कार्य के लिए नतमस्तक हूँ।
बहुत ही शानदार संचालन रहा दोनों ही सत्रों का, द्वितीय सत्र, फागोत्सव का संचालन प्रेक्षा श्रीवास्तव द्वारा किया गया।सुरेश पटवा, सुनीता शर्मा सिद्धि, डाॅ साधना शुक्ला ,डॉ.रंजना शर्मा, मंगला वर्मा, सरोज दवे, सुषमा श्रीवास्तव, सरोज लता सोनी, चंदा पालीवाल, उषा चतुर्वेदी,चित्रा चतुर्वेदी, डॉ रेणु श्रीवास्तव, प्रमिला झरबडे,सुसंस्कृति सिंह ,सीमा सरन, हंसा श्रीवास्तव,प्रेक्षा सक्सेना, .शशि बंसल, रीना मिश्रा, रंजना शर्मा सुमन ने अपनी प्रस्तुति दी। इन स्वरचित फाग गीतों पर सभी कदम जमकर थिरके।
होरी में घुट रही भांग कैलाश पर्वत पे होय,
होरो में घुट रही भांग कैलाश पर्वत पे
होय।
चित्रा चतुर्वेदी
फागुन में तन-मन रंग डारो फागुन में,
मेरे पिया ने ऐसो रंग डारो फागुन में।
डॉ साधना शुक्ला
रंग भरी राधा की गगरिया
होली खेले सांवरिया
सुनीता शर्मा सिद्धि
काह कहूँ कछु समझत नाहीं
समझाओ यशोदा कन्हैया की मैया
नित-नित करही झगड़ो हमसे
रोकत गैल हमारी कन्हैया ।
डॉ. रंजना शर्मा
रंग डारो ना लाला खों अलकन में
रंग डारो ना लाला खों अलकन में
लग जैसे मुकुट की झलकन में
डॉ रेणु श्रीवास्तव
होली खेलन नंदलाल, आज बरसाने आये ,।।
रंग लगाने नंद लाल, आज बरसाने आये ।।
हंसा श्रीवास्तव
इस फागोत्सव का आनंद तो बस देखते ही बनता था न हाथ रुक रहे थे न पैर, यहां तक कि कुछ लोग जो संकोच में बैठे थे उन्हें भी फाग की रंगारंग प्रस्तुति ने थिरकन पर मजबूर कर दिया। खुशी, हर्ष, उल्लास के माहौल में आनंद में डूबे सभी भक्तजन कब हुलियारों में बदल गये पता ही नहीं चला। ढोल ढमाकों का दौर, फागों का दौर, कभी हिंदी कभी बुंदेली तो कभी मालवी, मगर स्वरचित। और इस तरह ओर्गेनिक हर्बल रंगों एवं पुष्प की पंखुड़ियों से खेली गई होली, पानी बचाने एवं केमिकल रंगों से दूर रहने का संदेश देती हुई बड़े ही घूमघाम से मनाई गयी। साथ ही साथ एक एकल नाटिका की प्रस्तुति भी डाॅ रंजना शर्मा द्वारा की गई।
आरिणी का कार्यक्रम हो और रील न बने संभव ही नहीं, हम उन महिलाओं का समूह हैं जो वास्तव में स्वयंसिद्धा हैं, बिना किसी मुखोटे के। हम प्रबुद्ध महिलाओं का समूह हैं, जो अपने अपने कार्यक्षेत्र में बेहतर सेवाएं देतीं हैं। हम वो मेघावना हैं जो साहित्य सृजन में अपनी अपनी विधाओं में सिद्ध हस्त हैं हम वो महिलाएं हैं जो इतनी भावुक हैं कि किसी का दुख तकलीफ नहीं देख पातीं और समाजसेवा में तत्पर रहतीं हैं, हम वो सुसंस्कृति एवं संस्कारित नारियां हैं जो घर परिवार के साथ समाज में भी संस्कारों के संवर्धन की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं। हम सभी जगह घर, परिवार, समाज, देश, साहित्य, सेवास्थल पर अपनी जिम्मेदारियों एवं कर्तव्यों का निर्वहन बखूबी करतीं हैं बिना किसी प्रदर्शन के, मुझे गर्व है ऐसी सभी सखियों पर। साथ ही साथ हम स्वयं के लिए भी सार्थक समय निकाल लेते हैं क्योंकि यही वो समय है जो थकावट दूर कर हम सभी को ऊर्जा से भर देता है और इसी समय का सदुपयोग हम रील बनाकर अपनी प्रतिभा निखारने में भी करते हैं। ये भी हमारी दिनचर्या का हिस्सा है और हमें इसमें खुशी मिलती है।
भोपाल के अस्सी से अधिक साहित्यकारों ने इस कार्यक्रम में सम्मिलित होकर कार्यक्रम को नयी ऊंचाइयां प्रदान कीं।
हालांकि इस बार का कार्यक्रम बहुप्रतीक्षित था लेकिन आयोजन त्वरित था। महज तीन-चार दिन पहले कार्यक्रम की तिथि का निर्धारण हुआ। फिर आमंत्रित अतिथियों की सहमति जब मिली तो आगे की तैयारियां आरंभ हुईं। आमंत्रण पत्र, प्रशस्ति पत्र, प्रमाण पत्र, स्मृति चिन्ह और अन्य सामग्री जैसी कुछ कुछ तैयारियां चल ही रहीं थीं कि कार्यक्रम के ठीक एक दिन पहले शाम को छः बजे जैसे ही फ्लेक्स लगवाने पूर्व निर्धारित सभागार गयी तो ज्ञात हुआ कि आचार संहिता के कारण वहां कार्यक्रम संभव ही नहीं है और या तो स्थान परिवर्तित करूं या कार्यक्रम निरस्त करूं। हालांकि एक दिन पूर्व ही इन्ही कारण से कुछ आमंत्रित अतिथियों के नाम में भी परिवर्तन हुआ था, तो आमंत्रण पत्र और फ्लेक्स द्वारा बने थे। फिर भगवान की कृपा से दूसरा स्थान भी आधे घंटे की मशक्कत के बाद मिल गया। अब फिर से करेक्शन करवाना था सभी आमंत्रण पत्र, फ्लेक्स और स्मृतिचिन्ह में। तो फिर से वही कार्य किया जो इतने दिनों से कर रही थी और इतने सारे बदलाव के कारण मन में संशय तो बढ़ता ही जा रहा था कि कार्यक्रम आयोजित हो सकेगा कि नहीं। मगर ईश्वर परीक्षा तो लेता है लेकिन सफलता भी देता है, साथ रहकर। और वही हुआ भी। आनंदमयी वातावरण में आयोजित इस कार्यक्रम को अभूतपूर्व सफलता के साथ सभी के सहयोग से आयोजित किया गया।