बाहरी वस्तु से कभी नित्य आनन्द प्राप्त नहीं हो सकता- स्वामी विदितात्मानंद सरस्वती
आचार्य शंकर न्यास द्वारा 72 वीं शंकर व्याख्यानमाला का ऑनलाइन आयोजन
ब्रह्मसूत्र के चौथे सूत्र ‘तत्तु समन्वयात्’ पर स्वामी विदितात्मानंद सरस्वती ने व्यक्त किए विचार
उपनिषदों का तात्पर्य ब्रह्म को जानने में है- स्वामी विदितात्मानंद सरस्वती
भोपाल। उपनिषदों में निहित अद्वैत सिद्धान्त को साधारण जनमानस तक पहुँचाने वाले आचार्य शंकर की परम्परा को अक्षुण्ण रखने के लिये आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश शासन द्वारा पिछले 05 वर्षों से प्रतिमाह निरंतर शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है। अक्टूबर माह में न्यास द्वारा 72 वीं व्याख्यानमाला का ऑनलाइन आयोजन किया गया, जिसमें अध्यात्म विद्या मंदिर तत्त्वतीर्थ आश्रम के आचार्य स्वामी विदितात्मानंद सरस्वती ने ब्रह्मसूत्र के चौथे सूत्र ‘तत्तु समन्वयात्’ के अन्तिम भाग पर प्रकाश डाला। व्याख्यानमाला में देश के विभिन्न शहरों के लोगों ने ऑनलाइन जुड़कर स्वामी विदितात्मानंद सरस्वती जी को सुना। स्वामी विदितात्मानंद सरस्वती जी ने तत्तु समन्वयात् सूत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि – उपनिषदों का तात्पर्य ब्रह्म में है। उन्होंने बताया कि लोग उपनिषदों में वर्णित नित्यशुद्ध आत्मा का प्रकृत स्वरूप को न जानकर स्वयं को देह, मन, इन्द्रिय और बुद्धि के रूप में पहचानते हैं। आत्मा का वास्तविक स्वरूप को जानने के लिए ब्रह्म की जिज्ञासा आवश्यक है, वह ब्रह्म जो जगत की सृष्टि, स्थिति और लय का कर्ता है और वेदों के माध्यम से ही जिसका ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है. वेदों में वर्णित उपायों का पालन करके ही हम शाश्वत शांति को प्राप्त कर सकते हैं। बृहदारण्यक में वर्णित याज्ञवल्क्य- मैत्रेयी संवाद को उद्धृत करते हुए उन्होंने यह भी कहा कि बाह्य सुख की अपेक्षा आन्तरिक सुख ही सच्चा और नित्य है, जो आत्मा से प्राप्त होता है। आत्मा ही आनन्द स्वरूप है। इस व्याख्यान का सीधा प्रसारण न्यास के यूट्यूब चैनल एकात्म धाम पर किया गया। ज्ञात हो कि प्रति माह होने वाली शंकर व्याख्यानमाला में आद्यशंकराचार्य की परम्परा के ही एक संन्यासी द्वारा गूढ वैदान्तिक विषय पर प्रकाश डाला जाता है। व्याख्यानमाला ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों माध्यमों से आयोजित की जाती है, जिसमें वेदांतिक रुचि रखने वाले प्रदेश व देश के जिज्ञासु श्रोता सम्मिलित होते हैं। न्यास द्वारा पिछले 5 वर्षों से अधिक समय से निरंतर विविध विषयों पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया जा रहा है, जिसके माध्यम से देशभर के लाखों श्रोता जुड़े हैं। इसके अतिरिक्त न्यास द्वारा ओमकारेश्वर में एकात्मता का वैश्विक केंद्र – ‘एकात्म धाम’ विकसित किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत 108 फीट ऊंची आदि शंकराचार्य जी की ‘एकात्मता की प्रतिमा’ मान्धाता पर्वत पर स्थापित की गई।इससे अतिरिक्त अद्वैत लोक – संग्रहालय तथा आचार्य शंकर अंतरराष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान की भी स्थापना की जा रही है।
वक्ता परिचय – स्वामी विदितात्मानंद सरस्वती
स्वामी विदितात्मानंद सरस्वती अध्यात्म विद्या मंदिर, तत्त्वतीर्थ आश्रम, अहमदाबाद के संस्थापक आचार्य हैं। उनका जन्म 17 अप्रैल, 1939 को हुआ। स्वामीजी साउथ डाकोटा विश्वविद्यालय, अमरीका से यांत्रिकी अभियांत्रिकी में परास्नातक हैं।
स्वामीजी ने वर्ष 1973 में आर्ष विद्या गुरुकुलम् के संस्थापक पूज्य स्वामी दयानंद सरस्वती जी से संन्यास दीक्षा ग्रहण की व उनके मार्गदर्शन में संस्कृत व वेदान्त का गहन अध्ययन किया। स्वामीजी वर्ष 1981 से 1983 तक सांदीपनी साधनालय, मुम्बई में दो वर्षीय आवासीय वेदान्त पाठ्यक्रम के आचार्य रहे तथा पेनसिल्वेनिया आश्रम में भी आचार्य के रूप में वेदान्त का अध्यापन किया।
गत 40 वर्षों से स्वामीजी भारत के विभिन्न नगरों व विश्व के विभिन्न देशों में वेदान्त की शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। पूज्य स्वामीजी वर्षभर जनसामान्य के मध्य वेदांत के प्रचार-प्रसार हेतु नियमित सत्संग, शिविर और ज्ञान-यज्ञों का आयोजन करते हैं। अद्वैत वेदान्त पर स्वामीजी की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।