भोपाल विलीनीकरण की 75 वीं वर्षगांठ और विलीनीकरण आंदोलन

झीलों के शहर भोपाल के विलीनीकरण की 75वीं वर्षगांठ 1 जून 2024 को है। भोपाल रियासत 1949 में एक लंबे आंदोलन के बाद शहीदों की शहादत एवं कई लोगों के कड़े संघर्ष का साहसिक परिणाम भोपाल शहर है। आज स्मार्ट सिटी और मेट्रो ट्रेन के जैसी सुविधा प्राप्त खूबसूरत शहर का तात्कालिक भारत गणराज्य में विलय में लगभग 2 साल का समय लगा जिसमें भाई रतन कुमार एवं डॉ० शंकर दयाल शर्मा के नेतृत्व में यह विलीनीकरण आंदोलन का रूप ले सका। यह आंदोलन भोपाल, रायसेन, सीहोर, बोरास और होशंगाबाद में भी विस्तारित हुआ था। भोपाल में छात्र- छात्राओं, महिलाओं, प्रजामंडल, पत्रकारों और अन्य सामान्य जन की भूमिका अहम रही है ।
आंदोलन का मुख्य केंद्र रायसेन
रायसेन जिले से उद्धव दास मेहता, बालमुकुंद, जमुना प्रसाद,लाल सिंह द्वारा जनवरी 1948 में ‘ प्रजामंडल’ की स्थापना की चुकी थी। भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह खान इसे स्वतंत्र रियासत के रूप में रखना चाहते थे साथ ही हैदराबाद निजाम उन्हें पाकिस्तान में विलय करना चाहते थे जो की भौगोलिक रूप से संभव नहीं था, यही कारण है कि यह उग्र आंदोलन का रूप लेकर बोरास, रायसेन जिले में चार युवा आंदोलनकारी छोटेलाल, धन सिंह, मंगल सिंह और विशाल सिंह जिनकी उम्र 30 साल से कम थी को तिरंगा फहराने के कारण गोलियों से भून दिया गया पर इन युवा शहीदों ने तिरंगा नीचे नहीं गिरने दिया। नर्मदा नदी के तट पर आज भी प्रतिवर्ष 14 जनवरी को इस शहीद स्मारक पर उदयपुर तहसील के ग्राम बोरास में 1984 से मकर संक्रांति के दिन मेला लगता है।
समाचार पत्र पत्रिकाओं और महिलाओं की भूमिका
दोस्त मोहम्मद खान की बसाई इस रियासत के विलीनीकरण में समाचार पत्र- पत्रिकाओं में नई राह, नवभारत, साप्ताहिक आजाद, सुबह ए वतन, भोज नर्मदा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। जिसमें नई राह की सात सूत्रीय मांगों का प्रकाशन विलीनीकरण में सहायक रहा। इन पत्रों के माध्यम से भोपाल जिले के आसपास के तहसीलों आदि में जन-जन में विलीनीकरण की जंग की खबर पहुंची और जन आंदोलन तेज हुआ जो छात्र-छात्राओं के साथ-साथ महिलाओं जैसे शांति देवी, मोहनी देवी, बसंती देवी के द्वारा भी प्रसारित किया गया।
चारों तरफ से हुए इस आंदोलन की गूंज गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल तक पहुंची और भोपाल नवाब को 30 अप्रैल 1949 को विलीनीकरण पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े और 1जून 1949 को भोपाल भारत में शामिल हुआ और 659 दिन बाद भारत का तिरंगा लहराया गया। भोपाल में विलीनीकरण या आजादी दिवस के स्मारक के रूप में विलीनीकरण स्मृति द्वार भोपाल के ईदगाह हिल्स पर स्थापित है जहां प्रतिवर्ष दीप प्रज्वलित किए जाते हैं।
डॉ० स्मिता राशी प्राध्यापक, बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी,भोपाल(म०प्र०)