लोभ एवं मोह के प्रतीक हिरण्याक्ष व हिरणाकश्यप को मारने प्रभू को लेना पड़े दो अवतार:पं०सुशील महाराज

कथा में च्यवनाश्रम उ०प्र०से पधारे दण्डी स्वामी)
श्री शिव शक्ति धाम सिद्धाश्रम निपानिया जाट बैरसिया रोड भोपाल में श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिवस आज पं०सुशील महाराज ने हिरण्याक्ष व हिरणाकश्यप की कथा सुनाते हुए श्रोताओं को बताया है कि लोभ एवं मोह इतने भयंकर निशाचर है।कि इन्हें मारने के लिए ईश्वर को एक ही कल्प में दो अवतार लेना पड़े थे।लोभ का प्रतीक हिरण्याक्ष तो इतना बड़ा लोभी था। कि उसने सारी पृथ्वी को ही जल में छिपाकर रख लिया था। फिर श्रृष्टि निर्माण के समय श्री ब्रहमां जी ने यह समस्या श्री बिष्णु भगवान को बताई कि श्रृष्टि के निर्माण के वाद जनता एक पान के पत्ते पर कैसे रह पायेगी।तब श्री हरि ने पहला वाराह के रुप में अवतार लिया। और हिरण्याक्ष को मारकर पृथ्वी को स्थापित किया।इसके बाद हिरणाकश्यप जो कि मोह का इतना बड़ा पुजारी था।कि उसने सत्ता सुख के मोह के कारण अपने ही पुत्र को अपनी ही पत्नी द्वारा जहर खिलवाया गया, सर्पों को प्रहलाद के कमरे में छुड़वाया गया। भक्त प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिरवाया गया।हद तो तब हो गई जब हिरणाकश्यप ने लोहे के खंम्बे को खूव गर्म करके भक्त प्रह्लाद को खंबे से बंधवा दिया।मोह के प्रतीक हिरणाकश्यप की ऐसी क्रूरता देखकर श्री हरि नृसिंह भगवान के रुप में प्रकट हो गए। और हिरणाकश्यप का बध कर दिया।इस प्रकार एक ही कल्प में ईश्वर को दो अवतार लेना पड़े थे।कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य के शरीर में लोभ एवं मोह की जितनी अधिकता होगी।वह ब्यक्ति उतना ही बड़ा अधर्मी एवं उतना ही बड़ा निशाचर होगा।
उधर चौथे दिवस यज्ञशाला में देवी हवन में आहुतियां डालकर चौथे दिवस का देवी हवन यज्ञ पूर्ण किया गया।च्यवनाश्रम जिला कन्नौज उ0प्र0 से पधारे श्री श्री1008श्री दण्डी स्वामी जी महाराज एवं महंत श्री केशवानंद नागा महाराज जी ने हवन यज्ञ में अपने हाथों से आहुतियां डाली। एवं ब्यास पीठ के वाजू में आसन पर बैठकर श्रीमद् भागवत कथा का श्रवंण किया।
(पं०सुशील महाराज)
कथावाचक एवं पीठाचार्य -श्री शिव शक्ति धाम सिद्धाश्रम निपानिया जाट बैरसिया रोड भोपाल म0प्र0।
मो०-9179006977