मध्य प्रदेश

कर्मचारी संघों में आपसी कलह बरकरार, कार्रवाई से पीछे हट रही सरकार

– सरकारी सेवक बोले स्वार्थों के कारण लड़ते नेता पूरे देश में करवा रहे बदनामी
भोपाल। मध्य प्रदेश में एक बार फिर सरकारी सेवकों ने कर्मचारी संघों में मची आपसी कलह कब दर्द बयां किया है। आरोप लगाया है कि अब संगठनों के नेता अपने उद्देश्यों को भूलकर आपसी दुश्मनियां भुनाने में जुटे हुए हैं। मांग उठी है कि सरकार को सबसे पहले कर्मचारी नेताओं पर कार्रवाई करना चाहिए।
बताना होगा कि मध्य प्रदेश डिप्लोमा इंजीनियर संगठन से लेकर लिपिक वर्ग क्लास 3 वाहन चालक वन सहित अनेक कर्मचारी संगठनों में विवाद चल रहा है। इन विवादों को सुलझाने की बजाय कर्मचारी संगठनों के नेता निजी और व्यक्तिगत मामलों में दखलंदाजी करने लगे हैं।
– मंत्रालय से चलना चाहिए कार्रवाई का अभियान-प्रमोद तिवारी
पुरानी पेंशन बहाली के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रमोद तिवारी का कहना है कि सरकार को मंत्रालय से कार्रवाई का अभियान चलाना चाहिए। यहां कर्मचारी नेताओं मची आपसी लड़ाई का बुरा संदेश पूरे प्रदेश में जा रहा है।
जब तक कर्मचारी संगठनों के नेताओं की भ्रष्ट मानसिकता समाप्त नहीं होगी। तब तक इसी प्रकार विवाद चलते रहेंगे। प्रमोद तिवारी का कहना है कि कर्मचारी संगठनों के अध्यक्षों पर जो आरोप लग रहे हैं वे कहीं से बेबुनियाद नहीं है। तिवारी का कहना है कि संगठनों के प्रमुख नेताओं ने अपना पूरी तरह से ईमान बेच रखा है। यह संगठन चलाने के नाम पर सिर्फ दलाली पर ध्यान दे रहे हैं। यही कारण है कि मान्यता प्राप्त संगठनों की अस्मिता तारतार हो गई है।
– सबसे पहले कर्मचारी नेताओं के होना चाहिए तबादले- मुरारी लाल सोनी-
वरिष्ठ कर्मचारी नेता मुरारी लाल सोनी का कहना है कि सबसे पहले कर्मचारी नेताओं के तबादले होना चाहिए। सरकार को मंत्रालय से यह शुरुआत करना चाहिए। कहते हैं कि मंत्रालय की कर्मचारी की सेवा शर्तों में बदलाव करते हुए इन्हें जिला और ब्लॉक स्तर तक भेजना चाहिए। प्रदेश में समस्त कर्मचारी संगठनों की मान्यता समाप्त की जानी चाहिए। इसके पीछे कारण भी है कि एक भी संगठन सामान्य प्रशासन विभाग और रजिस्टर फर्म समिति के मापदंडों को पूरा नहीं कर पा रहा है। मुरारी का आरोप है की धारा 27 और 28 की जानकारी में जहां कर्मचारी संगठनों के नेता फर्जी आंकड़े पेश कर रहे हैं वहीं इनके पास सदस्यता भी शून्य है। कर्मचारी संगठनों से दूर भागते सरकारी सेवकों का आकलन मोर्चा से किया जा सकता है। संगठनों के पास कर्मचारी बचे नहीं। इसलिए मोर्चा बनाकर भीड़ जोड़ने की तैयारी की जा रही है जबकि यह नियम विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री को संगठनों की मान्यता समाप्त कर इनके सरकारी कार्यालय सहित सभी सुविधाएं छीन लेना चाहिए। मुरारी का कहना है कि राज्य सरकार को इनकी संपत्ति का हिसाब भी लेना चाहिए।
– मान्यता प्राप्त संगठनों में वोट से क्यों नहीं होते हैं चुनाव- मनोज सिंह-
शासकीय अर्धशासकीय वाहन चालक यांत्रिक कर्मचारी कल्याण संघ के प्रदेश महामंत्री मनोज सिंह का कहना है की मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठनों में आखिर वोट से चुनाव क्यों नहीं कराई जा रहे हैं। मनोज का कहना है कि जब संगठनों के अध्यक्ष नेतागिरी करते हैं तो इन्हें निष्पक्ष और ईमानदार लोकतंत्र का परिचय भी मैदान में दिखाना चाहिए। मनोज के अनुसार कारण साफ है कि कर्मचारी नेताओं के मन में सरकारी सेवकों के प्रति कहीं ना कहीं खुद छिपा हुआ है यही कारण है कि बंद कमरों में जहां चुनाव हो रहे हैं वहीं प्रदेश के लाखों कर्मचारियों के साथ छलावा किया जा रहा है।
उनका कहना है कि बंद कमरों में माला पहनकर अध्यक्ष बन जाना किसी मर्द की निशानी नहीं है।

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