भक्ति,ज्ञान और बैराग्य की प्राप्ति होती है सतसंग द्वारा : पं०सुशील महाराज

विनु सतसंग विवेक न होई
भोपाल। शिव मंदिर रुसल्ली में भोपाल मैं आज आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिवस पंडित सुशील महाराज ने बड़ी ही मार्मिक एवं आध्यात्मिक भक्ति ज्ञान और बैराग्य की कथा तत्वार्थ की गूढता को उजागर करते हुये श्रृद्धालुओं को सुनाई।महाराज श्री ने बताया है। कि भक्ति,ज्ञान, और बैराग्य का मूल स्थान मनुष्य के शरीर में मौजूद रहता है । और विना सतसंग के विवेक रुपी हनुमान शरीर में जागृत नहीं होता है।और विना विवेक के भक्ति प्राप्त नहीं होती है।और विना भक्ति के ज्ञान प्राप्त नहीं होता है।और विना ज्ञान के बैराग्य प्राप्त नहीं होता है।और विना बैराग्य के बंन्धनों से मुक्ती प्राप्त नहीं होती है।मुक्ति का प्राप्त होना शरीर को त्याग देना नहीं होता है।जो विकार मनुष्य को मोह माया में फंसाकर मनुष्य को सतसंग में जाने से रोकते हैं।जो सत्यमार्ग दिखाने वाली आत्मा पर हावी हो जाते हैं।और मन के सिपाही बनकर मन के आदेशानुसार शरीर द्वारा अधर्म एवं अन्याय के कृत्य करवाते हैं।अपनी पावर से आत्मा को बांधकर रखते हैं। ऐसी स्थति को बंधन कहा जाता है।इनमें काम,क्रोध,मद,लोभ,मोह,मत्सर,द्वेष एवं ईर्ष्या प्रमुख हैं। और सतसंग से इन दोषों का नाश हो जाता है।और इन दोषों का नाश होने पर विवेक रूपी हनुमान जागृत हो जाते हैं।और जैसे ही सतसंग सुनकर विवेक जागृत होता है।बैसे ही मनुष्य को भक्ति प्राप्त हो जाती है। भक्ति प्राप्त होते ही ज्ञान और बैराग्य स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं।इस स्थिती को मोक्ष कहा जाता है।भक्ति को पृथ्वी,ज्ञान को बृक्ष,और बीज को बैराग्य की उपमा देते हुये पं०सुशील महाराज ने बताया है। कि जिस प्रकार से पृथ्वी पर बृक्ष उगते हैं।और बृक्ष से बीज पैदा होता है। फिर बीज पृथ्वी पर गिरता है। फिर बीज से पुन: बृक्ष वनता है।श्रृष्टी के प्रलय होने तक यही प्रिक्रिया निरंन्तर चलती रहती है।ठीक इसी प्रकार से पृथ्वी रूपी भक्ति से ज्ञान रूपी बृक्ष की उत्पत्ति होती है। और ज्ञान रूपी बृक्ष से बीज रूपी फल की प्राप्ति होती है। और बीज रूपी फल जब भक्ति रूपी पृथवी पर गिरता है। तो पुन: बृक्ष रूपी ज्ञान की उत्पत्ति होती है। और फिर ज्ञान रूपी बृक्ष से पुन: नये बीज की उत्पत्ति होती है। यही क्रम श्रृष्टि के प्रलय होने तक निरंन्तर चलता रहता है।जिस प्रकार से नर और नारी के संयोग से मानव श्रृष्टी का संचालन होता है।और मानव शरीर श्रृष्टि संचालन का माध्यम होता है। ठीक उसी प्रकार से मानव शरीर में भक्ती प्रथ्वी के समान होती है। और बृक्ष ज्ञान के समान होता है। मनुष्य शरीर में बीजफल बैराग्य के समान होता है। जब बैराग्य रूपी बीजफल जब पृथ्वी रूपी भक्ति के ऊपर गिरता है।तब नये बृक्ष रूपी ज्ञान की उत्पत्ति हो जाती है। और जब मानव शरीर में ज्ञान रूपी बृक्ष की की उत्पत्ति होती है।तव फिर से नये बीज फल की उत्पत्ति होती है। और यही क्रम प्रलयकाल तक निरंन्तर चलता रहता है। सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलयुग में उत्थान एवं पतन यह युग के प्रभाव के आधार पर होता रहता है।सत्यमार्ग पर चलने बाले ब्यक्ति का क्षय (पतन) नहीं होता है। और असत्य मार्ग पर चलने वाले का उत्थान(उद्धार) नहीं होता होता है। मनुष्य के शरीर में भक्ति,ज्ञान,और बैराग्य की यही हकीकत होती है।आज भागवत कथा में यजमान श्री रमेश साहू,एवं यजमान श्री श्याम पारासर एवं यजमान श्रीमति कंचन महावीर पाण्डेय तथा यजमान श्री प्रशांन्त कश्यप ने भागवत ग्रंथ की पूजा करके पं०सुशील महाराज को पुष्पहार भेंट करके सम्मानित किया। तथा कथा ब्यवस्था में श्री नारायंण सिंह यादव ठेकेदार एवं श्री आकाश यादव ने अपना अमूल्य योगदान दिया ।दूसरे दिवस की कथा समापन पर श्री घनश्याम दास गुप्ता,अनूप पाण्डेय, मायाराम अटल,एवं शुभम पाण्डेय ने भागवत ग्रंथ की आरती उतारी । पं०राहुल तिवारी द्वारा सभी बेदियों का पूजन करवा गया।कथा समापन एवं आरती होने के 20 मिनट बाद आज पुनः बर्षात हुई है।सभी श्रृद्धालुओं ने बीच कथा में बर्षात नहीं होने को लेकर इन्द्र भगवान के प्रति आभार ब्यक्त किया गया है।
(पं०सुशील महाराज)