अध्यात्ममध्य प्रदेश

विश्व शांति सद्भावना मैत्री वंदना में दीप प्रज्वलन व सर्वधर्म समागम का ऐतिहासिक आयोजन सम्पन्न

वैशाख बुद्ध पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर 1111 दीपों से आलोकित हुआ महाविहार परिसर, जहां गूंजा करुणा, मैत्री और शांति का सार्वभौमिक संदेश

भोपाल, 11 मई — वैशाख बुद्ध पूर्णिमा (वर्ष 2569वीं) की पूर्व संध्या पर आज बुद्धभूमि महाविहार मोनेस्ट्री, चुनाभट्टी, भोपाल में एक अभूतपूर्व आयोजन “विश्व शांति सद्भावना मैत्री वंदना” सम्पन्न हुआ, जिसने राजधानी सहित समूचे अंचल में शांति, करुणा और समता का आलोक बिखेर दिया।कार्यक्रम की शुरुआत सायं 7 बजे भगवान बुद्ध के चरणों में पुष्पांजलि, पवित्र त्रिसरण-पंचशील और बुद्ध वंदना और धम्मदेशना से हुई। इसके उपरांत आयोजित दीप प्रज्वलन समारोह में 1111 दीपों को एक साथ प्रज्ज्वलित किया गया — जो मानवता के लिए प्रार्थना, करुणा और शांति के प्रतीक बने।यह दीप प्रज्वलन भगवान बुद्ध की 25 फीट ऊँची प्रतिमा के समक्ष किया गया, जो स्वयं एक मौन प्रेरणा और जागरण का प्रतीक है। हर दीप में एक संकल्प था — “मैं किसी प्राणी को intentionally कष्ट नहीं पहुँचाऊँगा, और जीवन में करूणा, मैत्री और समता को अपनाऊँगा।”

सर्वधर्म के धर्माचार्यों की ऐतिहासिक सहभागिता-:
इस अद्वितीय आयोजन में बौद्ध, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और जैन धर्मों के सम्माननीय धर्मगुरु, आचार्य एवं सामाजिक प्रतिनिधियों ने मंच साझा किया और एक स्वर में विश्व शांति का आह्वान किया।
धर्माचार्यों ने अपने उद्बोधनों में बताया कि—
सभी धर्मों की जड़ में करुणा, सह-अस्तित्व और आत्मकल्याण की भावना निहित है। अलग-अलग परंपराएँ, ग्रंथ और पूजा-पद्धतियाँ होने के बावजूद, सभी धर्म एक ही मूल सत्य की ओर संकेत करते हैं — कि मानव जीवन का उद्देश्य है दुखों का अंत और शांति की प्राप्ति।

-श्री श्री महंत अनिलानंद महाराज,हिंदू धर्माचार्य ने कहा कि सनातन धर्म का मूल ही है ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ — समस्त विश्व एक परिवार है। जब हम दूसरों को अपना समझते हैं, तभी भीतर करुणा उत्पन्न होती है। भेदभाव और अहंकार का त्याग ही आत्मकल्याण की दिशा है।

-हाजी मोहम्मद हारून साहब ,अध्यक्ष जमीयत उलमा ने कहा कुरआन के सन्दर्भ से बताया कि इस्लाम का वास्तविक अर्थ ही है “शांति और समर्पण”। अल्लाह का सबसे प्रिय वह है जो दूसरों को अमन देता है, मदद करता है, और खुदा के बनाए हर प्राणी में उसके नूर को देखता है।

-श्री गुरुचरण अरोड़ा सिंह,वरिष्ठ समाज सेवी,सिख धर्म ने गुरबाणी की पंक्तियाँ दोहराईं — “सरबत दा भला” — अर्थात सबका भला हो। उन्होंने कहा कि गुरुओं की वाणी करुणा, सेवा और साहस की प्रेरणा देती है, और यही आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

-प्रो मनोज जैन, कुलपति,जैन धर्म ने अहिंसा को धर्म का मूल बताते हुए कहा कि अहिंसा परमो धर्मः केवल उपदेश नहीं, बल्कि संकल्प है कि हम न विचार से, न वाणी से, और न ही कर्म से किसी को कष्ट दें।

