
वैदिक पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि अश्विन मास की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होती है. नवमी तिथि को समाप्त होती है. इस साल शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 22 सितंबर से होगी. 22 सितंबर को ही कलश स्थापना की जाएगी. फिर 30 सितंबर को महा अष्टमी, 1 अक्टूबर को महानवमी और 2 अक्टूबर को दशहरा पर्व मनाया जाएगा. 2 अक्टूबर को ही मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन होता है.नवरात्रि का आरंभ घटस्थापना के साथ शुरू होता है. 22 सितंबर को सुबह 06:09 बजे से 08:06 बजे तक घटस्थापना के लिए सबसे शुभ मुहूर्त है. वहीं, घटस्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11:49 बजे से 12:38 बजे तक है। शारदीय नवरात्रि में माता के आगमन और प्रस्थान की सवारी बहुत खास होती है. माता की सवारी भविष्य में होने वाली शुभ व अशुभ घटनाओं का संकेत देती है. नवरात्रि के आरंभ और समापन के दिन माता की सवारी प्रकट होती है. इस बार शारदीय नवरात्रि सोमवार से प्रारंभ हो रहे हैं, इसलिए मां दुर्गा की सवारी हाथी होगा. माता का हाथी पर आगमन अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है. इसे समृद्धि, उन्नति और शांति का प्रतीक माना गया है.।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।। माँ दुर्गा का पहला ईश्वरीय स्वरुप शैलपुत्री है। शैल का अर्थ है शिखर। शास्त्रों में शैलपुत्री को पर्वत (शिखर) की बेटी के नाम से जाना जाता है। आमतौर पर यह समझा जाता है कि देवी शैलपुत्री कैलाश पर्वत की पुत्री हैं। ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के पहले स्वरुप माँ शैलपुत्री की आराधना कर सकते हैं। माँ दुर्गा के दूसरे रूप का नाम है माँ ब्रह्मचारिणी।
यहाँ ब्रह्म का अर्थ है
जिसका कोई आदि या अंत न हो, वह जो सर्वव्याप्त, सर्वश्रेष्ठ है और जिसके परे कुछ भी नहीं। जब आप आँखे बंद कर के ध्यानमग्न होते हैं तब अनुभव करते हैं कि ऊर्जा अपनी चरम सीमा या शिखर पर पहुँच जाती है।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के दूसरे स्वरुप माँ ब्रह्मचारिणी का आवाहन कर सकते हैं ।देवी माँ के तृतीय ईश्वरीय स्वरुप का नाम माँ चन्द्रघण्टा है।चन्द्रमा हमारे मन का प्रतीक है। मन का अपना ही उतार चढ़ाव लगा रहता है। प्राय: हम अपने मन से ही उलझते रहते हैं – सभी नकारात्मक विचार हमारे मन में आते हैं, ईर्ष्या आती है, घृणा आती है और आप उनसे छुटकारा पाने के लिए और अपने मन को स्वच्छ करने के लिए संघर्ष करते हैं।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:’ मन्त्र के जप से आप माँ दुर्गा के तीसरे स्वरुप माँ चंद्रघंटा का आवाहन कर सकते हैं ।देवी माँ के चतुर्थ रूप का नाम है, देवी कूष्माण्डा।
कूष्माण्डा का संस्कृत में अर्थ होता है कद्दू।लौकी, कद्दू गोलाकार है। अतः यहाँ इसका अर्थ प्राणशक्ति से है – वह प्राणशक्ति जो पूर्ण, एक गोलाकार, वृत्त की भांति है।
भारतीय परंपरा के अनुसार लौकी, कद्दू का सेवन मात्र ब्राह्मण, महा ज्ञानी ही करते थेॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के चौथे स्वरुप माँ कूष्मांडा की आराधना कर सकते हैं।देवी माँ का पाँचवां रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित है। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक हैं। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वह दैवीय शक्ति हैं, जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती हैं – वह जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमतायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के पाँचवें स्वरुप माँ स्कंदमाता का आवाहन कर सकते हैं ।देवी माँ का छठा रूप का नाम है, देवी कात्यायनी है।
