शंका से होता है प्रांणी का विनांश:पं०सुशील

(सती चरित्र की कथा सुनाई)
श्री शिव शक्ती धाम सिद्धाश्रम निपानिया जाट भोपाल में आज चौथे दिवस की श्री शिवमहापुराण कथा में पं०सुशील महाराज ने सती चरित्र की कथा सुनाई एवं ब्रत के बिषय में प्रश्नकर्ता श्रृद्धालु का उत्तर देकर उन्हें संतुष्ट किया ।
पं०सुशील ने सती चरित्र पर प्रकाश डालते हुए बताया है।कि एक बार भोले शिव सती जी साथ प्रयागराज कुंभ में कुम्भज ऋषि के आश्रम पर ठहरे थे।सत्संग के समापन पर वह सती के साथ अपने निवास हिमालय लौट रहे थे।कि रास्ते में उन्हें श्रीराम और लक्षमण सीता की खोज करते दिखाई दिये।तब भोले शिव ने अपने इष्ट बिष्णु के अवतार श्रीराम को नमन किया ।यह दृष्य सती जी ने देख लिया।तब उन्होंने भोले शिव से प्रश्न किया? कि आपने इन वनवासी लडके को प्रणाम क्यों किया ।तब भोले शिव ने कहा कि श्रीराम बिष्णु के अवतार है।और धर्म की मर्यादा को स्थापित करने के लिए इन्होने मानव अवतार लिया है । इस बात पर सती जी को शंका हो गई।वह श्रीराम को ईश्वर मानने के लिए सहमत नहीं हुई।तब भोले शिव ने कहा कि:-जौ तुम्हरे मन अति संदेहू।तौ किन जाई परीक्षा लेहू।।फिर सती ने सिया का वेष धारण किया ।और श्रीराम के पास परिक्षा लेने पहुंच गई।श्रीराम ने उन्हें पहचान लिया । और कहा।हे सति आप भोले शिव को छोडकर यहां अकेले क्यों घूम रही हो।तब सति को अपनी गलती का अहसास हुआ । कि उन्हें भोले शिव के बात पर शंका नहीं करना चाहिए था।वह समझ गई कि श्रीराम ईश्वर हैं । वह बापस शिव शंकर के पास लौट गईं।लेकिन भोले शिव ने उन्हें वामांग में नहीं बल्कि सामने स्थान दिया। सती समझ गईं कि भोले शिव ने उन्हें पत्नी के पद से त्याग दिया है । इसका प्रमुख कारण सति द्वारा सिया का स्वरूप धारण करना था।क्योंकि भोले शिव श्रीराम को अपना इष्ट मानते थे।इष्ट के पत्नी का रूप धारण करने के कारण वह सति को पुन:पत्नी रुप में स्विकार नहीं कर सकते थे।इसलिए सति ने अपने पिता दक्ष के घर जाकर अपने प्राण त्याग दिये थे।पति और श्रीराम के ऊपर शंका करने के कारण सति को अपना पत्नी का पद और प्रांण दोनों का त्याग करना पडा था।इसलिए कहा जाता है । शंका से प्राणी का विनांश होता है ।
(पं०सुशील महाराज)
श्री शिव शक्ति धाम सिद्धाश्रम निपानिया जाट भोपाल ।