संपादकीय

बेल की पत्तियां.

 

डॉ.मनीषा भारद्वाज

सावन का महीना हो या शिवरात्रि का पर्व। यह प्रमुख कर्णप्रिय भजन हम सभी ने सुना हे।लेकिन यदि हम ये कहें कि बेल की पत्तियां ही नहीं पूरा वृक्ष ही भक्ति और प्रकृति के साथ साथ स्वास्थ्य के लिए भी अनमोल हे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।भारतीय ज्ञान परंपराओं को जानना और अपनाना युवाओं के लिए न केवल अपनी पहचान को समझने, बल्कि जीवन में संतुलन और शांति पाने का एक अद्वितीय तरीका है। इसी ज्ञान परम्परा में बेल पत्र का महत्व आता है । बेलपत्र या बिल्व पत्र भगवान शिव को अर्पण करने की सदियों से चली आ रही परंपरा न केवल आध्यात्मिक हैं, बल्कि प्रकृति के साथ गहरे संबंधों का भी संदेश देती है । इसके साथ ही बिल्व वृक्ष के धार्मिक, पौराणिक ऐतिहासिक और वैज्ञानिक महत्व को भी इंगित करती है । बेल वृक्ष का इतिहास वैदिक काल से ज्ञात है और इसका उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों जैसे कि आयुर्वेद, चरक संहिता और सुश्रुत संहिता के अतिरिक्त प्राचीन बौद्ध और जैन साहित्य में भी मिलता है । बिल्व फल के छायाचित्र अजंता की गुफाओं में भी उकेरित हैं।हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय भगवान नीलकंठ ने इस धरा को विनाश से बचने के लिए हलाहल विष का पान किया । विष की जलन और तपन को शांत करने के लिए देवताओं के द्वारा भगवान शिव को बेल के पत्ते अर्पण किए । उसी समय भगवान शिव ने प्रसन्न होकर बिल वृक्ष को आशीर्वाद देकर अपना प्रिय वृक्ष घोषित किया ।
सूक्ष्म ,सर्वव्यापी ,सार्वभौमिक ,अविनाशी .आदि शब्द है, शिव जिसमें सारा ब्रह्मांड समाहित है। शिव जो निर्विकार , निष्काम , विज्ञानान्दघन, आबालवृद्ध आरोग्यकर्ता और महौषधियों के ज्ञाता वैद्यनाथ हैं। शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीकात्मक और निराकार स्वरूप है । शिव पुराण के अनुसार इस निराकार लिंग स्वरूप का आविर्भाव फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी तिथि यानी महाशिवरात्रि के दिन हुआ था। कुछ पौराणिक कथाओं में महाशिवरात्रि भगवान चंद्रमौली और मां पार्वती के पाणिग्रहण की भी द्योतक है । बिल्वाष्टक और शिवपुराण के अनुसार बिल्ववृक्ष को ‘श्रीवृक्ष ‘ ‘ शिवद्रुम , और कल्पवृक्ष भी कहा गया है । बिल्व वृक्ष की जड़ों में देवी गिरिजा , तने में माहेश्वरी ,शाखाओं में दक्षायणी , पत्तियों में पार्वती , फूलों में गौरी और फलों में देवी कात्यायनी का वास माना गया है।
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रम् च त्र्यायुधम् ।
त्रिजन्मपापसंहारम् एकबिल्वं शिवार्पणम्
उपरोक्त श्लोक से पता चलता है कि बेल पत्र का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि इसके विभिन्न प्रतीक और अर्थ भी हैं। बेल की त्रिपर्णीय पत्तियां प्रतीक हैं त्रिनेत्र महादेव की , त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश की, त्रिगुणों सत् रज और तम की ,त्र्यायुध (त्रिशूल, डमरू और पाश) की और त्रिलोक पृथ्वी स्वर्ग और पाताल जिनका अंततः शिव संहार करते हैं। बेल पत्र तीन जन्मों के पापों का संहार करता है।
संस्कृत मे बिल्व, श्रीफल ,मराठी मे बेल , गुजराती मे बिल्व, तमिल और मलयालम मे विल्वम और अंग्रेजी मे इंडियन बेल या स्टोन एप्पल कहा जाने वाले बेल वृक्ष का वैज्ञानिक नाम एगल मार्मेलास ( Aegle marmelos) है और यह नींबू प्रजाति वाले रूटेसी ( Rutaceae ) परिवार का सदस्य है ।
. बेल के औषधीय गुणों को लेकर कई शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं. इन शोध पत्रों के अनुसार, बेल में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं जो क्रमशः शरीर में सूजन और दर्द को कम करने में व बैक्टीरिया के विकास को रोकने में मदद करते हैं। इसके साथ ही इसमें फंगल संक्रमणों को रोकने वाले एंटी-फंगल और एंटी-ऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते हैं, जो शरीर की कोशिकाओं को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाते हैं। इन औषधीय गुणों का कारण है बेल वृक्ष में पाए जाने वाले विभिन्न तत्व शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देते हैं। बेल पत्तों में सैपोनिन्स पाए जाते हैं, जो शरीर की पाचन प्रक्रिया को सुधारने में मदद करते है । इसके अलावा बेल के पत्तों में विटामिन सी और विटामिन ए भी पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इस वृक्ष में कैल्शियम, मैग्नीशियम,कॉपर, जिंक, पोटेशियम, फॉस्फोरस पोटेशियम ,मैग्नीशियम, सोडियम, जिंक, आयरन, कॉपर, मैग्नीशियम और सेलेनियम जैसे खनिज तत्व , अमीनो एसिड और फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं ।बेल का पका हुआ फल भी विटामिन ए, बी, प्रोटीन, कैरोटिन तथा खनिज लवण का अच्छा स्त्रोत है| बेल के पत्तियों में पाए जाने वाले फ्लेवोनोइड्स और फेनोलिक एसिड मधुमेह को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। बेल के फल और पत्तियों में पाए जाने वाले विटामिन और मिनरल्स त्वचा व बालों को स्वस्थ और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के साथ ही किडनी की समस्याओं को भी दूर करने में मदद करते हैं । बेल से मिलने वाले फाइबर और विटामिन पाचन तंत्र की समस्याओं को दूर करते हैं। इसके जड़, तने की छाल पुष्प एवं पत्ती का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है| जैसे बेलगिरी , बेलादी वटी , बेलादी क्वाथ, बेलादी अवलेह और बेलादी अर्क इत्यादि ।
बेल वृक्ष वनस्पति विविधता का संरक्षण करता है, क्योंकि यह विभिन्न प्रकार के पौधों को अपने आसपास उगने का अवसर प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, बेल वृक्ष के नीचे कई प्रकार के पौधे जैसे कि तुलसी, नीम, और आंवला उगते हैं।यह जल चक्र को बनाए रखने , वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने और मिट्टी का संरक्षण भी करता है, क्योंकि इसकी जड़ें मिट्टी को स्थिर करने में मदद करती हैं। बेल का वृक्ष प्रतीक है धैर्य और संयम का ।यह मात्र एक वृक्ष नहीं, बल्कि वाहक है हमारी आस्था, प्रकृति और परंपरा का जो हमें सिखाता है कि कैसे छोटी-छोटी चीजें भी हमारे जीवन में सकारात्मकता ला सकती हैं ।
(लेखक शिक्षाविद एवं वनस्पति वैज्ञानिक हैं)

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