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मध्यप्रदेश के लोक रंगकर्म को मेटा 2025 द्वारा मिला राष्ट्रीय पुरस्कार  

जबलपुर के रंगाभरण थियेटर ग्रुप के बुंदेली स्वांग 'जस की तस' को 4 अवॉर्ड से सम्मानित किया गया

मध्यप्रदेश में रंगकर्म के क्षेत्र में लगातार सकारात्मक कार्य हो रहे है इसी कड़ी में ये एक बड़ी उपलब्धि मध्यप्रदेश को मिली।

जबलपुर, 25 मार्च। रंगाभरण रंग समूह, जबलपुर ने रंगमंच के प्रतिष्ठित महिंद्रा एक्सीलेंस इन थिएटर अवार्ड्स (मेटा) के 20 वें संस्करण में चार अवार्ड हासिल करने में सफलता पाई है। रंगाभरण रंग समूह की हिन्दी व बुंदेली नाट्य प्रस्तुति ‘स्वांग-जस की तस’ को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक अक्षय सिंह ठाकुर, सर्वश्रेष्ठ साउंड व म्यूजिक डिजाइन अक्षय सिंह ठाकुर, सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता (पुरुष) अभ‍िषेक गौतम व सर्वश्रेष्ठ नाट्य समूह का अवार्ड प्रदान किया गया। नाट्य प्रस्तुति ‘स्वांग-जस की तस’ का मेटा के 20 वें संस्करण में छह केटेगरी में नामांकन हुआ था और रंगाभरण रंग समूह को चार केटेगरी में सफलता मिली। उल्लेखनीय है कि जबलपुर के रंगकर्म के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब यहां कि किसी रंग समूह को मेटा अवार्ड में यह सफलता मिली और चार अवार्ड प्रदान किए गए। नाट्य प्रस्तुति ‘स्वांग-जस की तस’ को समीक्षकों के साथ दर्शकों की प्यार व सराहना मिली।

367 प्रविष्टियों में से मध्यप्रदेश के जबलपुर से मात्र 1 का चयन –
13 से 20 मार्च, 2025 तक दिल्ली के कमानी सभागार और श्री राम सेंटर में आयोजित सप्ताह भर चलने वाले महोत्सव में देश भर से चुने गए 10 सर्वश्रेष्ठ नाटकों का मंचन किया गया। 2025 सीज़न के लिए, फेस्टिवल को भारत के 25 राज्यों से 367 प्रविष्टियाँ प्राप्त हुईं, साथ ही दो अंतर्राष्ट्रीय प्रस्तुतियाँ भी मिलीं। शॉर्टलिस्ट में मेटा द्वारा मध्य प्रदेश के जबलपुर से एक ही प्रविष्टि को चुना गया। इसके अलावा कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के नाटक शामिल थे। मेटा ने परम्परा के अनुसार महोत्सव ने समावेशिता और विविधता को अपनाया। जिसमें 47 भारतीय भाषाओं और बोलियों में प्रविष्टियाँ प्रस्तुत की गई थीं। अंतिम 10 नामांकनों में हिन्दी, मलयालम, बंगला, कन्नड़, संस्कृत, बुंदेली और अंग्रेजी में नाटक शामिल थे।

जूरी में शामिल थी भारतीय फिल्म एवं रंगमंच की महान हस्ती –
मेटा फेस्टिवल के 20वें संस्करण लिए जो जूरी बनाई गई थी उसमें थिएटर व फिल्म अभिनेत्री और थिएटर निर्देशक लिलेट दुबे, नेशनल सेंटर फॉर द परफॉर्मिंग आर्ट्स (एनसीपीए), मुंबई में थिएटर और फिल्म्स के प्रमुख ब्रूस गुथरी, मशहूर पपेटटियर दादी पुदुमजी, तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्देशक सुधीर मिश्रा और इंडिया हैबिटेट सेंटर के निदेशक व दिल्ली म्यूजिक सोसाइटी के अध्यक्ष सुनीत टंडन शामिल थे।

क्या है नाट्य प्रस्तुति ‘स्वांग-जस की तस’-
स्वांग भारतीय लोक नाट्य का एक प्राचीन रूप है, जो अब विलुप्त होने के कगार पर है। यह नाटक एक संगीतमय नाटक है, यह गीत, संगीत और नृत्य के मिश्रण के माध्यम से लोक कथाओं और कहानियों को प्रस्तुत करता है। अपने हास्य, व्यंग्य और सामाजिक संदेशों के लिए जाना जाने वाला स्वांग मुख्य रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में खेला जाता है, जहाँ इसे सांग भी कहा जाता है। आम तौर पर मेलों, त्योहारों और विशेष अवसरों के दौरान मंचित, इसकी कहानियाँ अक्सर ग्रामीण जीवन, पौराणिक कथाओं और इतिहास का पता लगाती हैं। पारंपरिक वेशभूषा और मेकअप में कलाकार अपने अनोखे अभिनय और संवाद से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। स्वांग न केवल मनोरंजन करता है बल्कि सामाजिक बुराइयों और अंधविश्वासों को भी संबोधित करता है, जो सामाजिक जागरूकता के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में कार्य करता है।

