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विश्व रंग 2025 का भव्य उद्घाटन भारतीय परंपरा और आधुनिक विचारधारा के बीच एक सशक्त सांस्कृतिक सेतु है विश्वरंग : राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल

वैश्विक समाज को मानवीय संवेदना और सांस्कृतिक संतुलन का अद्भुत दृष्टिकोण प्रदान करता है भारतीय साहित्य : मारिशस के पूर्व राष्ट्रपति श्री पृथ्वीराज सिंह जी रूपन भोपाल, 27 नवंबर 2025

अंतरराष्ट्रीय साहित्य–कला महोत्सव ‘विश्व रंग 2025’ के सातवें संस्करण का आज भोपाल स्थित रविन्द्र भवन परिसर में अत्यंत भव्य शुभारंभ हुआ। समारोह में महामहिम राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल, मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति श्री पृथ्वीराज सिंह, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और विश्व रंग के महानिदेशक डॉ. संतोष चौबे, SGSU के कुलाधिपति डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी, सह–निदेशक विश्वरंग डॉ. अदिति वत्स चतुर्वेदी सहित देश–विदेश के अनेक प्रतिष्ठित साहित्यकारों, विद्वानों और कला–संस्कृति प्रतिनिधियों ने उपस्थिति दर्ज की। उद्घाटन समारोह में ‘विश्वरंग हिंदी रिपोर्ट’ और ‘विश्वरंजन क्लॉज़’ का लोकार्पण किया गया। इसके साथ ही प्रतिष्ठित रचनाकार ममता कालिया, हरीश मीनाश्रु, चन्द्रभान ख्याल, एच.एन. शिवप्रकाश, लक्ष्मण गायकवाड़ और परेश नरेन्द्र कामत को ‘विश्वरंग मानद अलंकरण’ से सम्मानित किया गया। भारतीय डाक विभाग द्वारा विश्वरंग के सातवें अध्याय पर आधारित विशेष अलंकरण का विमोचन भी इस अवसर पर किया गया, जिसने महोत्सव की गरिमा में और अधिक निखार जोड़ा।

उद्घाटन सत्र के उद्बोधन पूरे आयोजन का वैचारिक केन्द्र बनकर उभरे। डॉ. संतोष चौबे ने अपने गूढ़ और सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि विश्व रंग केवल साहित्य–कला का महोत्सव नहीं, बल्कि सभ्यता, समन्वय, बहुभाषिकता और वैश्विक सौहार्द का जीवंत मंच है, जो भारतीय सांस्कृतिक आत्मविश्वास और रचनात्मक चेतना को नई ऊँचाइयों तक ले जाता है।

मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति श्री पृथ्वीराज सिंह ने भारतीय भाषाओं की विश्व–व्यापी क्षमता और संवेदनशील दृष्टिकोण पर बात करते हुए कहा कि भारतीय साहित्य वैश्विक समाज को मानवीय संवेदना और सांस्कृतिक संतुलन का अद्भुत दृष्टिकोण प्रदान करता है।

महामहिम राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल ने अपने उद्बोधन में साहित्य और संस्कृति को समाज की नैतिक दिशा को निर्धारित करने वाली शक्ति बताते हुए विश्व रंग की प्रशंसा की और इसे भारतीय परंपरा और आधुनिक विचारधारा के बीच एक सशक्त सांस्कृतिक सेतु बताया।

सह–निदेशक विश्वरंग डॉ. अदिति वत्स चतुर्वेदी ने ‘मानद अलंकरण’ की संकल्पना को समझाते हुए कहा कि यह सम्मान केवल रचनाकारों के व्यक्तिगत योगदान का नहीं, बल्कि भारतीय भाषाओं की समृद्धि और वैश्विक सांस्कृतिक एकता का उत्सव है, जो विश्व रंग की वैचारिक दृष्टि को और विस्तृत आयाम देता है। इन सभी वक्तव्यों ने उद्घाटन दिवस को वैचारिक गहराई, सांस्कृतिक गरिमा और अंतरराष्ट्रीय संवाद की दिशा में एक ऊँची उड़ान प्रदान की।

पारंपरिक स्वागत और दीप प्रज्वलन के बाद शुभ्रतो एवं उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत मधुर बंगाली संगीत ने उद्घाटन सत्र को एक सौम्य, कलात्मक और गहन सांस्कृतिक आभा से भर दिया। इसके तुरंत बाद प्रदर्शित लघु फ़िल्म ने विश्व रंग की सात अध्यायों की रचनात्मक यात्रा और उसकी वैश्विक पहचान को प्रभावपूर्ण ढंग से सामने रखा।

