ऊं” से” नम:शिवाय ” की एवं इस पंचाक्षर से हुई मातृकावर्ण की उत्पत्ति:पं०सुशील

(मातृकावर्ण से शिरोमंत्र तथा गायत्री का प्राकट्य हुआ)
श्री दुर्गा मंदिर देवकी नगर भोपाल बैरसिया रोड भोपाल में चल रही श्री शिव महापुराण की कथा में कथा वाचक पंडित सुशील महाराज ने श्री शिवमहापुराण में मौजूद प्रमाण के आधार पर जानकारी देते हुए बताया है कि प्रणव मंत्र ” ऊं “से ही ” नमः शिवाय “मंत्र की उत्पत्ति हुई है । इस पंचाक्षर मंत्र से मातृकावर्ण की उत्पत्ति हुई है । इसी से शिरोमंत्र तथा चार मुखों से गायत्री का प्रकट हुआ है ।गायत्री से वेद एवं वेदों से करोड़ों मंत्र निकले हैं । उन मत्रों से विभिन्न कार्यों की सिद्धि होती है । लेकिन इस प्रणव मंत्र ” ऊं ” से एवं पंचाक्षर मंत्र “नमः शिवाय” से संपूर्ण मनोरथों की सिद्धि प्राप्त होती है । इस “ऊं नम: शिवाय ” मंत्र से भोग एवं मोक्ष दोनों की सिद्धि प्राप्त होती है । इस प्रणवाक्षर मंत्र की दीक्षा ब्रह्मा एवं विष्णु भगवान ने आदि शिव से प्राप्त की थी । ब्रह्मा एवं विष्णु अपने आपको सामर्थ्यवान बनाने के लिए निरंतर इस प्रणव मंत्र का ही जप करते रहते हैं । इसलिए सभी श्रद्धालुओं को शिवापुराण में बताए गए भोले शिव के इस मूल मंत्र “ऊं न:शिवाय”का जाप करके अपने सभी मनोरथों को पूर्ण करने का उपाय निरन्तर करते रहना चाहिए ।
कथा शुभारंभ के पूर्व पंडित लोचन शास्त्री के द्वारा सामूहिक रूप से सभी श्रद्धालुओं के पार्थिव शिवलिंग का पूजन विधि विधान से करवाया गया । वहीं श्री शिव महापुराण पुस्तक की पूजा श्री श्याम सुंदर शर्मा जी के द्वारा की गई । एवं श्री प्रकाश यदुवंशी द्वारा शिव महापुराण की आरती उतारि गई।
(पंडित सुशील महाराज )
कथावाचक एवं पीठाचार्य श्री शिव शक्ति धाम सिद्धाश्रम निपानिया जाट
भोपाल म0प्र0