भोपाल तब्लीग इज्तिमा: 77 साल की इबादत, खिदमत और भाईचारे की मिसाल।
स्थानीय परिवारों की सेवा और उलेमाओं के मार्गदर्शन ने बनाया इसे दुनिया का बड़ा धार्मिक आयोजन



तब्लीग इज्तिमा, जिसे “आलमी तब्लीग इज्तिमा” भी कहा जाता है, दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक जमावड़ों में से एक है। यह केवल एक वार्षिक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि दुनिया भर के मुसलमानों के लिए भाईचारे, आत्मसुधार और सेवा का मंच है। भोपाल को इस आयोजन ने एक विशेष पहचान दी है। 1949 में एक छोटी सी सभा से शुरू हुआ यह इज्तिमा आज 10 लाख से ज़्यादा लोगों को एक साथ जोड़ने वाला आयोजन बन चुका है।शुरुआत और विकास: मस्जिद से मैदान तक का सफरभोपाल इज्तिमा की कहानी 1949 से शुरू होती है, जब पुराने शहर की मस्जिद शाकूर खां में कुछ उलेमा और स्थानीय मुसलमानों ने धार्मिक चर्चा और आत्मसुधार के उद्देश्य से एक छोटी सी सभा आयोजित की। यह आयोजन धीरे-धीरे लोकप्रिय होता गया और जल्द ही इसकी भीड़ मस्जिद की सीमाओं से बड़ी हो गई।बढ़ते आकार और प्रभाव को देखते हुए कार्यक्रम को ताजुल मस्जिद परिसर में स्थानांतरित किया गया। यहाँ से यह इज्तिमा राष्ट्रीय पहचान प्राप्त करने लगा। लेकिन जैसे-जैसे देश और विदेश से आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती गई, 2005 में आयोजन स्थल को शहर से बाहर ईंटखेड़ी / घासीपुरा के विशाल मैदान में ले जाया गया, जहाँ 150 एकड़ से अधिक भूमि पर इसकी व्यवस्था होती है।आज इज्तिमा का कार्यक्रम चार दिनों तक चलता है—शुक्रवार की फ़जर की नमाज़ से शुरू होकर सोमवार की दुआ-ए-खास पर समाप्त। इस दौरान लाखों लोग जमा होते हैं और दुनिया भर से आई जमातें इसमें शरीक होती हैं।दशक-दर-दशक: विकास की शानदार यात्राभोपाल तब्लीगी इज्तिमा की यात्रा इसकी निरंतर प्रगति, सेवा और एकता की प्रतीक रही है1950 के दशक में इसकी शुरुआत मस्जिद शाकूर खां में सीमित प्रतिभागियों के साथ हुई, जहाँ स्थानीय सभाओं और आध्यात्मिक संदेशों पर विशेष ध्यान दिया गया।1960–70 के दशक में इज्तिमा का आयोजन ताजुल मस्जिद में स्थानांतरित हुआ, जिससे इसे देशभर में पहचान मिली और विभिन्न राज्यों से जमातें आने लगीं।2000 के दशक में वर्ष 2005 में आयोजन स्थल को ईंटखेड़ी के विशाल मैदानों में स्थानांतरित किया गया, जिससे प्रबंधन और व्यवस्था अधिक संगठित और वैज्ञानिक रूप में विकसित हुई।2020 के दशक में कोविड-19 महामारी के कारण आयोजन में अस्थायी विराम आया, लेकिन 2023–24 में रिकॉर्ड भागीदारी के साथ यह फिर नई ऊँचाइयों पर पहुँचा। आगामी 2025 इज्तिमा (14–17 नवंबर) के लिए और भी अधिक उत्साह और व्यापक भागीदारी की उम्मीद की जा रही है।यह यात्रा दर्शाती है कि कैसे भोपाल का इज्तिमा एक सीमित स्थानीय आयोजन से विकसित होकर आज धार्मिक, सामाजिक और मानवीय एकता का वैश्विक प्रतीक बन चुका है।हज़रत मौलाना साद और मौलवियों का अमूल्य योगदानहज़रत मौलाना साद, तब्लीग जमात के शीर्ष वक्ताओं में से एक, भोपाल इज्तिमा में मुख्य प्रवचन देने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके भाषण सरल, सजीव और भावनाओं से भरे होते हैं, जो श्रोताओं के दिलों को छू जाते हैं। वे केवल धार्मिक ज्ञान तक सीमित नहीं रहते, बल्कि समाजिक एकता, नैतिक मूल्यों और व्यक्तिगत सुधार पर भी जोर देते हैंभोपाल इज्तिमा में उनकी उपस्थिति लाखों अनुयायियों के लिए प्रेरणा का स्रोत होती है। उनके प्रवचनों में ईमान की मजबूती, सेवा और समाज में भलाई जैसे विषय प्रमुख होते हैं। हज़रत मौलाना साद का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में अच्छाई और ईमान के बीज बोना है।