आत्मा का धर्म त्याग है- पण्डित अरविन्द जी शास्त्री
पाठशाला के बच्चों ने किया नुक्कड़ नाटक का बेहतरीन मंचन

पंच इन्द्रियों पर नियंत्रण तथा नियमों के पालन करने हेतु दिया सुंदर सन्देश
फ़ास्ट फ़ूड, रात्रि भोजन का किया त्याग, मोबाइल का उपयोग किया कम
श्री 1008 भगवान महावीर दिगम्बर जैन मंदिर साकेत नगर में दशलक्षण पर्व के अवसर पर एक ओर जहाँ श्रद्धा और भक्ति की गंगा प्रवाहित हो रही है, नित्य नियम, अभिषेक, पूजन, विधान द्वारा श्री जी के अनंत गुणों की वंदना की जा रही है वहीं दूसरी ओर कई धार्मिक प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जा रहा है जिनके माध्यम से बच्चों और युवाओं को धर्म के बारे में जानने एवं समझने का सुअवसर भी प्राप्त हो रहा है। राँची से पधारे विद्वान पण्डित अरविन्द जी शास्त्री ने उत्तम त्याग के अवसर ज्ञान की निर्झरिणी बहाते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि “मनुष्य जन्म की सार्थकता उत्तम त्याग धर्म में निहित है। त्याग के बिना इस सृष्टि का सञ्चालन असंभव है। उत्तम त्याग धर्म दो प्रकार का होता है, निश्चय त्याग और व्यवहार त्याग। राग-द्वेष आदि विकृत भावों का त्याग करना निश्चय त्याग धर्म है, वहीं सुपात्रों को योग्य वस्तुओं का दान करना व्यवहार त्याग। आपने प्रवचन में आगे बताया कि अक्सर त्याग और दान को एक मान लिया जाता है। जबकि इन दोनों में कोई समानता नहीं है। दान एक लोक व्यवहार है जिससे सामाजिक व्यवस्था चलती है जबकि त्याग आत्मा का धर्म है। जैन धर्म में औषधि दान, ज्ञान दान, अभय दान एवं आहार दान का विशेष महत्व बतलाया गया है। अपनी धन-सम्पदा का प्राणी मात्र के कल्याण के लिए दान देना ही उसका सही उपयोग करना है। धन की तीन दशायें होती हैं, दान, भोग और नाश। जो अपने धन का दान और भोग नहीं करता उसके धन की तीसरी दशा अर्थात नाश अवश्य होता है।” हेमलता जैन ‘रचना’ ने बताया कि साँस्कृतिक कार्यक्रमों की शृँखला में साकेत नगर मंदिर पाठशाला के बच्चों ने जैन धर्म के नियमों तथा उद्देश्यों को बेहद खूबसूरत भाव-भंगिमाओं द्वारा नुक्कड़ नाटक “कुछ-कुछ होता है” में बेहरीन मंचन करते हुए, मंझे हुए कलाकारों की भाँति अभिनय द्वारा सार्थक प्रस्तुति दी, जिसे समाजजनों ने मुक्तकंठ से सराहा और पुरुस्कारों की झड़ी लगा दी। नन्हे-मुन्ने बच्चों ने अपने नाटक से ना केवल यह सन्देश दिया कि हमें अपनी पांचों इन्द्रियों को अपने वश में रखना चाहिए बल्कि इनका सही उपयोग कर मानव जीवन को सार्थक भी बनाना चाहिए। लाखों पर्यायों में भ्रमण के पश्चात् हमें यह मानव जन्म मिलता है। मनुष्य योनि प्राप्त करने के लिए देव भी तरसते हैं क्यूंकि मानव जन्म से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है साथ ही उत्तम त्याग धर्म के अवसर पर बच्चों ने फ़ास्ट फ़ूड, रात्रि भोजन का त्याग करते हुए मोबाइल से भी यथा संभव दूरी बनाने का संकल्प लिया। इसके पूर्व आयोजित जैन भजन अंताक्षरी प्रतियोगिता में महिला-पुरुषों की संयुक्त टीमों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया जिसमें वैशाली भागवतकर, मनोज जैन रेलवे, यश बड़कुल, सीमा जैन तथा
वर्षा जैन की टीम “ब्रह्मचर्य” विजेता रही। आगामी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शृंखला में सर्वार्थ सिद्धि की छात्राओं द्वारा लघु नाटिका के साथ ही लाडू सजाओ, तोरण सजाओ आदि प्रतियोगितायें भी सम्पन्न होंगी। उल्लेखनीय है कि श्रीमती प्रतिभा टोंग्या, पारुल जैन, अपर्णा जैन तथा प्रज्ञा जैन विगत 10 वर्षों से मंदिर जी में पाठशाला का सतत सञ्चालन कर नन्हें-मुन्नों में धर्म तथा संस्कारों का बीजारोपण कर रही हैं जिसमें मंदिर अध्यक्ष नरेंद्र टोंग्या तथा समस्त कार्यकारिणी समिति का पूर्ण सहयोग प्राप्त होता है। वहीं साकेत नगर मंदिर जी की भोजन शाला में भी नियमित रूप से 450 से अधिक व्यक्ति शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण कर रहे हैं।