अध्यात्मखबरमध्य प्रदेश

जीवन का मूल उद्देश्य नित्य अनंत सुख की प्राप्ति है – स्वामिनी विमलानंद सरस्वती

भारत भवन में एकात्म संवाद आयोजित

क्या सोचना है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कैसे सोचना है,वेदांत हमें यही सिखाता है : स्वामिनी विमलानंद सरस्वती

भोपाल। आज से 20 से 30 वर्ष पूर्व जब भी हमसे कोई पूछता था कि आपके जीवन का लक्ष्य (गोल) क्या है तो हम यही कहते कि इंजीनियर, डॉक्टर और वकील बनना ही जीवन का लक्ष्य है। लेकिन मैं आपको यह बताना चाहती हूं कि यह सब आपके प्रोफेशनल गोल हो सकते हैं लेकिन जीवन का लक्ष्य यह नहीं हो सकता। मानव जीवन का लक्ष्य नित्य अनन्त सुख है। यह बात चिन्मय मिशन कोयंबटूर की प्रमुख स्वामिनी विमलानंद सरस्वती ने कही। स्वामिनी विमलानंद रविवार को भारत भवन में आयोजित एकात्म संवाद कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता शामिल थीं। इस दौरान स्वामिनी विमलानंद से दुबई की न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. श्वेता अदातिया ने अद्वैत वेदांत से जुड़े प्रश्न पूछे। जिस पर स्वामिनी विमलानंद ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा आज के समय में अद्वैत दर्शन ही विश्व में एकात्मता को स्थापित कर सकता है।

वेदांत हमे सोचने की दिशा देता है
चर्चा के सत्र को आगे बढ़ाते हुए स्वामिनी विमलानंद ने कहा कि जीवन में क्या सोचना है यह महत्वपूर्ण नहीं है कैसे सोचना है यह जरूरी है अद्वैत वेदांत हमे सोचने की दिशा प्रदान करता है। भ्रम और भय पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि डर हमें भगवान का दिया वह उपहार है जो हमें सुरक्षित करता है। लेकिन भय भगवान का उपहार नहीं है। स्वामिनी विमलानंद ने कहा कि वेदांत मस्तिष्क को मन और बुद्धि में विभाजित करता है। वेदांत की अनुभूति मस्तिष्क में होती है मन में नहीं। यही कारण है कई बार हम मनमानी को बुद्धिमानी समझने की गलती करते हैं।

तीन अवस्थाओं पर की चर्चा
संवाद सत्र के अगले क्रम में स्वामिनी विमलानंद ने तीन अवस्थाओं जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्था पर चर्चा करते हुए कहा कि जागृत अवस्था में व्यक्ति अपनी इंद्रियों के ज़रिए बाहरी दुनिया का अनुभव करते हैं और उनके आधार पर कर्म करते हैं। स्वप्न अवस्था में व्यक्ति शारीरिक रूप से तो उपस्थित होता है लेकिन मानसिक रूप से नहीं। वहीं सुसुप्ति गहरी नींद की अवस्था होती है। इस अवस्था में व्यक्ति को कोई सपना नहीं आता और वह खुद का भी भान खो देता है। स्वामिनी विमलानंद ने कहा कि वेदांत के दर्शन में, सत्-चित्-आनंद को ब्रह्म के तीन गुणों के पर्याय के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह शुद्ध चेतना, एकता और परम वास्तविकता का सर्वोच्च आनंदमय अनुभव है। उन्होंने कहा कि सत्-चित्-आनंद को आत्मा की शाश्वत और एकीकृत अवधारणा मानते हैं, जो स्थान, पदार्थ और समय से परे है।

 

नृत्य में अद्वैत पर कार्यशाला आज से, देशभर के प्रमुख कलाकार-अध्येता होंगे शामिल

तीन दिवसीय नृत्य में अद्वैत पर कार्यशाला
भारत भवन में आज से अद्वैत’ विषय पर तीन दिवसीय कार्यशाला सुबह 9 बजे से शुरू होगी,जिसमें नृत्य से जुड़े विविध सत्र आयोजित होंगे। विश्व प्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना पद्म विभूषण डॉ. पद्मा सुब्रमण्यम, नृत्यांगना डॉ.पद्मजा सुरेश, केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा, कला मर्मज्ञ डॉ.राधावल्लभ त्रिपाठी सहित कथक,भरतनाट्यम,ओडिसी,मोहिनीअट्टममणिपुरी नृत्य अकादमी, कथक केन्‍द्र नई दिल्‍ली कथक केन्‍द्र भोपाल,राजा मानसिंह तोमर संगीत विश्‍विवद्यालय खैरागढ़ कला एवं संगीत विश्‍वविद्यालय आदि स्थानों एवं इन शैली के 60 नृत्य अध्येता एवं कलाकार सम्मिलित होंगे। वहीं शाम 7 बजे से दर्शकों- श्रोताओं के लिए संकीर्तन में गायक हर्षल पुलेकर का गायन होगा।

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