अध्यात्मदेश

हजारीबाग के बड़कागांव में छठ की अनोखी परंपरा, इस खास धान से बनता है ठेकुआ और खरना का प्रसाद

हजारीबाग के बड़कागांव में छठ महापर्व के दौरान पैसरा धान से पारंपरिक तरीके से ठेकुआ और खरना का प्रसाद तैयार किया जाता है. यह परंपरा परदादा के समय से चली आ रही है और बड़कागांव की लोक संस्कृति और कृषि परंपराओं को जीवित रखती है.

झारखंड-बिहार में छठ महापर्व के मौके पर अक्सर रेडिमेड चावल से खरना और ठेकुआ का प्रसाद तैयार किया जाता है. लेकिन हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड में आज भी खेतों से उपजा पैसरा धान से पारंपरिक तरीके से सिरककर सुखाया जाता है और उसी के चावल से खरना का प्रसाद बनाया जाता है. स्थानीय महिलाएं बताती हैं कि नये धान के चावल को पहले पानी में भिगोकर फुलाया जाता है, फिर ढेंकी और लोढ़ा सिलौट में पीसकर अरवा चावल तैयार किया जाता है. इसके बाद इस चावल से बनी रोटी को ठेकुआ के रूप में तैयार किया जाता है.

परदादा के समय से चली आ रही परंपरा

खैरातरी गांव की पार्वती देवी, पलांडू की देवकी महतो और कमली देवी कहती हैं, “हमारी यह परंपरा परदादा के समय से चली आ रही है. बड़कागांव के खैरातरी, होरम, चोरका, पंडरिया, गोंदलपुरा और आंगों समेत अन्य गांवों में छठ महापर्व के अवसर पर अरवा चावल से ठेकुआ बनाया जाता है. इसे छठ घाट पर प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है.

बड़कागांव के तुरी मोहल्ला निवासी छठ व्रती सीमा बादल कहती हैं, “1982 से हमारे घर में छठ पूजा होती आ रही है. जब मैं अपने मायके बोकारो से बड़कागांव आई, तो यहां की संस्कृति अलग और खास लगी भले ही अन्य शहरों या राज्यों में रेडिमेड चावल से प्रसाद बनाया जाता है, लेकिन यहां नए धान की फसल के चावल से खरना और ठेकुआ तैयार किया जाता है. इतना ही नहीं, नए धान की बाली को भी छठ घाट में चढ़ाया जाता है.” यह परंपरा न केवल छठ के प्रसाद को पारंपरिक स्वाद देती है, बल्कि बड़कागांव की लोक संस्कृति और कृषि परंपराओं को भी जीवित रखती है.

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