अध्यात्म

जन्म की जानकारी नहीं है फिर भी बन सकती है लग्न कुंडली

गुमीय साधन गणित..द्वारा माना कि ये थोडा कठिन है परन्तु इस विधा से किसी भी मनुष्य की जन्म कुंंडली … बिना जन्म डिटेल के भी बनाई जा सकती है बस कुछ दिन अभ्यास जरूर कर लेना चाहिये ताकि … पूर्णं रूपेण समझ में आ जाए जानें कैसे…. कभी कभी किसी कारणवश जन्म तारीख और दिन माह वार आदि का पता नही होता है, कितनी ही कोशिशि की जावे लेकिन जन्म तारीख का पता नही चल पाता है, जातक को सिवाय भटकने के और कुछ नही प्राप्त होता है, किसी ज्योतिषी से अगर अपनी जन्म तारीख निकलवायी भी जावे तो वह क्या कहेगा, इसका भी पता नही होता है, इस कारण के निवारण के लिये आपको कहीं और जाने की जरूरत नही है, किसी भी दिन उजाले में बैठकर एक सूक्षम दर्शी सीसा लेकर बैठ जावें, और अपने दोनो हाथों बताये गये नियमों के अनुसार देखना चालू कर दें, साथ में एक पेन या पैंसिल और कागज भी रख लें, तो देखें कि किस प्रकार से अपना हाथ जन्म तारीख को बताता है। अपनी वर्तमान की आयु का निर्धारण करें हथेली मे चार उंगली और एक अगूंठा होता है, अंगूठे के नीचे शुक्र पर्वत, फिऱ पहली उंगली तर्जनी उंगली की तरफ़ जाने पर अंगूठे और तर्जनी के बीच की जगह को मंगल पर्वत, तर्जनी के नीचे को गुरु पर्वत और बीच वाली उंगली के नीचे जिसे मध्यमा कहते है, शनि पर्वत, और बीच वाली उंगले के बाद वाली रिंग फि़ंगर या अनामिका के नीचे सूर्य पर्वत, अनामिका के बाद सबसे छोटी उंगली को कनिष्ठा कहते हैं, इसके नीचे बुध पर्वत का स्थान दिया गया है, इन्ही पांच पर्वतों का आयु निर्धारण के लिये मुख्य स्थान माना जाता है, उंगलियों की जड से जो रेखायें ऊपर की ओर जाती है, जो रेखायें खडी होती है, उनके द्वारा ही आयु निर्धारण किया जाता है, गुरु पर्वत से तर्जनी उंगली की जड से ऊपर की ओर जाने वाली रेखायें जो कटी नही हों, बीचवाली उंगली के नीचे से जो शनि पर्वत कहलाता है, से ऊपर की ओर जाने वाली रेखायें, की गिनती करनी है,ध्यान रहे कि कोई रेखा कटी नही होनी चाहिये,शनि पर्वत के नीचे वाली रेखाओं को ढाई से और बृहस्पति पर्वत के नीचे से निकलने वाली रेखाओं को डेढ से, गुणा करें,फिऱ मंगल पर्वत के नीचे से ऊपर की ओर जाने वाली रेखाओं को जोड लें, इनका योगफ़ल ही वर्तमान उम्र होगी. अपने जन्म का महिना और सूर्य राशि को पता करने का नियम अपने दोनो हाथों की तर्जनी उंगलियों के तीसरे पोर और दूसरे पोर में लम्बवत रेखाओं को 23 से गुणा करने पर जो संख्या आये, उसमें 12 का भाग देने पर जो संख्या शेष बचती है,वही जातक का जन्म का महिना और उसकी राशि होती है, महिना और राशि का पता करने के लिये इस प्रकार का वैदिक नियम अपनाया जा सकता है:- 1-बैशाख-मेष राशि 2.ज्येष्ठ-वृष राशि 3.आषाढ-मिथुन राशि 4.श्रावण-कर्क राशि 5.भाद्रपद-सिंह राशि 6.अश्विन-कन्या राशि 7.कार्तिक-तुला राशि 8.अगहन-वृश्चिक राशि 9.पौष-धनु राशि 10.माघ-मकर राशि 11.फ़ाल्गुन-कुम्भ राशि 12.