पुस्तक समीक्षा: रामदास का मरना तय था — भास्कर लाक्षाकार की सशक्त काव्य प्रस्तुति
समीक्षक -रीतेश दुबे
भास्कर लाक्षाकार की हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह रामदास का मरना तय था समकालीन हिंदी कविता को एक नई दिशा देती है। इस संग्रह में 90 से अधिक कविताएँ हैं, जो जीवन के विविध आयामों—राजनीति, समाज, संस्कृति, नैतिकता, कला, और आत्मचिंतन—पर संवेदनशील दृष्टि डालती हैं। लाक्षाकार की कविताएँ न केवल सामाजिक यथार्थ का चित्रण करती हैं, बल्कि उस पर सटीक और चुभती हुई टिप्पणी भी करती हैं। प्रख्यात साहित्यकार नीलेश रघुवंशी के अनुसार, “जीवन से ज्यादा संघर्ष कलाओं में है,” और यह बात इस संग्रह की शीर्षक कविता रामदास का मरना तय था के माध्यम से स्पष्ट रूप से सामने आती है। यह कविता कलाकारों के संघर्ष, उनकी उपेक्षा और अंततः उनकी नियति को मार्मिकता से प्रस्तुत करती है। अंधेरे पार जैसी कविताओं में जीवन और मृत्यु के गहरे दार्शनिक प्रश्न उठाए गए हैं—”आखिर हम अमर होते हैं ही तब तक, जब तक मर नहीं जाते” जैसी पंक्ति पाठक को ठहरकर सोचने को विवश करती है। समाज और राजनीति पर व्यंग्य करती कविताएँ इस संग्रह को विशेष बनाती हैं। अवशता में आज की नैतिकताहीन राजनीति को आड़े हाथों लिया गया है, वहीं शादी के बाद में सामाजिक दिखावे और विलासिता पर करारा प्रहार है। ‘’एक बौद्धिक आलाप’’ आज के न्यूज़ चैनलों की अर्थहीन बहसों की पोल खोलती है और ‘’जब राजा जा रहा था’’ कविता सत्ता के दुरुपयोग की ओर संकेत करती है। इन दिनों कविता की पंक्तियाँ—”और फिर सरकारें सिर्फ सरकारें हैं, कार्बन कॉपी एक-दूसरे की”—बताती हैं कि विचारधारा से विहीन होती जा रही राजनीति किस तरह एक जैसे ढांचे में ढलती जा रही है। आदत कविता आज के कवियों की छपास-प्रियता और आलोचना के प्रति असहिष्णुता को उजागर करती है, जबकि सोचना में रचनात्मकता और शास्त्र के मध्य के अंतर को रेखांकित किया गया है—”सोचने से नहीं बनती कविता, सोचने से बनते हैं शास्त्र” जैसी पंक्ति कविता और चिंतन की सीमाओं को बड़ी सादगी से सामने रखती है। रक्त मूल्य कविता सामाजिक भेदभाव और पीड़ा को सामने लाती है, वहीं राजनीति कविता आज के राजनीतिक परिदृश्य की कटु सच्चाई बयान करती है। अफसर संगीत सभा में कविता नौकरशाही की विडंबनाओं को उजागर करती है, यह बात विशेष उल्लेखनीय है कि लाक्षाकार स्वयं भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं, किंतु उनकी भाषा, शैली और विचारधारा पूर्णतः साहित्यिक है। यह संग्रह उनके वृतिज्ञ साहित्यकार होने का प्रमाण भी प्रस्तुत करता है। भास्कर लाक्षाकार की कविताएँ छंदमुक्त हैं और नई कविता की परंपरा में गहराई से रची-बसी हैं। यह शैली आज के बौद्धिक पाठकों को विशेष रूप से आकर्षित करती है। उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों को अत्यंत सहजता और ईमानदारी के साथ अभिव्यक्त किया है। यह संग्रह न केवल पठनीय है, बल्कि चिंतन और आत्मविश्लेषण के लिए भी प्रेरित करता है। ‘’रामदास का मरना तय था ‘’ एक ऐसी काव्य प्रस्तुति है जो आज के समय और समाज की नब्ज को पकड़ने में पूरी तरह सक्षम है। यह संग्रह पाठकों को भीतर तक झकझोरता है और साहित्य की जिम्मेदारी को याद दिलाता है।