संपादकीय

चंदू मियां चले चांद की ओर……!

● रवि उपाध्याय

आपने यह कहावत तो खूब सुनी होगी कि ‘ घर में नहीं हैं दाने, अम्मा चली भुनाने ‘ यह कहावत हमारे पड़ोसी देश में हकीकत में बदलते हुए देखी जा सकती है। वहां की इस हकीकत से दुनिया वाकिफ़ है। पड़ोसी देश में लोग दाने-दाने को मोहताज हैं। लोग रोटी के लिए आटे की बोरियों को लूट रहे हैं। महंगाई आसमान छू रही है ।आलू, प्याज, टमाटर और पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे हैं, और वहां के हुक्मरान चांद पर जाने के लिए तड़प रहे हैं। वो जनता को मुल्क को चांद पर ले जाने का सपना दिखा कर बरगला रहे हैं। पड़ोसी राज्य के वजीर ए आजम की चांद पर जाने की सनक तब से और बढ़ गई जब भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने अगस्त 2023 में अपने चंद्रयान को चंद्रमा के दक्षिण भाग में उतार कर इतिहास रच दिया। चंद्रमा के दक्षिण भाग पर उतरने वाला चंद्रयान दुनिया का पहला यान था। तब से ही पड़ोसी देश की हुकूमत और अवाम भारत की सफलता से जले-भुने जा रहा है। इसके पहले जब हमारे चंद्रयान मिशन 1 को जब अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी तो पड़ोसी देश के वजीर समेत पूरी सरकार खुशी से झूम उठी थी। तभी से पड़ोसी देश बिना किसी भी तकनीक और वैज्ञानिक साधन के चांद पर जाने को तड़प रहा था। साधन कहाँ से आएंगे ? जब मुल्क के हुकमरानों ने पिछले 70-75 सालों में बंबूल के पेड़ बोएं हों और खेतों में A K 47 रायफल बोईं हों, ऐसी स्तिथि में उन्हें आम के फसल की तनिक भी कल्पना नही करनी चाहिए। वहां के आतंकी उतने ही मशहूर हैं जितने हमारे यहां हापुस के आम ।

दो पड़ोसियों या इंसानों के बीच में कॉम्पिटिशन होना एक सामान्य बात है।लेकिन जब यह कॉम्पिटिशन जलन और ईर्ष्या में बदल जाती है। तब वह खतरनाक स्तर तक पहुंच कर ईर्ष्या बदले की भावना में बदल जाती है। इसी ईर्ष्या से हमारा पड़ोसी देश दशकों से जल भूनकर ख़ाक हुआ जा रहा है। भारत ने पिछले साल अगस्त 2023 मून मिशन के तहत चंद्रमा पर अपना चंद्रयान भेजा तो बजाय खुश होने के हमारा पड़ोसी जलभुन गया। उसको दुःख यह है कि उसका पड़ोसी देश (भारत) उससे आगे कैसे निकल गया। जब हमारा चंद्रयान मिशन 1 आपेक्षित लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाया तो पाकिस्तानी नेताओं एवं वहां के कट्टर पंथी नेताओं की बांछें खिल गईं।

पिछले दिनों हमारे एक अन्य पड़ोसी देश चीन ने अपना उपग्रह चंद्रमा पर भेजने की घोषणा की तो शाहबाज शरीफ भाई जान ने ज़िंग पिंग से गुजारिश की भाईजान आप चंद्रमा पर जा रहे हो तो हमारे लिए भी एक पाव-डेढ़ पाव का उपग्रह बना कर ले जाओ। उससे भले ही चंद्रमा तक मत ले जाना, चंद्रमा की दहलीज पर ही पटक देना। हमारी अवाम के सामने इज्जत रह जाएगी। हिंदुस्तान तो नित नए कारनामे कर रहा है। आपकी मेहरबानी हो जाएगी तो हमारी भी नाक कटने से बच जाएगी। आपकी तो वैसे भी चपटी और छोटी सी होती है। सो चीन एक माचिस की डिब्बी नुमा सेटेलाइट बना कर ले गया, लेकिन उस पर न तो पाकिस्तान का नाम था और न ही निशान।

दाने-दाने के लिए मोहताज हमारे पड़ोसी देश के नेता और कट्टरपंथी मजहबी नेताओं का दावा (गुमान) है कि चांद पर उनका हक़ है। क्योंकि उनके जितने भी वजीरे आजम, वजीर और राष्ट्रपति रहे हैं उनमें से ज्यादातर के सिर पर चांद रही है।नवाज शरीफ और शाहबाज शरीफ और मियां भुट्टो इसके उदाहरण हैं। साथ ही चांद मियां, चंदू भाई तो उनके यहां सैंकड़ों की तादाद में हैं। साथ ही उनके झंडे पर चांद तारा पाकिस्तान की तामीर से ही बैठा है । इस्लाम को मनाने वाले चांद दिखने के बाद ही रमजान और ईद मनाते हैं। उर्दू शायरों को हसीनाएं भी चांद सी लगतीं हैं।
वहीं दूसरी और पाकिस्तान की अवाम को तो चांद रोटी लगती है। भूखी अवाम को भला इससे अधिक चांद क्या लगेगा। किसी भी प्राणी या जीव के लिए पहली जरूरत रोटी-पानी है। इसके बाद कुछ और …।

पाकिस्तान भले ही चांद पर न पहुंचा हो पर वहां महंगाई जरूर चांद तक जा पहुंची है। वहां के आतंकी पूरी दुनिया में मशहूर हैं। वहां के आतंकी हर देश में मौजूद हैं।वहां भीख को संवैधानिक और संस्थागत रूप दिया गया है। यहां के भिखारियों के पास संवैधानिक पद हैं। वजीर के रूप में और वजीर ए आजम के रूप में। वहां हत्या और आतंकियों को मौन रूप से सरंक्षण प्राप्त है।

पाकिस्तान जैसे किसी भी देश को अपने बारे में भले ही गलतफहमी या गुमान हो लेकिन हम तो यही कहेंगे आगे बढ़ना है तो किसी की कामयाबी से जलो मत कॉम्पिटीशन करो, आतंकियों की बम-बंदूकों को दफन करो और खेतों में अनाज पैदा करो ताकि अपनी अवाम पेट भरने के लिए दुनिया भर में मजहब के नाम पर भीख का कटोरा ले कर घूमना न पड़े ।

( लेखक व्यंग्यकार एवं राजनैतिक समीक्षक हैं)

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