उनकी बातें देश और विदेश से आए लोगों पर गहरी छाप छोड़ती हैं और इज्तिमा के आध्यात्मिक वातावरण को और भी समृद्ध बनाती हैं। ऐसे वक्ता समाज में सकारात्मक बदलाव की प्रेरणा देने वाले होते हैं।हज़रत मौलाना साद और अन्य प्रमुख मौलवियों का योगदान केवल भाषण तक सीमित नहीं है। वे आयोजन की योजना बनाने, व्यवस्थाओं का प्रबंधन करने, शिक्षा और प्रशिक्षण देने, और बाहर जाने वाली ‘जमातों’ के गठन में भी सक्रिय रहते हैं। उनके मार्गदर्शन से हर प्रतिभागी न केवल धार्मिक संदेश समझता है, बल्कि उसे अपने जीवन में लागू करने का उत्साह भी प्राप्त करता है। इस प्रकार, उनका योगदान इज्तिमा को सफल, प्रभावशाली और प्रेरक बनाता है।युवाओं के प्रेरक वक्ता: हज़रत मौलाना साद के पुत्रभोपाल तब्लीग इज्तिमा में युवाओं को धार्मिक संदेश पहुंचाने में हज़रत मौलाना साद के पुत्रों का योगदान अनमोल है। उनके बड़े बेटे मौलाना मोहम्मद यूसुफ़ भाषण और मार्गदर्शन के माध्यम से युवाओं के दिलों तक पहुंचते हैं। दूसरे बेटे मौलाना मोहम्मद सईद और तीसरे बेटे मौलाना मोहम्मद इल्यास भी युवा पीढ़ी के बीच बेहद लोकप्रिय वक्ता हैं।तीनों बेटे मिलकर युवा प्रतिभागियों को धर्म, सेवा, अनुशासन और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करते हैं। उनकी ताकत यह है कि वे युवाओं की भाषा और दृष्टिकोण को समझते हैं, और उसी अनुसार संदेश देते हैं। यही वजह है कि युवा इज्तिमा में उनके भाषणों को बड़ी श्रद्धा और लगन से सुनते हैं।उनकी यह महारत, युवा पीढ़ी को सही दिशा देने और उन्हें जीवन में सकारात्मक मूल्यों की ओर प्रेरित करने में बेहद महत्वपूर्ण साबित होती है। इस तरह, मौलाना साद के पुत्र इज्तिमा के युवा वर्ग के असली मार्गदर्शक बने हैंभोपाल के प्रमुख घराने और स्थानीय योगदानभोपाल तब्लीगी इज्तिमा को आज जो अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त है, उसके पीछे शहर के धार्मिक, शैक्षिक और समाजसेवी घरानों का अदृश्य योगदान है। इन परिवारों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे हर तरह से मदद करते हैं, मगर अपने नाम को प्रचार में नहीं लाते। इज्तिमा में सेवा और सहयोग की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उनके द्वारा टेंट की संपूर्ण व्यवस्था पूर्णत: नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाती रही है। यह व्यवस्था हज़ारों प्रतिभागियों के ठहराव, बैठक और कार्यक्रम संचालन के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।सेवा के इस अनोखे भाव ने समाज में सहयोगात्मक संस्कृति और भाईचारे का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है।इज्तिमा की सेवा की मिसाल यह है कि कुछ परिवारों ने अपनी ज़मीनें इस आयोजन के लिए समर्पित कर दी हैं। कई लोग अपनी निजी भूमि इस उद्देश्य के लिए उपलब्ध कराते हैं, जबकि कुछ परिवारों ने अपनी ज़मीन इज्तिमा के लिए ही वक्फ कर दी है, ताकि इस महान आयोजन में कभी कोई बाधा न आए और मुसाफ़िरों को सहूलियत मिलती रहे।यह जज़्बा सिर्फ़ जगह देने का नहीं, बल्कि इल्म, मोहब्बत और खिदमत की परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रतीक है। कोई आवास उपलब्ध कराता है, कोई खाने-पीने का इंतज़ाम करता है तो कोई यातायात और मार्गदर्शन की व्यवस्था करता है। यह सब कार्य बिल्कुल ख़ामोशी, निस्वार्थ भाव और बिना किसी लाभ के किया जाता है। उनका मानना है कि उनके पूर्वजों ने जान, माल और समय लगाकर इस आयोजन को खड़ा किया, इसलिए यह उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी है कि उसी नियत से इसे आगे बढ़ाया जाए।इन परिवारों की नई पीढ़ी भी पूरे उत्साह और समर्पण से इस खिदमत में लगी हुई है। उदाहरण के तौर पर, कुछ धार्मिक घराने मस्जिदों, वज़ूखानों और नमाज़ स्थलों के रख-रखाव में सक्रिय रहते हैं। शैक्षिक परिवार अपने स्कूलों, कॉलेजों या हॉस्टलों को अस्थायी आवास व कक्षाओं को सामूहिक दावत के लिए खोल देते हैं। कई व्यापारी व कारोबारी परिवार भोजन, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए वित्तीय व सामग्री सहयोग देते हैं। वहीं समाजसेवी संस्थाएँ यातायात प्रबंधन, मार्गदर्शन व सुरक्षा व्यवस्था संभालती हैं।यह सामूहिक प्रयास न केवल आयोजन को व्यवस्थित बनाता है, बल्कि भोपाल की मेहमाननवाज़ी, सामाजिक सहयोग और पारिवारिक परंपराओं को भी उजागर करता है। यही कारण है कि हर साल यहाँ आने वाले मेहमान केवल धार्मिक वातावरण ही नहीं बल्कि एक जीवंत सामाजिक समर्पण का अनुभव भी लेकर लौटते हैं।इस प्रकार भोपाल के प्रमुख घरानों और स्थानीय समाज का यह मौन योगदान इस इज्तिमा को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचाता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनता है।प्रशासन की सतर्कता और सहयोग का अनूठा उदाहरणभोपाल तब्लीगी इज्तिमा की सफल व्यवस्था प्रशासन की सक्रिय भूमिका के बिना संभव नहीं है। लाखों की भीड़ के बीच सुरक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और यातायात के लिए बारीक योजना और समन्वय आवश्यक है।मुख्यमंत्री से लेकर मुख्य सचिव तक की सीधी निगरानी रहती है। पुलिस, स्वास्थ्य, रेलवे,नगर निगम और आपदा प्रबंधन विभाग विस्तृत योजनाएँ बनाकर उन्हें ज़मीन पर लागू करते हैं। इस समन्वित प्रयास के कारण, भारी घरेलू और अंतरराष्ट्रीय भीड़ के बावजूद कार्यक्रम शांतिपूर्ण, सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से संपन्न होता है।प्रशासन की सतत निगरानी और संवेदनशीलता ने इज्तिमा को प्रदेश की “शांति और सेवा” की पहचान देने में अहम योगदान दिया है।स्वयंसेवक: इज्तिमा की रीढ़,चुनौतियों पर हमेशा खरे उतरेभोपाल तब्लीग इज्तिमा में लगभग 30,000 स्वयंसेवक दिन-रात लोगों की खिदमत में लगे रहते हैं। वे कठिनाइयों का सामना करते हुए आयोजन को और अधिक सुचारू, व्यवस्थित और सकारात्मक बनाते हैं। चौबीस घंटे लगातार सेवा करना और हर व्यक्ति की जरूरतों का ध्यान रखना इस इज्तिमा की असली ताकत है। यही समर्पण और मेहनत इसे खास बनाती है। भोपाल का यह खिदमत अंदाज़ अलामी तब्लीगी इज्तिमा को सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रतिष्ठित बनाता है। स्वयंसेवकों की निस्वार्थ सेवा और भाईचारे का संदेश आयोजन को एक प्रेरणादायक