
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बार ‘मन की बात’ में मोटापे के खिलाफ देश भर में एक जागरूकता अभियान का आह्वान किया. उन्होंने इसके जरिए कहा कि देश में मोटापे के खिलाफ एक जागरूकता अभियान चलना चाहिए. इससे कुछ दिन पहले सरकार और स्वस्थ मंत्रालय की तरफ से ये बात सामने आई कि लाइफ स्टाइल डिजीज में खासकर 3 प्रमुख डिजीज हैं: डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और अलग-अलग तरह के कैंसर.
इन तीनों के खिलाफ एक अभियान के तौर पर सरकार 30 वर्ष से अधिक की उम्र के जितने भी लोग हैं, उनका स्वास्थ्य चेकअप सरकार अपनी ओर से कराएगी. इस दायरे में लगभग 89 करोड़ लोग आएंगे, जिनकी जांच होगी. ये बिल्कुल मुफ्त जांच होगी, जिसकी पहल सरकार करने जा रही है. यानी दोनों फैक्ट्स को को देखें तो ये चारों चीजें लाइफ स्टाइल से जुड़े हुए हैं. भारत में अधिकतर युवा आबादी है और ऐसा देखा ये गया कि 30 से 40 साल की उम्र के युवा भी इस तरह की लाइफ स्टाइल डिजीज से काफी परेशान हैं.
अगर सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में बीपी से ग्रसित लोगों की संख्या करीब 19 करोड़ के आसपास है. इसी तरह 21 से 22 करोड़ लोग शुगर से पीड़ित हैं. ऐसे करीब 9 से 10 करोड़ लोग हैं, जो किसी न किसी कैंसर से ग्रसित हैं और मोटापे वाली बीमारियों से ग्रसित लोगों की संख्या 12 से 14 करोड़ के आसपास हैं.
लाइफ स्टाइल डिजीज
इन चारों को अगर आप जोड़ देंगे तो लाइफ स्टाइल से जुड़ी बीमारियों का आंकड़ा 40 करोड़ के ऊपर चला जाता है. यानी, देश में इतनी बड़ी आबादी जो लाइफ स्टाइल से पीड़ित हैं. इसकी अलग-अलग वजह है, जैसे शारीरिक श्रम का न होना और खानपान में बदलाव. आज खाने में पैक्ड फूड को जिस तरह से तरजीह दी जा रही है, उसकी वजह से ये भी बीमारियां हो रही है, जिसकी रोकथाम मुमकिन है. किसी भी राष्ट्र को अगर प्रगति करनी है तो वे अपनी आबादी या जनसंख्या को जितना स्वस्थ रखेगा, वहां की अर्थव्यवस्था और उत्पादकता उतनी ही ज्यादा बढ़ेगी
अगर लोग अधिक से अधिक स्वस्थ रहेंगे तो हेल्थ का बजट उतना कम होगा. यानी, ये ऐसे डिजीज हैं जिसके प्रति जागरुकता बहुत जरूरी है. खानपान में सजगता जरूरी है, तभी जाकर इसके खिलाफ आप लड़ पाएंगे और स्वस्थ रह पाएंगे. इसलिए ये एक बड़ी चुनौती है कि खुद को कैसे स्वस्थ रखा जाए. इसके अलावा, एक बड़ी चुनौती ये भी है कि किसी भी तरह के लाइफस्टाइल संबंधित रोगों से खुद को सेफ रखना. ये तब होगा जब हम अपनी लाइफ स्टाइल को बदलेंगे. हम अपने डेली रुटीन को आलसीपन छोड़कर शारीरिक श्रम को बढ़ाएंगे तभी हम स्वस्थ रह पाएंगे.
शारीरिक श्रम बढ़ाने की जरूरत
प्रथम दृष्टया अगर देखा जाए तो सरकार की ये पहल स्वागत योग्य है, बशर्ते इसके पीछे छिपा हुआ कोई और एजेंडा ना हो. छिपा हुआ एजेंडा इस मायने में की बहुत सारी फार्मास्युटिकल्स कंपनियां जो दवा बनाती हैं, वो अगर इस डेटा का इस्तेमाल करके उस तक अप्रोच करेंगी और उनको फिर बीमार करने का जो खेल है, वो चलेगा तो फिर सही नहीं होगा.
सही मंशा से सरकार अगर वाकई में जांच करवाना चाहती है तो इस डेटा से सरकार को एक फायदा होगा कि हेल्थ को लेकर क्या बजट बननेवाला है, किस तरह का लाइफ स्टाइल लोगों को रिकमेंड किया जाए. क्योंकि स्वास्थ्य को लेकर के पूरे देश और दुनिया में करोना के बाद कुछ जादा ही जागरुकता आई है. इसमें सब खानपान करती सजग हुए हैं.
इसके बावजूद देश में ये बड़ा मुद्दा है कि क्या खाएं और क्या न खाएं. इस बीच का जो पैमाना है और उसको देखने का तरीका है, उसमें कहीं ना कहीं सरकार चेक एंड बैलेंस कर सकती है. यानी, जिस खाने से लोग बीमार पड़ सकते हैं, सरकार को चाहिए कि उसकी वो जरूर निगरानी करे.
सरकारी पहल की जरूरत
अगर बात अमेरिका या यूरोप की करें तो वहां पर खाने-पीने की चीजों से मानक थोड़े कठिन हैं. भारत में भी उसी तर्ज पर होना चाहिए, ऐसा नहीं होना चाहिए कि खाने के नाम पर कोई कुछ भी बेच ले. यानी, सरकार अगर चेक एंड बैलेंस करेगी तो जिस कारण से लाइफ स्टाइल डिजिज हो रहे हैं, जंग फूड या फास्ट फूड की वजह से हो रही बीमारियों पर काफी हद तक लगाम लगाया जा सकता है