ई- अटेण्डेंस ना तो शिक्षा हित में है और ना ही शिक्षक हित में
शिक्षकों से शत्रुतापूर्ण व्यवहार सही नहीं है। ई-अटेण्डेंस हो , अतिशेष हो या कोई अन्य नियम विभाग और शासन द्वारा लगभग हर आदेश शिक्षक को आतंकित करने वाला आखिर क्यों होता जा रहा है? क्या इसलिए कि शिक्षक कमाऊ पूत नहीं होता? क्या इसलिए कि शिक्षक संवर्ग संख्या के हिसाब से किसी भी प्रदेश में सबसे ज्यादा होता है? क्या इसलिए कि सारे शिक्षकों को वेतन देना अखर रहा है? कर्मचारी के हित में अपना पक्ष रखते हुए हीरानंद नरवरिया ने कहा कि ये सब प्रश्न हर शिक्षक के दिमाग में कौंधते हैं। हर शिक्षक सोचता है कि इतनी विषम परिस्थितियों में भी रिजल्ट अच्छा दे रहे हैं, फिर भी आतंकित करने की प्रणाली क्यों विकसित की जा रही है? हर शिक्षक ये भी सोचता है कि इतने सारे प्रयोग आखिर हमारे ऊपर ही क्यों लाद दिए जाते हैं, जबकि हम देश का भविष्य गढ़ रहे हैं? एक शिक्षक अपनी कक्षा में जाकर अपने हिसाब से कुछ भी नहीं कर सकता। उसके लिए हर बात ऊपर से तयशुदा रहती है। सिलेबस से लेकर कक्षा शिक्षण तक तय करके बताई जा रही है। शिक्षक की खुद की नैसर्गिक प्रतिभा की कोई कीमत नहीं है। उसकी नृशंस हत्या बहुत पहले की जा चुकी है। शिक्षा के अधिकार अधिनयम के अनुसार निजी विद्यालयों में बच्चों के प्रवेश की व्यवस्था आप लोग ऊपर से तय कर देते हैं और कम दर्ज संख्या के कारण एक शिक्षक अतिशेष होकर दर दर भटकने पर विवश हो जाता है। मैं व्यक्तिगत रूप से इस बात का विरोधी हूं कि हमारे लोग ये मांग करने लगते हैं कि ई अटेंडेंस सभी विभागों पर लागू की जाए। ….नहीं, हमें इस प्रकार की मांग बिल्कुल नहीं करना चाहिए क्योंकि मेरा मानना है कि अगर हमारे घर में आग लगी है तो हम खुद उसको बुझाने की कोशिश करें न कि ये दुआ करें कि दुनिया जहां के मकानों में आग लग जाए।