अध्यात्म

शक्तिमान बनने की अदभुत और सरल योग साधना

शक्तिमान बनने की अदभुत और सरल योग साधना
आओ समझें तंत्र का असली रहस्य… भाग-4
राजज्योतिषी पं. कृपाराम उपाध्याय (भोपाल)

आज हम आप सभी साधकों को.. एक रहस्यमय “योग साधना” समझाने जा रहे हैं जिसके अभ्यास के बिना किसी भी योग सिद्धी का ढोंग (भ्रम) तो किया जा सकता है। परन्तु सिद्ध नहीं बना जा सकता है।…
*कुंभक (प्राणायाम) साधना*
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🌺🌺योग तत्व उपनिषद में परमपिता ब्रह्मा जी को “प्राणायाम” का तत्व समझाते हुए भगवान श्री हरि विष्णु कह रहे हैं – ना तो अत्यंत द्रुतगति से और नहीं अत्यंत धीमी गति से वरन् “मात्रा मान” सहज गति से प्राणायाम विलक्षण शक्ती प्रदान कर सकता है।
जानें कि मात्रा मान क्या है…. स्वयं की प्रदक्षिणा करके एक चुटकी बजाए या यूँ समझें कि स्वयं के ऊपर हाथ घुमाकर चुटकी बजाना । *इतने समय को “एक मात्रा” समय कहा जाता है।*
(इडा, पिंगला और सुषुम्ना ये तीनों हम पिछले आलेख भाग ३ में समझा चुके हैं।)

🌺 तो अब सर्वप्रथम इड़ा में 16 मात्रा तक वायु को खींचे, तत्पश्चात 64 मात्रा तक कुंभक करें और तब इसके बाद 32 मात्रा का समय लगाकर पिंगला नाड़ी से रेचन करें। इसके बाद दूसरी बार पिंगला नाड़ी से वायु खींचकर पहले की भांति ही सारी क्रिया संपन्न करें। प्रात, मध्याह्र एवं सायं काल के समय नाड़ी शोधन प्राणायाम करना चाहिए क्रमश 80 कुंभक तक अभ्यास बढ़ा देना चाहिए। (प्रारम्भ में इतनी स्वाँस खीचने में सक्षम ना हों तो… कुछ दिन के अभ्यास से होने लगेगा।।) पकृऊ ।

🌺इस तरह से 3 माह तक अभ्यास करने से नाड़ी शोधन हो जाता है। ऐसी शुद्धि होने से उस श्रेष्ठ साधक के देह में लक्षण भी दृष्टिगोचर होने लगते हैं। शरीर में हल्कापन मालूम पड़ता है ,जठराग्नि तीव्र हो जाती है, शरीर भी निश्चित रूप से कृश हो जाता है। ऐसे समय में योग में बाधा पहुंचाने वाले आहार का त्याग कर देना चाहिए।

🌺 यथेष्ट वायु धारण कर सकने के उपरांत ‘केवल कुंभक’ सिद्ध हो जाता है और तब रेचक और पूरक का परित्याग कर देना चाहिए।
इसके अनंतर वायु की धारणा शक्ति निरंतर शनै-शनै बढ़ती रहने से आसन पर बैठे हुए साधक के शरीर में कंपन होने लगता है।

🌺 इससे आगे और अधिक अभ्यास होने पर मांडूक (मेंढक) की तरह चेष्टा होने लगती है। जिस तरह से मेंढक उछलकर फिर जमीन पर आ जाता है । और जब अभ्यास इससे भी अधिक बढ़ता है तो फिर वह योगी जमीन से ऊपर उठने लगता है। परंतु योगी को इस प्रकार की शक्ति एवं सामर्थ्य का प्रदर्शन कभी नहीं करना चाहिए वरन् स्वयं ही देख कर अपना उत्साहवर्धन करना चाहिए। पकृऊ ।

🌺योगी का मल-मूत्र अति न्यून हो जाता है तथा निंद्रा भी घट जाती है निरंतर अभ्यास बढ़ाने से योगी को बहुत बड़ी शक्तियाँ मिलने लगती है। उस योगी का स्वरूप भी कामदेव के सदृश अत्यंत सुंदर एवं आकर्षक हो जाता है मनमोहक व्यक्तित्व बन जाता है।

🌺 सावधान हो जाइये:- अब इस योगी के रूप का अवलोकन कर अनेकानेक स्त्रियां आकृष्ट होकर उससे भोग की इच्छा करने लगती है “लेकिन यहां पर योगी को अत्यंत सावधान रहने की आवश्यकता होती है।” यदि योगी उनकी इच्छा की पूर्ति करने लगेगा तो उसका तेज नष्ट हो जाएगा। अतः विषयो में मन को ना उलझाकर निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए , वीर्य को सुरक्षित करने से योगी के शरीर में दिव्य सुगंध आने लगती है और साधक जादुई रंग-रूप आकर्षण प्राप्त करता जाता है।

