एक शिक्षक की मन की व्यथा
मास्टरजी बड़ी गहरी सोच में डूबे हुए तेज तेज कदमों से चलते हुए घर जा रहे थे। उन के मित्र मोहन जी मिल गए। उन्होंने तेज़ आवाज लगाई अरे मास्टरजी कैसे हो । मास्टरजी जी पहली आवाज को तो सुन ही नहीं पाए दूसरी आवाज लगाते हुए मोहन जी उनके करीब ही पहुंच गए अरे यार कितने दिनों के बाद मिले हो फिर भी रुक ही नहीं रहे हो।
“अरे मैं सुन ही नहीं पाया ”
अरे क्या बात है,? किस सोच में डूबे हुए थे?
अरे तुम को तो मालूम ही है आजकल सरकारी स्कूल में टीचर का क्या हाल हो गया,!
स्कूल जाने से पहले तो मोबाइल देखो की आज कौनसी ट्रेनिंग कौनसी परीक्षा कौनसी मीटिंग में कहां जाना है ।फिर अगर कही नाम नहीं है। तो जल्दी टाइम से स्कूल पहुंच जाओ वरना कोई न कोई मॉर्निंग वॉक करते हुए स्कूल चेक करने आ सकता है । मध्यान्ह भोजन के डिब्बे लेना है। भोजन चेक करना है । फिर प्रेयर , पीटी , कराओ अब क्लास में जाके पढ़ाने का सोच ही रहा था कि कोई पेरेंट्स बच्चे को लेकर चला आया मास्टरजी कल रास्ते में स्कूल के लड़कों ने लड़ाई की मेरे बेटे को मारा बैग फाड़ दिया।
कौन से हैं वो लड़के, अभी सही करता हूं उनके दिमाग ?
उनको जैसे तेसे समझाया कि पड़ोस में रहने वाले चक्रधर जी आ गए । अरे मास्टरजी वो राहुल और अमन आपके स्कूल के बच्चे हमारे घर से आम तोड़ रहे थे कल छुट्टी के बाद वो तो कल भाग गए वरना मैं टांगे तोड़ दे उनकी।
अरे चक्रधर जी आप क्यों परेशान हुए मुझे बुला लेते मैं अभी देखता हूं कहां हैं वो बच्चे
जी आप समझा दीजिए वरना आपको तो पता ही है ।मैं रिटायर्ड कर्नल हूं।
जी जी मैं जानता हूं आपको।
अब जैसे तेसे पढ़ाने बैठा ही था कि ऑफिस से फोन आ गया ।मास्टरजी आपने अभी तक जानकारी नहीं भेजी ।जल्दी पोर्टल पे जानकारी भेजे वरना आपके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी ।जी सर मैं अभी आ रहा हूं । वॉट्सएप देखा कौनसी जानकारी थी कि एक और मेसेज दिखा आपका mdm का मेसेज नहीं हो रहा है ।तत्काल अपडेट करवाए ।जाने के लिए
निकलने ही वाला था कि दो एडमिशन कराने वाले आ गए एडमिशन फार्म लिए मैडम भी आ गई ।सर इनके दो बच्चे है दोनों के पिता का नाम अलग अलग है इनकी भी id भी अलग है । क्या करे ।
तभी एक और पेरेंट्स टी,सी लेने आ गए सर अभी दीजिए टीसी हम गांव जा रहे हैं। वो मैडम की blo में ड्यूटी है। टीसी तो हमे अभी चाहिए ।
दो मैडम सर्वे एडमिशन के करने गई है। दो असाक्षरों का सर्व करके एप पर रजिस्टर्ड कर रही हैं।
एक टीचर अभी तक नहीं आई बच्ची छोटी है देर हो जाती है क्या करे सीसीएल छुट्टी सेंगशन नहीं हो रही ।
एक तो साहब की चहेती हैं इतनी मुंहफट की हर एक कुछ काम कहने से डरता है । वो अपनी पसंद का कोई एक पीरियड लेगी फिर गपशप ।
मास्टरजी भी हिम्मत नहीं कर पाते कुछ कहने की ।
और दो चार थोड़े सिद्धांतवादी पुरानी सोच के टीचर कक्षाओं में नए कोर्स से उलझ रहे होते कहां से शुरू करे पहले flnपढ़ाये या कोर्स की बुक।
