बालिकाओं के अधिकारों के संरक्षण और सशक्तिकरण विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला उच्च न्यायालय जबलपुर में संपन्न
बालिकाओं के सशक्तिकरण का सामुदायिक पुलिसिंग मॉडल सृजन अभियान की व्यापक सराहना

भोपाल, 4 सितंबर 2025। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की किशोर न्याय समिति एवं पोक्सो समिति के तत्वावधान में बालिकाओं के अधिकारों के संरक्षण, सशक्तिकरण एवं चुनौतियों के समाधान विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन 30 एवं 31 अगस्त 2025 को मध्यप्रदेश राज्य न्यायिक अकादमी, जबलपुर में किया गया।
इस कार्यशाला में न्यायपालिका, प्रशासनिक सेवाओं, पुलिस विभाग, शैक्षणिक जगत, समाजसेवी संगठनों, महिला एवं बाल विकास विभाग तथा यूनिसेफ के वरिष्ठ पदाधिकारियों, विशेषज्ञों और प्रतिनिधियों ने भाग लेकर अपने-अपने विचार व्यक्त किए। इस राष्ट्रीय कार्यशाला का उद्देश्य बालिका के अधिकारों, सुरक्षा और सशक्तिकरण के क्षेत्र में बहुआयामी दृष्टिकोण और रणनीतियाँ साझा करना था। कार्यशाला का मुख्य फोकस बाल विवाह, मानव तस्करी, हिंसा, साइबर सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामुदायिक भागीदारी और किशोर न्याय प्रणाली पर केंद्रित रहा।
कार्यक्रम का शुभारंभ न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला, सदस्य किशोर न्याय समिति, उच्च न्यायालय मध्यप्रदेश के अध्यक्षता में हुआ। उन्होंने कहा कि बाल एवं महिला अधिकारों की सुरक्षा समाज की साझा जिम्मेदारी है और इसके लिए न्यायपालिका, प्रशासन एवं शैक्षणिक संस्थानों के बीच समन्वय आवश्यक है। उन्होंने कहा कि “बालिकाओं की शिक्षा और सुरक्षा समाज की प्रगति का आधार है तथा सृजन जैसे कार्यक्रम इस दिशा में ठोस परिणाम देने में सक्षम हैं।
*हाईकोर्ट जुबेनाइल जस्टिस कमेटी ने सराहा सामुदायिक पुलिसिंग का ‘सृजन अभियान’*
कार्यक्रम में अन्य न्यायमूर्तियों ने भी सृजन अभियान को सामाजिक चेतना और सामूहिक प्रयास का उत्कृष्ट उदाहरण बताया। कार्यशाला में सृजन अभियान को एक अभिनव और प्रभावी सामुदायिक पुलिसिंग पहल के रूप में सराहा गया।
*क्या है “सृजन” अभियान ?*
सामुदायिक पुलिसिंग के अंतर्गत पुलिस द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर परिवार और मलिन बस्तियों में रहने वाली बालिकाओं के कल्याण के लिए ‘सृजन : एक पहल-शक्ति से सुरक्षा की ओर’ अभियान का संचालन किया गया। इस अभियान के तहत पुलिस ने कमजोर वर्ग की बस्तियों में जाकर स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से बालिकाओं को मौलिक अधिकारों, करियर काउंसलिंग और आत्मरक्षा सहित अन्य प्रशिक्षण दिया। इस अभियान के प्रभाव से बस्तियों में बाल विवाह, घरेलु हिंसा तथा बाल हिंसा में कमी आई है। उल्लेखनीय है कि इस अभियान को राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई सम्मान प्राप्त हुए हैं।
“सृजन अभियान” वर्तमान में प्रदेश के 16 जिलों में सफलतापूर्वक संचालित किया जा रहा है। इस अभियान को जनता से सकारात्मक सहयोग एवं सराहना प्राप्त हो रही है। आगामी समय में नवंबर माह तक इसे प्रदेश के सभी जिलों में सामुदायिक पुलिसिंग के माध्यम से विस्तारित किया जाएगा।
आज “सृजन” केवल पुलिस का एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन का रूप ले चुका है। इसने न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा प्राप्त की है, बल्कि भारत में सर्वश्रेष्ठ सामुदायिक पुलिसिंग अभियानों में स्थान भी बनाया है। मध्यप्रदेश पुलिस इस अभियान के माध्यम से कानून-व्यवस्था की संरक्षक से आगे बढ़कर एक संवेदनशील मार्गदर्शक और समाज के भविष्य को सुरक्षित एवं उज्ज्वल बनाने वाली शक्ति के रूप में अपनी भूमिका निभा रही है।
