रोकड़े ने किया संविधान हत्या दिवस का विरोध
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखा पत्र
युवाओं में नवक्रान्ति के अग्रदूत तथा आम लोगों में गुरुदेव के नाम से प्रसिद्ध सम्यक अभियान के प्रमुख भास्कर राव रोकड़े ने 9 मसाला, एम.पी. नगर में आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि 25 जून को “संविधान हत्या दिवस घोषित कर उनसे बड़ी भूल हो गई है। शीघ्र भूल सुधार न करने से वैश्विक मंच पर भारत की छवि पर विपरीत असर पड़ सकता है।
श्री रोकड़े ने कहा कि 25 जून 1975 को देश में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की आशंका को देखते हुए संविधान के अनुच्छेद 352 के प्रावधानों के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल घोषित कर दी थी। आपातकाल के दौरान सन 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय अस्तित्व में आये मीसा कानून अर्थात Maintenance of internal security act के दुरुपयोग का आरोप आज भी श्रीमती इंदिरा गांधी पर लगाया जाता है। आज भी यह प्रचारित किया जाता है कि 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक भारत में निरंकुश प्रणाली से शासन चलता रहा तथा आंतरिक व्यवस्था व सुरक्षा के नाम पर श्रीमती इंदिरा गांधी के विरोधियों को जेल में डाल दिया गया। जिसके कारण श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रतिवर्ष 25 जून को “संविधान हत्या दिवस” के रूप में याद किया जायेगा। इस आशय का नोटिफिकेशन भारत का राजपत्र में 12 जुलाई 2024 को प्रकाशित किया गया है।
जो प्रतिकार-भाव के कारण एक बड़ी भूल का आभास करा रही है। उस निर्णय को तत्काल न बदलने से विश्व के तमाम प्रतिक्रियावादी देश यह प्रचारित करने से नहीं चूकेंगे कि भारत बिना संविधान के चल रहा है। क्योंकि भारत के संविधान की हत्या के बाद नया संविधान बनाने हेतु आज तक किसी ने भी पहल नहीं किया है। हत्या से पूर्व जो संविधान अस्तित्व में था 49 साल बाद भी उसी संविधान के नियमों, कानूनों व प्रावधानों से भारत में शासन, प्रशासन व न्यायालय का कामकाज चल रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा फैल जायेगी कि “भारत मरे हुए संविधान के सहारे चल रहा है”।
श्री रोकड़े ने कहा कि भारतीय संस्कृति में किसी व्यक्ति की हत्या होने पर उस दिन को हत्या दिवस नहीं कहा जाता। जिस दिन महात्मा गांधी की हत्या हुई थी। उस दिन को महात्मा गांधी पुण्यतिथि के नाम से जाना जाता है। संविधान तो कालजयी है.., जीवन-मृत्यु से परे देशव्यापी व देश के सीमा में सार्वभौमिक भी है। एक पुस्तक नही दिग्दर्शक है। संविधान सभा के 299 सदस्यों ने 22 समितियों में बंटकर उसे अध्ययन रूपी अनुष्ठान से भूत-भविष्य-वर्तमान का व्याख्याता बना दिया।
उसकी रचना डॉ. भीमराव अंबेडकर ने सदस्यों के साधना-रस का उपयोग कर देशवासियों की भावना का मंथन कर किया है। वह लोकतांत्रिक भारत के संचालन की क्षमता से युक्त मानव निर्मित लौकिक रचना होकर भी पारलौकिक शक्ति व रहस्यों से भरी लगती है। संविधान-रूपी रचना में प्राण-प्रतिष्ठा 26 जनवरी 1950 को की गई। जिसके कारण सभी भारतवासी उस दिन को सभी त्योहारों से अधिक उत्साह से मनाते है।
श्री रोकड़े ने स्पष्ट किया कि संविधान की हत्या कोई कर ही नहीं सकता। संविधान मर ही नहीं सकता तो उसे मरा हुआ मानना या उसकी हत्या होने का सवाल ही नहीं उठता। समय-समय पर संविधान की किसी धारा या किसी अनुच्छेद के दुरुपयोग का आरोप अवश्य सरकार पर लगता रहा है। श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करने व श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नोटबंदी लागू करने को आम भारतीयों से स्वीकार्यता नही मिल पायी।
श्री रोकडे ने कहा कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण करने, प्रमुख खनिजो की खदानों का राष्ट्रीयकरण करने, राजा-महाराजाओं के विशेषाधिकार व प्रिवीपर्स बंद करने के बाद पूंजीपतियों तथा राजघरानों ने श्रीमती इंदिरा गांधी को घेरने हेतु सारी सीमाओं को लांघना शुरू कर दिया था। इसी बीच भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को 2 टुकड़ो में बांटकर मिली सफलता तथा पोखरण में परमाणु परीक्षण कर विश्व-मंच पर भारत की शक्ति प्रदर्शित करने के बाद भारत की बाह्य व आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था एकदम संवेदनशील स्थिति में पहुँच गयी थी। तब श्रीमती इंदिरा गांधी ने आआंतरिक सुरक्षा व्यवस्था में खतरे की आशंका से राष्ट्रीय आपातकाल लगाने की सिफारिश राष्ट्रपति से कर दी थी। ठीक उसी तरह देश को आर्थिक नुकसान पहुचाये जाने की आशंका से श्री नरेन्द्र मोदी ने भी नोटबंदी का निर्णय लिया। किन्तु दोनों ही निर्णय संविधान में दिये गये प्रावधानों के तहत ही लिए गये।
श्री रोकड़े ने कहा कि डॉ. अंबेडकर की रचना संविधान की हत्या की बात सुनकर देशवासियों के मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे है। देश के अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग का मानना है कि सरकार ने संविधान हत्या दिवस घोषित कर नया संविधान बनाने का मार्ग ढूंढ निकाला है। अब सरकार नया संविधान बनाने की घोषणा कर सकती है तथा डॉ. अम्बेडकर के स्थान पर कोई दूसरा व्यक्ति अब भारत के संविधान का रचनाकार बन जायेगा।
श्री रोकड़े ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री को आग्रह पत्र भेजा है। उन्हें विश्वास है कि प्रधानमंत्रीजी भूल का अहसास होते ही संविधान हत्या दिवस घोषित करने के निर्णय को बदल देंगे। यदि वे अपने निर्णय को नहीं बदलते है, तो वे संविधान के प्रति अटूट आस्था के कारण याचिका लगाकर न्यायालय से आग्रह करेंगे कि सरकार के 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित करने के निर्णय पर रोक लगायी जाये।