अभी पूरी किताबे भी तो नहीं आई । वो तो एग्जाम तक ही मिल पाए शायद और एक विषय बेचारा तो ऐसा की उसकी बुक कभी भी नहीं मिल पाती समय पर ,हमेशा एक बुक से ही पूरे बच्चों को बोर्ड पर ही लिखवाया जाता । और वो भी ऐसे पढ़ाया जाता जैसे पढ़ा नहीं रहे कोई बड़ा गुनाह कर रहे ,क्योंकि उसको पढ़ाने से सभी को परेशानी अरे भाई बस मुख्य 4 विषयों पर ही ज्यादा ध्यान दीजिए । ये वाला विषय तो एक साथ जब छुट्टी हो जाए तो जो बच्चे ये पढ़ते हैं ।उनको रोक कर एक पीरियड में सब क्लास मिलाकर पढ़ा दिया जाए। वो टीचर भी ये नहीं समझ पा रहा कि जिस विषय को पढ़ाने के लिए यहां भेजा गया जो उसकी जिम्मेदारी है क्योंकि जब उसने ज्वाइन किया तो बड़े ऑफिस में उससे कहा गया कि आपको इस विषय पर ज्यादा ध्यान देना है इससे पहले 0%रिजल्ट था। इधर सभी उस विषय वाले चाह रहे की ये विषय पढ़ाया जाए वरना वो जब कक्षा 1 का कोर्स अपनी कक्षा मे पढ़ाएंगे तो अपनी कक्षा का कब कैसे कोर्स पूरा करेंगे शाला के कुछ टीचर और जिम्मेदार को इस बात से कोई मतलब नहीं ,वो अपने विषय पढ़ाने में कोई दिलचस्वी नहीं ले रहे उनको पूरा समर्थन जिम्मेदारों का मिला हुआ है। वो अपने हिसाब सहूलियत से जो मन करेगा वो पढ़ाएंगे।
और वो पदभार लिया हुआ शिक्षक जिसे आर्थिक तो कोई लाभ मिला नहीं मानसिक दवाब और बन गया कि वो कैसे पूरी क्लास पूरे विषय पढ़ाए या जिस विषय का पदभार मिला है। वो जिम्मेदारी निभाए । वो तो चाहता था कि मैं स्कूल को आनंद घर में परिवर्तित कर दूं।
जहां बच्चे खुशी खुशी आए निडर होकर व्यावहारिक ज्ञान अर्जित करे लेकिन अब ऐसा लगने लगा कि अब कोई भी नहीं चाहते की बच्चे पढ़ें लिखे बस सब रिकार्ड चाहते हैं । कागज़ों पर साक्षरता चाहते हैं ।जो बुजुर्ग अब इस उम्र पड़ाव पर पढ़ना नहीं चाहते उनको सरकार साक्षर दिखाना चाहती। इस चक्कर में जिनकी उम्र अभी पढ़ने की है। टीचर उनको समय ही नहीं दे पा रहे । बस ये सब ही सोच सोच कर टीचर बीमारियों का घर बनता जा रहा हैं। कोई तो बीमारी ऐसी हो जो टीचर को न हो। वो सांस थामे आदेश का पालन करते हुए हर काम कर रहा है। बस अपने मुख्य कार्य पढ़ाई को छोड़कर हर काम में लगा हुआ है ।मैं भी बस ऑफिस ही जा रहा था मोहन जी ये ही सब दिन रात दिमाग में चलता रहता है ।कहने को टीचर की ड्यूटी 8घंटे की है लेकिन वो 8 घंटे घर पर भी कल की रूप रेखा दिमाग में प्लान बनाता रहता है फिर 8घंटे उस प्लान को क्रियान्वित करने में लगाता । इस तरह पूरे 24घंटे का गुलाम हो गया। और उस पर भी
सबकी सुनने वाले और शिक्षा को सपर्पित शिक्षकों को।
जिसके दिल में जो आया पेरेंट्स ,स्टूडेंट्स, ऑफिसर, सब सुना जाते । और जो झूठ मक्कारी का सबक जानते हैं वो हर तरफ से बच जाते है।हर काम से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। और प्रिय भी बने रहते हैं ।
मैं समझ नहीं पा रहा कि मैं ये क्वालिटी अपने अंदर कहां से लाऊं ।
मेरी आवाज किस तक और कैसे पहुंचाऊं।
बस इसलिए इस सोच में मैं डूबा हुआ था माफ करना मोहन जी मैं आपकी आवाज सुन नहीं पाया ।
डॉ.ओरीना अदा भोपाली