विजयदान देथा की लोककथा पर आधारित है नाट्य प्रस्तुति-
स्वांग ‘जस की तस’ प्रसिद्ध कथाकार विजयदान देथा की मशहूर कहानी ‘ठाकुर का रूठना’ पर आधारित है। यह एक हास्यपूर्ण और पूर्णतः संगीतमय प्रस्तुति है। कहानी एक ठाकुर (ज़मींदार) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अक्सर बिना किसी ठोस कारण के नाराज़ हो जाता है और तर्कहीन निर्णय लेता है। कई गाँवों का शासक होने के नाते, सभी ग्रामीणों को उसकी आज्ञा का पालन करना पड़ता है।
एक बार ठाकुर आदेश देता है कि गाँव के सभी पानी से भरे कुओं को रेत से भर दिया जाए, जिससे ग्रामीणों में हाहाकार मच जाता है। गाँववाले इस अन्याय के ख़िलाफ़ मां जी के पास शिकायत लेकर जाते हैं। मां जी सबके सामने ठाकुर को कड़ी फटकार लगाती हैं, जिससे ग़ुस्से में आकर ठाकुर अपनी हवेली छोड़कर चला जाता है।

ग्रामीण उसे मनाने की कई कोशिशें करते हैं, लेकिन वह वापस लौटने से इनकार कर देता है। अंततः ठाकुरानी (ठाकुर की पत्नी) और मां जी के अनुरोध पर पड़ोसी गाँव के एक चौधरी को भेजा जाता है, जो ठाकुर को समझा-बुझाकर वापस लाने का प्रयास करता है।
यह नाटक समाज की विभिन्न समस्याओं पर एक तीखा व्यंग्य और आलोचना प्रस्तुत करता है। दर्शक इसे देखकर हँसते हैं, लेकिन हँसी के बीच वे गहरे सामाजिक संदेश भी आत्मसात करते हैं। ‘ठाकुर का रूठना’—इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि स्वांग जैसी लोक नाट्य परंपराएँ मनोरंजन के साथ-साथ समाज को शिक्षित और जागरूक करने का कार्य भी करती हैं।
जस की तस जितनी सरल है उतनी ही बहुमुखी भी है, यह आपको चरित्र में बदलाव और स्वीकृति तथा ठहराव और हठ के रूप में विकसित होने वाली मानवीय भावनाओं का एक स्तरित विचार देती है। मनोरंजक ऑडियो और विज़ुअल, विस्तृत वेशभूषा, अच्छी तरह से लिखे गए छंद और शानदार अभिनय के उपयोग के माध्यम से, यह आपको कई गाँवों के स्वामी ठाकुर की कहानी बताती है, जो अपने बेतुके अनुरोधों को पूरा न करने पर कुछ गाँव वालों से नाराज़ हो जाता है।

जस की तस एक मनोरंजक और शानदार नाटक होने के साथ-साथ उस समाज के सार और पेचीदगियों को भी मजबूती से पकड़ती है जिसका यह प्रतिनिधित्व करती है और जिससे आती है। यह दर्शकों को भारत में मौजूद जाति और वर्ग संरचनाओं का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सामना करने के लिए प्रेरित करता है, हर बार शक्तिशाली प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष राजनीतिक टिप्पणियों के साथ।

जस की तस आपको अपने हास्य और नाटक में खूबसूरती से प्रस्तुत स्वांग के साथ मोहित कर देती है, जो हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के क्षेत्रों में आधारित एक भावनात्मक लोक नृत्य-रंगमंच है। यह बुंदेली, हिंदी और अंग्रेजी को एक सहज भंवर में लाता है, जो मेरे अंदर के बच्चे को जवाब देता है जो उसी भंवर के बीच बड़ा हुआ है। अपने सभी हास्य, नाटक, व्यंग्य और बुद्धि के साथ, यह दर्शकों को हंसाएगा, भाव व्यक्त करेगा, नृत्य करेगा, साथ गाएगा, जिससे उनके लिए शांत बैठना और गाना बंद करना मुश्किल हो जाएगा।

नाटक में नमन मिश्रा- ठाकुर, पूजा केवट- ठकुराइन, अभिषेक गौतम – अम्मा, अनुदीप सिंह ठाकुर – चौधरी/चुप्पा, रोहित सिंह – ग्रामीण 1, सुहैल वारसी – ग्रामीण 2, तरूण ठाकुर – ग्रामीण 3/ ढोलक, अमन मिश्रा – ग्रामीण 4, वंशिका पांडे – गुलाबो, अनुपम सिंह मरकाम- मृदंगिया के रूप में मंच पर थे।

बैक स्टेज यानी कि मंच से परे की भूमिका-
नाटक के “कोरियोग्राफर” संजय पांडे, अक्षय सिंह ठाकुर (हारमोनियम), समीर सराठे (ढोलक), जतिन राठौर संगीत, रोहित तिवारी (टिमकी), अक्षय अवस्थी (मंजीरा), रोहित सिंह, पूजा केवट (वेशभूषा), तरूण ठाकुर (मेकअप एवं सेट प्रभारी), (लाइट्स) हीरेश पचौरी और “स्टेज मैनेजर” ब्रजेन्द्र सिंह राजपूत व निमिष माहेश्वरी थे। नाटक का निर्देशन अक्षय सिंह ठाकुर ने किया।

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