आदिवासी गांव जहां स्थापित की गई है रावण की प्रतिमा
छिंदवाड़ा । लंकापति रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है। दशहरा के दिन रावण का दहन किया जाता है, इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है, लेकिन छिंदवाड़ा जिले के विकासखंड के ग्राम जमुनिया में नवरात्र पर्व के मौके पर जहां दुर्गा पंडाल सजाए गए हैं। वहीं यहां रावण की प्रतिमा भी स्थापित की गई है। जमुनिया के टंकी मोहल्ले में आदिवासी समाज के कुछ लोगों ने इस बार नवरात्र के दौरान रावण की प्रतिमा भी स्थापित की है। ऐसी प्रतिमा किसी एक गांव में नहीं, बल्कि जिले के कुछ और गांवों में भी देखी जा रही है। सुबह-शाम जिस तरह मां दुर्गा की आरती पूजा पंडालों में हो रही है, ठीक वैसे ही रावण की भी पूजा की जा रही है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां आरती की बजाय समरणी की जाती है। आदिवासी समाज के लोगों द्वारा बैठाई गई रावण की प्रतिमा को भगवान शिव की पूजा करते दिखाया गया है। यहां पंडाल में बैठे पंडा सुमित सल्लाम का कहना है कि हमने जिस प्रतिमा की स्थापना की है, वे रामायण के रावण नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों द्वारा पूजे जाने वाले रावण हैं। पिछले कई सालों से हमारे पूर्वज इनकी पूजा करते आ रहे हैं। हमें किसी धर्म से बैर नहीं है। दुर्गा पंडाल में पूजा होती है, हम उसके बाद ही हमारे पंडाल में समरणी करते हैं। भगवान शिव हमारे आदिवासी समाज के आराध्य हैं।
कलश की हुई स्थापना
जिस प्रकार मां दुर्गा की स्थापना के साथ कलश स्थापित किए जाते हैं, वैसे ही इस बार आदिवासी समुदाय के लोगों ने पंडाल में पांच कलश स्थापित किए हैं। इन्हें प्रतिमा के ठीक सामने रखा गया है। 9 दिन पूजा-अर्चना कर मां दुर्गा की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। आदिवासी समाज के लोगों ने भी 9 दिन प्रतिमा बैठाने के बाद दशहरा पर विसर्जन का फैसला किया है।
नगर निगम छिंदवाड़ा के महापौर विक्रम अहके ने रामलीला कार्यक्रम में खुलकर रावण के पुजारियों पर कटाक्ष किया एवं भगवान श्रीराम में अपनी आस्था को प्रकट किया। महापौर अहाके ने कहा कि प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी रावण पुतले का दहन स्थानीय दशहरा मैदान में किया जाएगा। महापौर ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपने जीवन लीला में सदैव सभी वर्ग के लोगों से समान व्यवहार रखा है। उनका माता शबरी, निषादराज एवं केवट के प्रति सम्मान सामाजिक समरसता का एक अद्भुत उदाहरण है। जबकि रावण सदैव से बुराई और अहंकार का ही प्रतीक है। सनातन धर्म के विरुद्ध एवं रावण के पक्ष में खड़े लोग धर्म के विरुद्ध ही है। ऐसे लोगों के बहकावे में न आकर हमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के पद चिन्हों में चलने की आवश्यकता है।