हमारे सामने जो कुछ भी घटित होता है, जिसे हम प्रपंच का नाम देते हैं, जरूरी नहीं कि वह सब हमें दिखाई दे। वह जो अदृश्य है, जिसे हमारी इन्द्रियाँ अनुभव नहीं कर सकती वह हमारी कल्पना से बहुत परे और विशाल है।
सूक्ष्म जगत जो अदृश्य, अव्यक्त है, उसकी सत्ता माँ कात्यायनी चलाती हैं‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के छठें स्वरुप माँ कात्यायनी का आवाहन कर सकते हैं ।देवी माँ के सप्तम रूप का नाम है माँ कालरात्रि।
यह माँ का अति भयावह व उग्र रूप है। सम्पूर्ण सृष्टि में इस रूप से अधिक भयावह और कोई दूसरा नहीं। किन्तु तब भी यह रूप मातृत्व को समर्पित है। देवी माँ का यह रूप ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:’ जप से आप माँ दुर्गा के सातवें स्वरुप माँ कालरात्रि की पूजा कर सकते हैं।देवी माँ का आठवाँ स्वरुप है महागौरी।महागौरी का अर्थ है – वह रूप जो कि सौन्दर्य से भरपूर है, प्रकाशमान है – पूर्ण रूप से सौंदर्य में डूबा हुआ है। प्रकृति के दो छोर हैं – एक माँ कालरात्रि जो अति भयावह, प्रलय के समान हैं, और दूसरा माँ महागौरी जो अति सौन्दर्यवान, देदीप्यमान, शांत हैं ।‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के आठवें स्वरुप माँ महागौरी की पूजा कर सकते हैं ।देवी के नौंवे रूप को सिद्धिदात्री कहा जाता है।
देवी महागौरी आपको भौतिक जगत में प्रगति के लिए आशीर्वाद और मनोकामना पूर्ण करती हैं, ताकि आप संतुष्ट होकर अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ें।ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:’ के जप से आप माँ दुर्गा के नौवें स्वरुप माँ सिद्धिदात्री की पूजा कर सकते हैं ।
पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा करते वक्त पीले रंग के वस्त्र धारण करना अच्छा रहेगा
द्वितीया को सफेद रंग का वस्त्र धारण कर माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करें
तृतीया को भूरे या लाल रंग का वस्त्र धारण करना अच्छा रहेगा.
चतुर्थी को नारंगी या पीला रंग धारण करने से माता कुष्मांडा की कृपा मिलेगी
पंचमी को सफेद रंग का वस्त्र धारण कर स्कंदमाता की पूजा करें.
षष्ठी को कात्यायनी की पूजा होती है और उन्हें लाल रंग पसंद है.
सप्तमी को नीले रंग के वस्त्र धारण कर कालरात्रि की पूजा करें
अष्टमी को गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कर महागौरी की पूजा करें.
महानवमी के दिन बैंगनी रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए
अपनी राशि के अनुसार देवी की किस महाविद्या की पूजा अर्चना करनी चाहिए जो आपको शुभ फल प्रदान करें. मेष राशि वालों को नव दुर्गा में देव शैल पुत्री वृषभ राशि वालो को नवदुर्गा में देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करनी चाहिए. मिथुन राशि वालों को नवदुर्गा में देवी चन्द्रघंटा की आराधना करना श्रेष्ठ है. कर्क राशि वालोको भी देवी चन्द्रघंटा की आराधना करना श्रेष्ठ होता है सिंह राशि वालों को नव दुर्गा में देवी कालरात्रि का पूजन करना चाहिए.
एस्ट्रोलॉजर पंडित पूजा दुबे ‘ मोहिनी ‘टैरो कार्ड रीडर न्यूमैरोलॉजिस्ट
रेकी ग्रैंडमास्टर
कवित्री
फाउंडर एंड ओनर ