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भोपाल का शाही कब्रिस्तान चला गया किराए पर

मामला औकाफ ए शाही की निगरानी वाली संपत्ति शाही बड़ा बाग कब्रिस्तान का है। नवाब शासन काल में वक्फ की गई करीब 35 एकड़ जमीन में यह कब्रिस्तान स्थित है। यहां नवाब परिवार और शाही खानदान से जुड़े लोगों को दफनाया जाता है। 

चैन से सो रहा था, ओढ़े कफन मजार में, यहां भी सताने आ गए, किसने पता बता दिया…? जैसे ख्याल अब रियासत भोपाल के शाही खानदान के लोगों की रूहों को आ रहे होंगे। शहर के बीच स्थित शाही कब्रिस्तान के एक बड़े हिस्से को औने पौने किराए पर दे दिया गया है। अस्थाई किरायादारी बताकर किए गए इस समझौते में जहां वक्फ अधिनियम की धज्जियां उड़ाई गई हैं, वहीं भविष्य में इस बेशकीमती जमीन पर स्थाई कब्जा हो जाने के हालात भी बना दिए गए हैं।

अब चल रहे जेसीबी शाही कब्रिस्तान की इस जमीन पर इन दिनों जेसीबी और अन्य मशीनों की मदद से समतलीकरण का काम किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि कब्रिस्तान के एक बड़े हिस्से को शहर की एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी को किराए पर दे दिया गया है। हमीदिया रोड समेत आसपास की सड़कों के निर्माण कार्यों के लिए कब्रिस्तान की इस जमीन पर मिक्सिंग प्लांट लगाए जाने की बात कही जा रही है।

नियमों की अनदेखी वक्फ अधिनियम 1995 के प्रावधानों के मुताबिक किसी भी कब्रिस्तान की जमीन को स्थाई या अस्थाई किरायादारी पर नहीं दिया जा सकता। लेकिन औकाफ ए शाही ने 11 महीने के किराया समझौते पर कब्रिस्तान की जमीन कंस्ट्रूशन कंपनी को सौंप दी है। हालांकि इस कंपनी से जुड़े लोग यहां करीब 3 साल तक काम जारी रहने की बात कह रहे हैं।

कब्जे से घिरे कब्रिस्तान पर एक और अतिक्रमण के आसार शाही कब्रिस्तान की 35 एकड़ की जमीन लंबे समय से अवैध कब्जों का गढ़ बनी हुई है। हमीदिया रोड के एक लंबे हिस्से में बड़ी तादाद में स्थाई निर्माण खड़े हो चुके हैं। इसके मॉडल ग्राउंड साइड में भी अंदर तक घुसकर लोगों ने कब्जे कर लिए हैं। इस कब्रिस्तान के बैरसिया रोड वाले हिस्से में कब्जों के नजारे हैं। यहां पूरा हिस्सा अस्थाई दुकानों से घिरा हुआ है। जबकि सिंधी कॉलोनी साइड के हिस्से को भी कब्जाधारियों ने अपनी जद में ले रखा है।

अब नए किरायादारी के नाम पर कब्रिस्तान के बड़े हिस्से पर बैठा दिए गए लोगों को भविष्य का बड़ा कब्जाधारी माना जा रहा है। शहर के एक बाशिंदे गनी अहमद का कहना है कि पुराने शहर में पहले भी सड़क निर्माण कार्य हुए हैं, लेकिन इस दौरान किसी प्लांट के लगाने की जरूरत महसूस नहीं  की गई। ऐसे में जबकि कंस्ट्रक्शन कंपनी के पास लाल घाटी पर मिक्सिंग प्लांट मौजूद है, तो कब्रिस्तान में नया प्लांट क्यों लगाया जा रहा है।

नई और पुरानी कमेटी में खींचतान हाल ही में औकाफ शाही की पुरानी कमेटी को भंग कर एक नई कमेटी गठित की गई है। नई 3 सदस्यीय कमेटी इस किरायादारी समझौते से खुद को अलग बता रही है। जबकि पुरानी कमेटी के सचिव आजम तिरमिजी इस समझौते को वक्फ बोर्ड की सहमति से होना बता रहे हैं। आजम का कहना है कि राकेश शर्मा की कंस्ट्रक्शन कंपनी से 11 महीने का एग्रीमेंट किया गया है। करीब 15 लाख रुपए में यह समझोता हुआ है। जिसके लिए मप्र वक्फ बोर्ड से भी सहमति ली गई है। इनका कहना है यह कब्रिस्तान शाही औकाफ के अधीन है। किरायादारी उनके अधिकार में है। बोर्ड से अनुमति मांगी गई थी। आमदनी से किए जा सकने वाले बेहतर कामों की मंशा के साथ यह अनुमति दी गई है।

डॉ सनव्वर पटेल अध्यक्ष, मप्र वक्फ बोर्ड

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