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भगवान शंकर और विष्णु के मोहिनी रूप के पुत्र हैं अयप्पा स्वामी

केरल का सबरीमाला मंदिर भगवान अयप्पा की पूजा के लिए प्रसिद्ध है. भगवान अयप्पा सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं.सभी धर्म के लोगों को यहां प्रवेश मिलता है. इस मंदिर में आज भी 10-50 वर्ष की महिलाओं को प्रवेश बमुश्किल ही मिलता है, लेकिन प्रतिवर्ष यहां 30 लाख से अधिक लोग 41 दिन की विशेष पूजा विधियों को पूरा कर पहुंचते हैं. यहां के भगवान अयप्पा स्वामी की कथा भी अनूठी हैसबरीमाला मंदिर केरल का प्रसिद्ध मंदिर है. यह मंदिर इसलिए भी बहुत प्रसिद्ध है क्योंकि प्रतिवर्ष यहां 30 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. यह मंदिर राज्य के पठानमथिट्टा जिले में स्थित है. इस मंदिर की चर्चा सबसे अधिक 2018 में तब हुई थी, जब इस मंदिर से जुड़ा एक विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. सबरीमाला मंदिर में महिलाओं (10-50 वर्ष की आयु) का प्रवेश वर्जित है, इसके खिलाफ कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के इस नियम को संवैधानिक रूप से गलत बताता और कहा कि मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश दिया जाए. हालांकि यह एक सच्चाई ही है कि आज भी मंदिर में प्रतिबंधित आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश विवादित है. इस आलेख में जानें सबरीमाला मंदिर के भगवान अयप्पा स्वामी के जन्म की कहानी और मंदिर की खासियत.

कहां है सबरीमाला मंदिर?

सबरीमाला मंदिर केरल के पठानमथिट्टा जिले में स्थित है. यहां सबरीमाला नाम की एक पहाड़ी की चोटी पर यह अनोखा मंदिर स्थित है. यह मंदिर समुद्रतल से 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस पहाड़ी को रामायण की सबरी से जोड़कर भी देखा जाता है.

कौन हैं भगवान अयप्पा?

भगवान अयप्पा के बारे में केरल में जो कथा प्रचलित है, उसके अनुसार भगवान अयप्पा स्वामी भगवान शिव और भगवान विष्णु के मोहनी अवतार की संतान हैं. भगवान अयप्पा स्वामी के जन्म से जुड़ी एक कथा है जिसका जिक्र सबरीमाला मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट https://sabarimala.kerala.gov.in/पर भी उपलब्ध है. इस कथा के अनुसार मदुरै, तिरुनेलवेली और रामनाथपुरम तक फैले पुराने पांड्या साम्राज्य के शासक थिरुमाला नायकर द्वारा हटाए गए पांड्या वंश के सदस्य वल्लियुर, तेनकासी, शेंगोट्टा, अचनकोविल और शिवगिरी जैसी जगहों पर रहते थे. भगवान अयप्पा के पालक पिता, राजा राजशेखर इसी वंश के थे. राजशेखर एक न्यायप्रिय राजा थे, प्रजा उनका बहुत सम्मान करती थी, लेकिन राजा की कोई संतान नहीं थी. राजा और रानी ने बच्चे के लिए भगवान शिव से लगातार प्रार्थना की. लगभग उसी समय, महिषासुर नाम के एक राक्षस ने कड़ी तपस्या की और भगवान ब्रह्मा से आशीर्वाद प्राप्त किया, तब देवताओं ने मां दुर्गा की मदद से उसे मारा.महिषासुर की बहन महिषी ने अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए भगवान ब्रह्मा से वरदान लिया कि विष्णु (हरि) और शिव (हरण) की संतानों के अलावा कोई भी उसे नहीं मार सकता.आशीर्वाद प्राप्त करके वह अत्याचारी हो गई, तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया और मोहिनी और भगवान शिव के मिलन से एक बच्चा पैदा हुआ, जो भगवान अयप्पा हैं. अयप्पा स्वामी के पालक पिता पंडालम के राजा राजशेखर बने. अयप्पा स्वामी का नाम जन्म के वक्त मणिकंदन रखा गया था, क्योंकि उनके गले में सोने की चेन थी. अयप्पा स्वामी ने 12 वर्ष की उम्र में ही महिषी का वध कर दिया. अपने जन्म का उद्देश्य पूरा करने के बाद अयप्पा स्वामी वापस देवलोक जाने वाले थे, तो उनके पालक पिता ने उनसे कहा कि वे उनके लिए एक मंदिर बनवाना चाहते हैं, तब मणिकंदन ने एक तीर मारा और वह सबरीमाला पर गिरा जहां आज उनका मंदिर है.

मंदिर में कब होती है पूजा और क्या हैं नियम?

सबरीमाला मंदिर पूरे साल खुला नहीं रहता है. यह मंदिर साल में कुछ खास अवसरों पर ही खुलता है. नवंबर महीने में यहां मंडलपूजा होती है, उसके बाद मकरविलक्कु उत्सव 14 जनवरी को आयोजित होता है. यह एक सप्ताह तक चलता है. मंदिर आने वाले लोग 41 दिनों तक विशेष नियम में बंधे होते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और मंदिर की 18 सीढ़ियों को चढ़कर यहां आते हैं.

धार्मिक सद्‌भावना का देता है संदेश

भगवान अयप्पा के एक मुस्लिम भक्त थे वावर. उन्हें वावरुस्वामी भी कहा जाता है. वे एक मुस्लिम संत थे. सबरीमाला में वावरुस्वामी को समर्पित एक मंदिर है, साथ ही वावरुस्वामी की मस्जिद भी है. सबरीमाला आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु पहले वावरुस्वामी के मस्जिद में प्रणाम करते हैं, उसके बाद सीढ़ियां चढ़कर अयप्पा स्वामी के दर्शन करते हैं.

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