मंच बनाता है। उनका प्रयास न केवल आयोजन को सफल बनाता है, बल्कि सेवा, अनुशासन और एकता की मिसाल भी पेश करता है। यही वजह है कि इज्तिमा हर साल लोगों को भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से जोड़ने में सक्षम होता हैभोपाल तब्लीग इज्तिमा एक विशाल आयोजन है, जिसमें लाखों लोगों की भागीदारी होती है। इतने बड़े जनसमूह के बीच व्यवस्थाएँ बनाए रखना आसान नहीं, लेकिन हर साल तब्लीगी स्वयंसेवक इन चुनौतियों पर पूरी तरह खरे उतरते हैं। भीड़ और यातायात के बीच प्रशासन और पुलिस के सहयोग से स्वयंसेवक मार्गदर्शन करते हैं और लोगों को सही दिशा में ले जाते हैं, जिससे आयोजन शांतिपूर्ण रहता है।स्वच्छता और स्वास्थ्य की जिम्मेदारियाँ भी इन्हीं स्वयंसेवकों के कंधों पर होती हैं। पानी, शौचालय, वज़ूखाने और प्राथमिक चिकित्सा की सुविधाएँ समय पर उपलब्ध कराई जाती हैं। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भी उन्होंने ग्रीन थीम अपनाई और सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध का पालन सुनिश्चित किया।आ-ए-ख़ास: अमन, चैन और भाईचारे की दुआभोपाल तब्लीग इज्तिमा के अंतिम दिन आयोजित ‘दुआ-ए-ख़ास’ इज्तिमा की सबसे भावनात्मक और महत्वपूर्ण घड़ी होती है। इस मौके पर हज़रत मौलाना साद अत्यंत भावुक अंदाज़ में दुआ करते हैं, जिससे लाखों लोग भी भावनाओं में डूब जाते हैं। जब विशाल जमावड़ा एक साथ हाथ उठाकर दुआ करता है, तो पूरे माहौल में शांति, आध्यात्मिक ऊर्जा और एकता का अनुभव होता है। यह दुआ केवल व्यक्तिगत भलाई या किसी विशेष समुदाय के लिए नहीं होती, बल्कि पूरे प्रदेश, देश और दुनिया में अमन, चैन और भाईचारे की कामना के लिए होती है। उलेमा अपने शब्दों से इंसानियत, करुणा और सेवा का संदेश देते हैं, जो हर दिल को छू जाता है।पूरे शहर में त्योहार जैसा माहौल होता है, लोग नए कपड़े पहनते हैं और पूरे उत्साह से इस दुआ में शामिल होकर अल्लाह से रहमत की इल्तिजा करते हैं। यह पल यह याद दिलाता है कि धर्म का असली मकसद केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि मानवता की सेवा और शांति का प्रचार है। दुआ-ए-ख़ास लोगों के दिलों को जोड़ती है और उन्हें एक बेहतर, न्यायपूर्ण, सहनशील और समर्पित समाज बनाने की प्रेरणा देती है। यही अद्भुत अनुभव भोपाल तब्लीग इज्तिमा को धार्मिक ही नहीं, बल्कि मानवीय और सामाजिक दृष्टि से भी अनोखा और प्रेरक बनाता है।
, सेवा और एकता का जीवंत उदाहरण
आज भोपाल तब्लीगी इज्तिमा 77 वर्षों से अधिक की सतत मेहनत, आस्था और भाईचारे का जीवंत उदाहरण है। विद्वानों के भाषण, स्थानीय परिवारों की सेवा और प्रशासन व स्वयंसेवकों की मेहनत ने मिलकर इसे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक बना दिया है।
यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान भी है। यह शांति, सेवा और एकता का संदेश लेकर चलता है और यह याद दिलाता है कि सच्ची आस्था करुणा, अनुशासन और सामूहिक भलाई को बढ़ावा देती है।
जैसे ही भोपाल 2025 के इज्तिमा की तैयारियाँ करता है, शहर एक बार फिर दुनिया को खुले दिल से स्वागत करने के लिए तैयार हो रहा है—न केवल आध्यात्मिक अनुभव देने के लिए बल्कि सहयोग, मेहमाननवाज़ी और मानवीय एकजुटता का जीवंत पाठ पढ़ाने के लिए भी।
विशेष लेख पत्रकार सय्यद असीम अली