चैत्र-मीन राशि इस प्रकार से अगर भाग देने के बाद शेष 1 बचता है तो बैसाख मास और मेष राशि मानी जाती है,और 2 शेष बचने पर ज्येष्ठ मास और वृष राशि मानी जाती है। हाथ में राशि का स्पष्ट निशान भी पाया जाता है. प्रकृति ने अपने द्वारा संसार के सभी प्राणियों की पहिचान के लिये अलग अलग नियम प्रतिपादित किये है,जिस प्रकार से जानवरों में अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार उम्र की पहिचान की जाती है,उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में दाहिने या बायें हाथ की अनामिका उंगली के नीचे के पोर में सूर्य पर्वत पर राशि का स्पष्ट निशान पाया जाता है. उस राशि के चिन्ह के अनुसार महिने का उपरोक्त तरीके से पता किया जा सकता है. पक्ष और दिन का तथा रात के बारे में ज्ञान करना.. वैदिक रीति के अनुसार एक माह के दो पक्ष होते है,किसी भी हिन्दू माह के शुरुआत में कृष्ण पक्ष शुरु होता है,और बीच से शुक्ल पक्ष शुरु होता है,व्यक्ति के जन्म के पक्ष को जानने के लिये दोनों हाथों के अंगूठों के बीच के अंगूठे के विभाजित करने वाली रेखा को देखिये,दाहिने हाथ के अंगूठे के बीच की रेखा को देखने पर अगर वह दो रेखायें एक जौ का निशान बनाती है, तो जन्म शुक्ल पक्ष का जानना चाहिये. और जन्म दिन का माना जाता है, इसी प्रकार अगर दाहिने हाथ में केवल एक ही रेखा हो, और बायें हाथ में अगर जौ का निशान हो तो जन्म शुक्ल पक्ष का और रात का जन्म होता है,अगर दाहिने और बायें दोनो हाथों के अंगूठों में ही जौ का निशान हो तो जन्म कृष्ण पक्ष रात का मानना चाहिये,. साधारणत: दाहिने हाथ में जौ का निशान शुक्ल पक्ष और बायें हाथ में जौ का निशान कृष्ण पक्ष का जन्म बताता है. जन्म तारीख की गणना.. मध्यमा उंगली के दूसरे पोर में तथा तीसरे पोर में जितनी भी लम्बी रेखायें हों,उन सबको मिलाकर जोड लें,और उस जोड में 32 और मिला लें,फिऱ 5 का गुणा कर लें,और गुणनफ़ल में 15 का भाग देने जो संख्या शेष बचे वही जन्म तारीख होती है. दूसरा नियम है कि अंगूठे के नीचे शुक्र क्षेत्र कहा जाता है,इस क्षेत्र में खडी रेखाओं को गुना जाता है,जो रेखायें आडी रेखाओं के द्वारा काटी गयीं हो,उनको नही गिनना चाहिये,इन्हे 6 से गुणा करने पर और 15 से भाग देने पर शेष मिली संख्या ही तिथि का ज्ञान करवाती है,यदि शून्य बचता है तो वह पूर्णमासी का भान करवाती है,15 की संख्या के बाद की संख्या को कृष्ण पक्ष की तिथि मानी जाती है. जन्म वार का पता करना.. अनामिका के दूसरे तथा तीसरे पोर में जितनी लम्बी रेखायें हों,उनको 517 से जोडकर 5 से गुणा करने के बाद 7 का भाग दिया जाता है,और जो संख्या शेष बचती है वही वार की संख्या होती है. 1 से रविवार 2 से सोमवार तीन से मंगलवार और 4 से बुधवार इसी प्रकार शनिवार तक गिनते जाते है. जन्म समय और लगन की गणना.. सूर्य पर्वत पर तथा अनामिका के पहले पोर पर,गुरु पर्वत पर तथा मध्यमा के प्रथम पोर पर जितनी खडी रेखायें होती है,उन्हे गिनकर उस संख्या में 811 जोडकर 124 से गुणा करने के बाद 60 से भाग दिया जाता है,भागफ़ल जन्म समय घंटे और मिनट का होता है,योगफ़ल अगर 24 से अधिक का है,तो 24 से फिऱ भाग दिया जाता है. इस तरह घंटे-मि. आदि जन्मादि काल प्राप्त हो जाता है… अब इन सभी से सहज और पूर्ण जन्म कुंंडली तैयार करके, जाचक का सटीक फलित भी किया जा सकता है.. जय भैरवी….

शक्ति-उपासक:- पं कृपाराम उपाध्याय (ज्योतिर्विद, तत्वेवेक्ता एवं तंंत्रज्ञ) भोपाल म.प्र.मो.बा..07999213943

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