उद्घाटन से पूर्व निकली भव्य शोभायात्रा ने महोत्सव के वातावरण को एक बहुरंगी उत्सव में बदल दिया। असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, पंजाब, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश तथा विभिन्न विदेशी संस्कृतियों के प्रतिनिधि दलों ने अपनी पारंपरिक वेशभूषा, सुर–लय और लोकधुनों के साथ सहभागी होकर भारतीय सांस्कृतिक विविधता को जीवंत रूप दिया। बिहू, राजवाड़ी, आड़ा, खड़ा, मटकी और गरबा जैसे लोकनृत्यों ने पूरे परिसर को उत्साह, ऊर्जा और लोक–संगीत की मधुर तरंगों से भर दिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रतिमा पर बाउल संगीत और रवीन्द्र संगीत की प्रस्तुति ने शोभायात्रा को एक आध्यात्मिक गरिमा प्रदान की, जिसने इसे केवल सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि भावनात्मक अनुभव बना दिया। रवीन्द्र भवन परिसर में सजी विविध प्रदर्शनियों ने पहले ही दिन भारी आकर्षण बटोरा। असम हैंडलूम, पारंपरिक ज्वेलरी, मणिपुर फेस्टिवल, मालवा की मटकी नृत्य–परंपरा, गुजरात, ओडिशा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार की लोकपरिधान, विरासत, हस्तशिल्प और पारंपरिक व्यंजनों ने आगंतुकों को भारतीय संस्कृति की गहराइयों से रूबरू कराया। पिछले 100 वर्षों की समाचार सुर्खियों पर आधारित ऐतिहासिक प्रदर्शनी, गिरमिटिया इतिहास पर केंद्रित प्रदर्शनी और भारतीय ज्ञान–परंपरा को प्रदर्शित करती ऋषि, वैज्ञानिक प्रदर्शनी ने भी दर्शकों का विशेष ध्यान आकर्षित किया।

श्रीराम भारतीय कला केंद्र की प्रस्तुति
भगवान कृष्ण की लीलाओं को दर्शाने वाली नृत्य प्रस्तुति ने मोह लिया दर्शकों का मन
श्रीराम भारतीय कला केंद्र की पहचान पौराणिक कथाओं को प्रदर्शित करने के लिए बनी हुई है. फिर चाहे वो रामायण हो या अन्य कोई पौराणिक कथा. यह कला केंद्र एक ऐसी ही 3,000 साल पहले की कृष्ण की कथा को मंच पर जीवंत करता नजर आ रहा है. नृत्य नाटिका कृष्णा का यह 48वां संस्करण है.

भोपाल: भोपाल के रविंद्र भवन मुक्तकाश मंच में कृष्ण जन्म से लेकर पूरे महाभारत तक की लीलाओं को दर्शाया गया. प्रस्तुति में कलाकारों की साज सज्जा भारतीय नृत्य शैली, भगवान कृष्ण के जीवन के हर तत्व को बड़े ही मनमोहक ढंग से दिखाया गया. ढाई घंटे तक चलने वाले इस कार्यक्रम में विभिन्न कलाकारों द्वारा प्रस्तुत एक आकर्षक नृत्य नाटिका के साथ दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

इन प्रस्तुति का लक्ष्य हमेशा भारतीय रीति-रिवाजों और मान्यताओं को इस तरह शामिल करना रहा है, जो उन्हें समकालीन संस्कृति के लिए प्रासंगिक बनाए. भारतीय पौराणिक कथाओं के अन्य अध्यायों की तरह भगवान कृष्ण अध्याय को विभिन्न प्रकार की कहानियों, मिथकों और जादू से बुना गया है, लेकिन इसे हमेशा मुख्य रूप से व्यावहारिक और दैनिक जीवन के कई पहलुओं में ज्ञान देने वाला माना गया है. मयूरभंज छऊ और कलारीपयट्टू जैसी पारंपरिक भारतीय नृत्य शैलियों का उपयोग करते हुए केंद्र भगवान कृष्ण के जीवन के हर तत्व को, उनके जन्म से लेकर महाकाव्य महाभारत में उनकी भागीदारी तक चित्रित करेगा.

पद्मश्री शोभा दीपक सिंह द्वारा निर्देशित नृत्य नाटिका ‘कृष्णा’ जीवन की सहज सच्चाइयों को व्यक्त करती है, उनकी आवश्यक सादगी के साथ प्रतिध्वनित होती है, जैसा कि भगवान कृष्ण ने स्पष्ट किया था. ये सत्य अनगिनत उपाख्यानों में गुंथे हुए हैं. उनके जीवन की कहानियों में जटिल रूप से गुंथे हुए हैं, जो पारंपरिक और समकालीन दोनों संदर्भों में प्रेरणा का एक सतत स्रोत हैं. अत्यंत सटीकता के साथ, मेरी दृष्टि और निष्पादन भगवान कृष्ण के अवतार के हर पहलू को सामने लाता है, प्रस्तुति को एक मनोरम जीवन शक्ति से भर देता है. असाधारण कोरियोग्राफी, प्रकाश व्यवस्था, वेशभूषा, ध्वनि, तकनीकी कौशल और गहन माहौल की परस्पर क्रिया एक ऐसी पृष्ठभूमि बनाती है, जो मेरी सभी प्रस्तुतियों में दिल को छू जाती है. उथल-पुथल के प्रदर्शन के बीच भी सभी बाधाओं के बावजूद वर्तमान की स्पष्ट अराजकता को पार करते हुए, परम शांति की आशा की किरण उभरती है.

जनसंपर्क विभाग

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