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20 वर्षों से असिस्टेंट प्रोफेसरों की परिवीक्षा अवधि समाप्त नहीं हुई

 

20 वर्षों से असिस्टेंट प्रोफेसरों को मूल वेतन पर कार्य करवाना मानवाधिकारों का हनन।

20 वर्षों से मूल वेतन पर कार्य करने के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर मजबूर।

20 वर्षों से अनुसूचित जाति एवं जनजाति के असिस्टेंट प्रोफेसर उच्च शिक्षा विभाग के भेदभाव के शिकार।

मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा विभाग में क्यों नहीं रुक रहा है जातिगत भेदभाव

भोपाल। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग 2003 के तहत बैकलाग पदों पर चयनित जिन असिस्टेंट प्रोफेसरों की पदस्थापना 2004 एवं 2005 में प्रदेश के शासकीय महाविद्यालयों में की गई है। उच्च शिक्षा विभाग के द्वारा आरक्षित वर्ग के लिए दोहरे नियमों के कारण अनेकों असिस्टेंट प्रोफेसर 20 वर्षों से आज भी मूल वेतन पर कार्य कर रहे हैं। उच्च शिक्षा विभाग के द्वारा इन असिस्टेंट प्रोफेसरों को दो वर्ष की परिवीक्षा अवधि पर PHD / नेट या स्लेट उत्तीर्ण करने की शर्त पर पदस्थापना की गई। नेट/ सेट या PHD करने की उच्च शिक्षा विभाग के आदेशानुसार 2017 तक की छूट दी गई । अधिकांश असिस्टेंट प्रोफेसरों के द्वारा पात्रता पूर्ण करने के उपरांत भी परिवीक्षा अवधि समाप्त नहीं करना कही न कही दुर्भाग्यपूर्ण है।परिवीक्षा अवधि के संबंध में मध्य प्रदेश शासन, सामान्य प्रशासन विभाग के जो नियम सभी शासकीय विभागों पर लागू होते हैं वह इस प्रकार है। प्रत्येक अधिकारी/कर्मचारी को दो वर्षों से अधिक की परिवीक्षा अवधि पर नहीं रखा जा सकता और यदि उसकी परिवीक्षा अवधि किन्ही कारणों से बढ़ाना है तो उससे संबंधित अधिकारी/कर्मचारी को विभाग के द्वारा पर्याप्त कारणों सहित लिखित सूचना देकर एक वर्ष तक बढ़ायी जा सकती है। मध्य प्रदेश शासन सामान्य प्रशासन के नियमों का उच्च शिक्षा विभाग द्वारा उल्लंघन कर अनुसूचित जाति एवं जनजाति के असिस्टेंट प्रोफेसरों की 20 वर्षों तक परिवीक्षा अवधि समाप्त नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण है।

UGC एवं उच्च शिक्षा विभाग का वेतनमान के मामले में नियम इस प्रकार है। चार वर्ष की सेवा के साथ PHD होने पर वरिष्ठ वेतनमान श्रेणी इसके पश्चात पाँच साल की सेवा पर प्रवर श्रेणी वेतनमान एवं इसके बाद सेवा तीन वर्ष की पूर्ण करने पर चतुर्थ पे बैण्ड वेतनमान दिए जाने का प्रावधान हैं । UGC नियमानुसार जिनकी PHD नहीं है उन्हें छह वर्ष में वरिष्ठ श्रेणी वेतनमान इसके पश्चात पाँच वर्ष बाद प्रवर श्रेणी वेतनमान तथा इसके बाद तीन वर्ष की सेवा पूर्ण करने पर चतुर्थ पे बैण्ड वेतनमान का लाभ नियमानुसार दिए जाने का प्रावधान है। किन्तु उच्च शिक्षा विभाग का अनुसूचित जाति एवं जनजाति के असिस्टेंट प्रोफेसरों के साथ यह भेदभाव समझ से परे हैं।
उच्च शिक्षा विभाग में बैठे अधिकारियों द्वारा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के असिस्टेंट प्रोफेसरों के साथ जानबूझकर भेदभाव किया जा रहा है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। जबकि मध्य प्रदेश के शेष वर्ग के असिस्टेंट प्रोफेसरों को UGC एवं उच्च शिक्षा के नियमानुसार ही वेतनमान के लाभ दिया जा रहा है। 2004-2005 में नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसरों की निर्धारित समय अवधि में ही पीएचडी/ नेट एवं सेट समय पर हो गया है उन्हें भी नियमानुसार वेतनमान देने से वंचित रखा जा रहा है।

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