*बालिकाओं और महिलाओं ने अनैतिक गतिविधियां रोकने में पुलिस का किया सहयोग*
‘सृजन : एक पहल-शक्ति से सुरक्षा की ओर’ अभियान के अंतर्गत प्रशिक्षण के पश्चात पुलिस लगातार इन बालिकाओं से संपर्क में रही और उनसे अपने क्षेत्र और बस्तियों के बारे में जानकारी ली। बालिकाओं ने सहज रूप में समस्याओं के बारे में पुलिस को अवगत कराया और कानून एवं शांति व्यवस्था बनाए रखने और आपराधिक घटनाओं को नियंत्रित करने में अपना योगदान दिया। मलिन बस्तियों में रहने वाली बालिकाओं ने प्रशिक्षित होने के बाद अन्य बालिकाओं और महिलाओं को भी प्रशिक्षण दिया और अनैतिक गतिविधियों को रोकने में पुलिस का सहयोग किया। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां इन बालिकाओं की जागरूकता से पारिवारिक विवादों का निपटारा हुआ है।
उच्च न्यायालय के न्यायमूर्तिगणों ने कार्यशाला की विभिन्न तकनीकी सत्रों की अध्यक्षता की और महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ दीं। विशेषज्ञों ने बाल विवाह एवं मानव तस्करी की रोकथाम, साइबर सुरक्षा, किशोरियों के स्वास्थ्य, शिक्षा की गुणवत्ता, पुनर्वास और सामुदायिक सुरक्षा पर अपने विचार प्रस्तुत किए। एएसपी जितेन्द्र सिंह ने डिजिटल युग में बालिकाओं की सुरक्षा हेतु साइबर रणनीतियों पर चर्चा की, वहीं यूनिसेफ एवं शौर्य दल की सदस्य युवतियों ने अपने अनुभव साझा कर सृजन की उपयोगिता और असर को प्रत्यक्ष रूप से सामने रखा।
वक्ताओं ने बताया कि बालिकाओं की सुरक्षा केवल कानून-व्यवस्था का विषय नहीं है, बल्कि यह समाज की सामूहिक जिम्मेदारी भी है। बीते वर्षों में पुलिस विभाग द्वारा किए गए नवाचारों, जागरूकता अभियानों और त्वरित कार्रवाई की कार्यप्रणालियों ने सकारात्मक परिणाम दिए हैं। शौर्य दलों की सक्रियता, स्कूल-कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रम तथा साइबर सुरक्षा अभियान बालिकाओं को आत्मविश्वास और सुरक्षा का नया भरोसा दिला रहे हैं।
कार्यशाला के दौरान विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और कानूनी प्रावधानों, साइबर सुरक्षा, किशोरियों के स्वास्थ्य और यौवनावस्था संबंधी चुनौतियों पर विचार प्रस्तुत किए। शौर्य दीदी और सृजन जैसे सामुदायिक कार्यक्रमों के अनुभव साझा किए गए, जो बालिकाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण में मदद करते हैं। बालमित्र न्यायालय, किशोर न्याय बोर्ड और पुनर्वास सेवाओं की भूमिका पर भी चर्चा हुई। इसके साथ ही बालिकाओं और युवतियों ने अपने अनुभव, संघर्ष और आकांक्षाएँ साझा कीं, जिससे उनकी वास्तविक जरूरतों और अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिला।
वहीं दूसरी ओर, वक्ताओं ने यह भी स्वीकार किया कि डिजिटल प्लेटफार्म पर अपराधों की बढ़ती चुनौती, पारिवारिक व सामाजिक असमानताएँ तथा त्वरित न्याय की आवश्यकता आज भी गंभीर मुद्दे बने हुए हैं। इन चुनौतियों के समाधान के लिए पुलिस, न्यायपालिका, समाज और परिवारों को मिलकर कार्य करना होगा।
कार्यक्रम में यह चर्चा भी महत्वपूर्ण रही कि भविष्य में शौर्य दल को सृजन अभियान से जोड़ा जाएगा। इस पहल के अंतर्गत महिला एवं बाल विकास विभाग, जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड तथा पुलिस विभाग आपसी समन्वय के साथ संयुक्त रूप से कार्य करेंगे।
समापन सत्र में न्यायमूर्ति सुशील कुमार गुप्ता ने कहा कि “बालिकाओं की सुरक्षा और सशक्तिकरण केवल नीतिगत विषय नहीं है, बल्कि यह सामाजिक चेतना और सामूहिक प्रयास का परिणाम है। समाज तभी प्रगति करेगा जब उसकी बालिकाएँ सुरक्षित और आत्मनिर्भर हों।”