संपादकीय
पारा हुआ पचास।
पारा हुआ पचास।
वृक्ष बड़े अनमोल हैं, ये धरती- श्रृंगार।
जीव जन्तु का आसरा, जीवन का आधार।।
वृक्ष,फूल,पौधे सभी, जीवन का आधार।
इनसे धरा सजाइये, करिये प्यार दुलार।।
नदिया, झरने, ताल सब, रोज रहे हैं सूख।
पर मानव की है कहाँ, मिटी अभी तक भूख।।
है गुण का भंडार ये ,कुदरत का उपहार।
देव रुप में पूज्य ये, ,वृक्ष करे उपकार।
वृक्ष हमारे मित्र हैं, सुखद-सुहानी छाँव।
प्राण पवन देते हमें, रखें जहाँ हम पाँव।।
बिना वृक्ष संभव नहीं, शुद्ध वायु फल प्यास।
वृक्ष घरोंदा साधते, फिर आता मधुमास।।
वृक्ष काटते जा रहे, पारा हुआ पचास।
धरती बंजर हो रही, क्या है यही विकास।।
-डॉ. सत्यवान सौरभ