अध्यात्मदेशमध्य प्रदेश

मानव जीवन का परम लक्ष्य ब्रह्म जिज्ञासा: स्वामी प्रणव चैतन्य पुरी

महाकुम्भ में ‘एकात्म धाम मंडपम्’ में साधना पंचकम् एवं मनीषा पंचकम् पर व्याख्यान

प्रयागराज महाकुम्भ में आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश शासन द्वारा अद्वैत वेदान्त के लोकव्यापीकरण एवं सार्वभौमिक एकात्मता की संकल्पना के उद्देश्य से एकात्म धाम मंडपम् में वेदांत पर केंद्रित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है सोमवार को चिन्मय मिशन कोयम्बटूर की प्रमुख स्वामिनी विमलानंद सरस्वती ने आचार्य शंकर विरचित प्रकरण ग्रंथ मनीषा पंचकम् एवं स्वामी मित्रानंद सरस्वती ने साधना पंचकम् पर अपने विचार व्यक्त किए ।

केवल दिव्य से ही दिव्यता प्रकट हो सकती है : स्वामी मित्रानंद सरस्वती

साधना पंचकम् के अंतिम सत्र में स्वामी मित्रानंद सरस्वती ने आदि शंकराचार्य के अंतिम उपदेशों को विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि जब कोई कर्म कुशलतापूर्वक, ईश्वर को समर्पित करके व कर्म या फल से आसक्त हुए बिना सम्पादित किया जाता हैं, वह कर्म योग हैं। आत्म ज्ञान से समस्त प्रारब्ध व संचित कर्मों का विलय हो जाता हैं व उनके विलय से ही मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। साधना पंचकम् की अंतिम साधना परब्रह्म में स्थित होकर उस स्थिति में स्थिर होना हैं, जो मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य हैं।

त्रिवेणी संगम मुक्ति दायक : स्वामिनी विमलानंद सरस्वती

स्वामिनी विमलानंद ने मनीषा पंचकम् पर बोलते हुए कहा कि ‘मनीषा’ का अर्थ ‘निश्चय’ है। मनीषा पंचकम् में दो मुख्य बिंदुओं पर निश्चय होता है—गुरु कौन हैं और ज्ञान क्या है। उन्होंने कहा कि जिसे अद्वैत का सच्चा ज्ञान हो, वही गुरु कहलाने योग्य है। जितनी ऊँची साधना और माँग होती है, उतने ही ऊँचे गुरु की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि हमें भगवान के साथ कोई संबंध जोड़ने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह संबंध पहले से है। हमें केवल उस संबंध को जानने और अनुभव करने की आवश्यकता है। किंतु, गुरु के साथ संबंध जोड़ना अनिवार्य है।उन्होंने माँ गंगा और त्रिवेणी संगम को पाप निवारक एवं मुक्ति दायक बताया, आदि शंकराचार्य के जीवन की प्रेरणादायक घटना का उल्लेख किया। काशी में जब शंकराचार्य ने एक चाण्डाल को रास्ते से हटने को कहा, तो चाण्डाल ने प्रश्न किया—‘आप किसे हटाना चाहते हैं? अन्नमय कोष को अन्नमय कोष से या चैतन्य को चैतन्य से?’

भेद मात्र एक भ्रम है। ईश्वर एक हैं, केवल रूप अनेक हैं। ईश्वर में कभी भेद नहीं हो सकता, भेद केवल रूपों में होता है।

सत्र के अंत में लोकमाता विद्याशंकर द्वारा प्रस्तुत साधना पंचकम् के सुमधुर गायन ने उपनिषद सभागार को दिव्यता से भर दिया। वहीं शाम के सत्र में परमार्थ साधक संघ के आचार्य स्वामी प्रणव चैतन्य पुरी ने “अथातो ब्रह्म जिज्ञासा“ पर श्रोताओं को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि वेद का प्रतिपाद्य धर्म हैं, वेदांत का प्रतिपाद्य ब्रह्म हैं। धर्म साधन हैं व ब्रह्म साध्य हैं, यही मानव जीवन का सारभूत उद्देश्य हैं। मानव जीवन की चरम जिज्ञासा ब्रह्म जिज्ञासा हैं। वेदांत का सार ही ब्रह्म जिज्ञासा हैं। सोहम् चैतन्य पुरी ने कहा कि हम सभी के लिए सौभाग्य का विषय है कि मप्र इस बार महाकुम्भ में अद्वैत एवं आचार्य शंकर पर विमर्श हो रहा है, यह महाकुम्भ की उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि वेदांत ब्रह्मविद्या है, इसे प्राप्त करने के लिए गुरू के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पण करना पड़ता है। ब्रह्मविद्या प्राप्त करने के लिए गुरू के बिना दूसरा कोई रास्ता नहीं है। आगामी 6-7 फरवरी को शाम 6 बजे से अभिनेता नीत‍िश भारद्वाज एवं कोरियोग्राफर मैत्रेयी पहाड़ी ‘शंकर गाथा’ की प्रस्तुति देंगी,साथ ही 8 से 12 फरवरी तक राम जन्म भूमि न्यास के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविन्द देव गिरि प्रतिदिन शंकरो लोकशंकर: आचार्य शंकर के जीवन प्रसंग पर प्रतिदिन शाम 06 बजे से कथा करेंगे।ज्ञात हो कि यह महाकुम्भ पूर्व से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण तक आचार्य शंकर द्वारा स्थापित सांस्कृतिक एकता का साक्षी बने इसी भाव के साथ संन्यास परम्परा के विराट उत्सव के रूप में युग-युगीन सनातन ज्ञान-परम्परा के इस प्रकट-प्रभावी उत्सव में एकात्म धाम शिविर आयोजित है।

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