-फादर आनंद मुथुंगल ,ईसाई धर्मगुरु ने बाइबल से उद्धरण देते हुए कहा कि ईश्वर प्रेम है, और जो प्रेम करता है वही ईश्वर के निकट है। यीशु मसीह ने क्रूस पर भी क्षमा का संदेश दिया — यह दर्शाता है कि करुणा की शक्ति प्रतिशोध से कहीं महान है।

अंत में कार्यक्रम का संयोजन भंते शाक्यपुत्र सागर थेरो, अध्यक्ष – दी बुद्धभूमि धम्मदूत संघ के कुशल मार्गदर्शन में सम्पन्न हुआ।
उन्होंने अपने संबोधन में कहा: “बुद्ध की वाणी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 2600 वर्ष पूर्व थी। हम सभी धर्मों के प्रतिनिधि एक साथ एक मंच पर हैं — यही है धम्म, यही है विश्वबंधुत्व, यही है भारत की आत्मा।” भंतेजी ने आगे कहा कि हम सभी धर्मों के प्रतिनिधि आज एक मंच पर हैं — यह दृश्य केवल एकता का प्रतीक नहीं, बल्कि यह उस मौन पुकार का उत्तर है जो विश्व की आत्मा दे रही है: “हमें युद्ध नहीं, शांति चाहिए। हमें अहंकार नहीं, संवाद चाहिए।”
युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं होता — वह हमारे भीतर भी होता है। घृणा, लोभ और असहिष्णुता का युद्ध। बुद्ध का धम्म हमें भीतर के उस युद्ध को समाप्त करना सिखाता है — और जब भीतर शांति होगी, तो बाहर भी शांति फलेगी।
मैं विशेष रूप से युवाओं से कहना चाहता हूँ — यह समय है कि हम सोशल मीडिया पर युद्ध के जयघोष नहीं, शांति के संदेश फैलाएँ। राष्ट्रभक्ति युद्ध से नहीं, सेवा और संवाद से सिद्ध होती है।
आगे कहा कि..धम्म कोई परंपरा नहीं, कोई रूढ़ि नहीं — यह एक जीवित जीवन-दर्शन है। यह हर युग में, हर परिस्थिति में, और हर मनुष्य को यह सिखाता है कि मैत्री ही समाधान है, करुणा ही साहस है, और शांति ही सच्ची शक्ति है।
आज जब 1111 दीप जलाए गए हैं, वे केवल प्रकाश के प्रतीक नहीं, बल्कि यह हमारी सामूहिक प्रार्थना हैं —
“जहाँ भी युद्ध हो, वहाँ शांति पहुँचे। जहाँ भी द्वेष हो, वहाँ मैत्री फले। और जहाँ भी अज्ञानता हो, वहाँ ज्ञान का प्रकाश जले।”

इन सभी धर्माचार्यों ने इस बात पर बल दिया कि आज मानवता का सबसे बड़ा संकट यह नहीं कि हम एक-दूसरे को नहीं समझते, बल्कि यह है कि हम एक-दूसरे को समझने का प्रयास नहीं करते। संवाद, सह-अस्तित्व और करुणा का अभ्यास ही विश्व शांति का मार्ग है।

आयोजन में सभी धर्म के धर्माचार्यों विभिन्न समाज के गणमान्य एवं किशन सूर्यवशी अध्यक्ष नगर निगम भोपाल उपस्थिति में विश्व शांति के लिए मंगल मैत्री से वातावरण को भावविभोर कर दिया। “सबका मंगल हो , सभी सुखी हो ”, “जल के थल के और गगन के सभी का कल्याण हो ” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की गूंज ने पूरे परिसर को मैत्री प्रकाश से भर दिया।कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में उपासक/उपासिका , सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्ध अनुयायी, महिलाएं, विद्यार्थी एवं विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। दीप जलाते समय सभी ने मौन प्रार्थना के साथ विश्व मानवता, शांति,पर्यावरण शुद्धता, सामाजिक समता एवं हिंसा-रहित समाज -देश की कामना की।

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