🌺भगवान श्रीहरि ने योगी पुरुष को लक्ष्य करके योग का तत्व समझाया है किंतु यदि स्त्री योग साधना करती है तो जो परिवर्तन योगी पुरुष में आते हैं ,वही परिवर्तन योगिनी स्त्री में भी निश्चित रुप से आएंगे। इसलिए उच्च स्तरीय योग साधना करने वाली योगिनी स्त्री को भी उन्ही सावधानीयों से गुजरना होगा जो एक योगी पुरुष के लिए आवश्यक है। पकृऊ ।

🌺तदंतर एकांत स्थल पर बैठकर ” तीन मात्रा से युक्त *ऊँ* ओमकार का जप करते रहना चाहिए, जिससे पूर्व जन्मों के पापों का विनाश हो जाए।….. यह ओंकार मंत्र सभी तरह के विघ्न बाधाओं एवं दोषों का हरण करने वाला है ।
इस साधना का निरंतर अभ्यास करते रहने से अदभुत सिद्धियां स्वयं ही हस्त गत होने लगती है। मानसिक और आत्मिक शक्ती इतनी प्रवल हो जाती है कि विचार मात्र से ही कल्पनाऐं साकार होने लगती हैं।
और निरंतर ऐसी साधना का अभ्यास करके साधक “परकाया” प्रवेश तक की सिद्धी प्राप्त कर सकता है यानि शरीर से बाहर निकल कर विचरण भी कर सकता है ।। पकृऊ।।

*विषेश दो शब्द- -*

*अत्यंत आश्चर्य का विषय है। जिस भारतवर्ष के पास योग विज्ञान जैसा महान ज्ञान है । उस भारत वर्ष के नागरिक, उस सनातन वैदिक धर्म के अनुयायी आज दीन हीन ,ढोंगी ,पाखंडी आडंबर वादी बने हुए हैं।*
*जिस साधना पथ पर चलते हुए साधक के लिए असंभव नाम का कोई शब्द ही नहीं बचता। उस महान तंत्र-विज्ञान के अनुयायी हजारों वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहे और आज भी भारतवर्ष के लिए अत्यंत चिंता का विषय है जब भारतीय योग विज्ञान की तरफ संपूर्ण विश्व आकर्षित हो रहा है, भारत का आम जन आज भी इस विज्ञान से कोसों दूर है क्योंकि “भारत वर्ष में धर्म या तंत्र के आधार पर सिर्फ पाखंड का प्रचार किया जा रहा है । इस शक्ति साधना पद्धति का प्रचार-प्रसार करने की जिम्मेदारी धर्म के ठेकेदारों ने अब तक नहीं समझी है।”*
*मेरे प्यारे भाइयो, माताओं, बहनो! योग साधना पद्धति वह सरल विज्ञान है, जहां पर आप यदि नियमित साधना-पथ पर अग्रसर होते हैं तो आप के लिए असंभव कुछ भी नहीं होगा।*
*और इस तरह क्रमशः करने पर योग साधना कठिन भी नहीं है । संसार का ऐसा कोई लक्ष्य नहीं जिसे योगी साधक प्राप्त नहीं कर सकता। हां यदि आप योग के माध्यम से संपूर्ण सिद्धियों तक पहुंचना चाहते हैं तो आपको एक बात निश्चित रुप से समझनी होगी । “संपूर्ण सिद्धियां प्राण शक्ति के अवरोध के बिना कभी भी जागृत नहीं हो सकती।”…..*
*ध्यान से भी कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है किंतु जब तक आप कुंभक के साथ प्राणायाम का अभ्यास नहीं करते तब तक आप के शरीर को पूर्ण दिव्यता(शक्ती) प्राप्त नहीं हो सकती । आकाश तत्व की प्रधानता नहीं हो सकती और जब तक आप यहाँ नहीं पहुंचोगे। सिद्धियों के बारे में सोच भी नहीं सकते।*
*”हाँ तंत्र-साधक का चोला ओढ़कर ढ़ोंग जरुर कर सकते है।”*
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वैसे कहावत है कि:- साधक के तो नौ ग्रह वलवान होते हैं, और दशम वलवान वो स्वयं होता है….
*सच्चाई भी यही है किै “दिव्य साधक की इच्छानुसार प्रकृती भी नियम बदल देती है”।। *************************
🌸शक्ती-उपासक🌸
*राजज्योतिषी पं. कृपाराम उपाध्याय*
(ज्योतिष एवं तंत्र सम्राट)
भोपाल म.प्र.
*मोबा.–7999213943*

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