उत्तम आकिंचन धर्म का सार, आनंद का भंडार है- पंडित अरविंद जी शास्त्री
ममत्व के परित्याग को आकिंचन कहते हैं।

ममत्व के परित्याग को आकिंचन कहते हैं।
आकिंचन ब्रम्हचर्य धर्म दस सार है!
चहुँगति दुखते काढी, मुकती करतार है!!
“उत्तम आकिंचन धर्म का सार, आनंद का भंडार है” उक्त उद्गार पंडित अरविंद जी शास्त्री ने दशलक्षण पर्व के नौवें दिन उत्तम आकिंचन धर्म पर प्रकाश डालते हुए व्यक्त किये। आपने बताया कि आकिंचन धर्म 24 प्रकार के परिग्रह के त्याग पूर्वक होता है जिसमें अंतरंग परिग्रह में पहला परिग्रह मिथ्यात्व है जो सबसे बड़ा पाप भी है, इसी मोहनीय कर्म का नाश होने पर जीव अनंत काल के लिए सुखी हो जाता है। ममत्व के परित्याग को आकिंचन कहते हैं। आकिंचन का अर्थ होता है “मेरा कुछ भी नहीं है”। घर-द्वार,धन- दौलत, बंधु-बांधव आदि यहाँ तक कि शरीर भी मेरा नहीं है, इस प्रकार का अनासक्ति भाव उत्पन्न होना उत्तम आकिंचन धर्म है। सबका त्याग करने के बाद भी उस त्याग के प्रति ममत्व रह सकता है। हमें वर्तमान पर्याय में जो शरीर मिला है उसको हम अपना समझते हैं, इसी मोह ममता या आसक्ति के कारण यदि अन्य कोई व्यक्ति, हमारे प्रिय व्यक्ति की सहायता करता है तो हम उसको अच्छा समझते हैं, उसे अपना हित चाहने वाला मानकर उससे स्नेह करते हैं, और जो हमारी प्रिय वस्तुओं को लेशमात्र भी हानि पहुंचाता है उसको हम अपना शत्रु समझकर उससे द्वेष करते हैं, लड़ते हैं, झगड़ते हैं इस तरह संसार का सारा झगड़ा हमारे द्वारा संसार के अन्य जड़ पदार्थों या चेतन जीवों को अपना मानने के कारण चल रहा है। हमारे आसपास उपस्थित पदार्थों के प्रति इसी ममता, आसक्ति को परिग्रह कहते हैं। आकिंचन्य धर्म में उस त्याग के प्रति होने वाले ममत्व का ही त्याग कराया जाता है। हेमलता जैन ‘रचना’ ने बताया कि श्री 1008 भगवान महावीर दिगम्बर जैन मंदिर साकेत नगर में साँस्कृतिक कार्यक्रमों की शृँखला में पाठशाला के बच्चों ने जैन धर्म के नियमों तथा उद्देश्यों को बेहद खूबसूरत भाव-भंगिमाओं द्वारा नाटक “कुछ-कुछ होता है” में बेहरीन मंचन करते हुए सार्थक प्रस्तुति दी, जिसे समाजजनों ने मुक्तकंठ से सराहा। नन्हे-मुन्ने बच्चों ने अपने नाटक से ना केवल यह सन्देश दिया कि हमें अपनी पांचों इन्द्रियों को अपने वश में रखना चाहिए बल्कि इनका सही उपयोग कर मानव जीवन को सार्थक भी बनाना चाहिए। पर्वराज पर्युषण पर्व के अवसर पर चलने वाली भोजन शाला में पहुँचने वाले छात्र-छात्राओं तथा बाहर से पधारने वाले समाजजनों की संख्या रोजाना बढ़ती जा रही है। अब रोजाना लगभग 600 लोगों को भोजन कराया जा रहा है।