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चंचल से बनीं पूजाश्री माताजी ने लिया संल्लेखना का महासंकल्प,आर्यिका दृढ़मति माताजी ने दी दीक्षा,

पर्यूषण पर लिया संल्लेखना का व्रत चार से कर रही नियम का पालन चौक जिनालय में

 

भोपाल।शहर में आर्यिका दृढमति माताजी के सानिध्य में पूजाश्री माताजी नेपर्यूषण पर्व के दौरान संल्लेखना व्रत का महासंकल्प लिया है। संथारा या संल्लेखना (मृत्यु तक उपवास) चौक जिनालय में माताजी के सानिध्य में चल रही है। चौक जिनालय में यह अपने तरह की अनोखी साधना 10 सितंबर से शुरू हुई है। जो माताश्री के मृत्यु तक चलेगी। दीक्षा लेने के बाद पूजाश्री माताजी मौन साधना में चली गई है। इनके नजदीक लगातार साधक णमोकार मंत्र का जाप कर रहे हैं। लिवर का कैंसर का चौथी स्टेज में पता चला पूजाश्री माताजी के लौकिक जीवन के पति कोलार नयापुरा निवासी सुधीर जैन ने बताया कि पूजाश्री माताजी का लौकिक नाम चंचल जैन था। उनकी उम्र 35 वर्ष है। उनके परिवार के एक 9 साल की और एक 4 साल की बेटी है। उनका संयुक्त परिवार है। उनकी पत्नी चंचल को वर्ष 2021 जनवरी को चौथी स्टेज के लिवर कैंसर की जानकारी लगी। उसके बाद इलाज शुरू हुआ। उनकी 90 से अधिक कीमो थैरेपी हो चुकी। देश के सभी डाक्टरों ने घर पर इलाज की बात की। इसके बाद चंचल ने परिजनों से संल्लेखना लेने के अपने संकल्प के बारे में परिवार को बताया। चंचल ने अपने मायके और ससुराल में अनुमति मांगी। उसके परिजनों की अनुमति के बाद चौक जिनालय में चातुर्मास कर रही आर्यिका गुरुमति माताजी की और दृढमति माताजी को अपनी इच्छा बताई।
*लौकिक जीवन से लिया सन्यास*
समाज के मीडिया प्रभारी अंशुल जैन ने बताया चंचल जैन ने 10 सितंबर को अपने लौकिक जीवन से संन्यास लेकर दृढ़मति माताजी से दीक्षा ली। उसके बाद उन्हें पूजाश्री माताजी का सन्यासी नाम दिया गया। तीन दिनों से उन्होंने नियम लेकर जल, अन्न का त्याग कर दिया। वे चौक जिनालय में मौन साधना में चली गई।
*क्या है संल्लेखना*। मृत्यु को समीप देखकर धीरे-धीरे खानपान त्याग देने को संथारा या संल्लेखना (मृत्यु तक उपवास) कहा जाता है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है। जो कि जैन समाज के आचार्यश्री, मुनिश्री और आर्यिका माताजी करती हैं। लौकिक व्यक्ति भी संल्लेखना संकल्प ले सकते हैं। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है। यह जैन समाज की आस्था का विषय है, जिसे मोक्ष पाने का रास्ता माना जाता है। यह प्रक्रिया जैन धर्म की आस्था से जुड़ी अंतिम समय में इस क्रिया को बहुत ही पवित्र माना गया है।,,,,, *अंशुल जैन समाज प्र वक्ता*

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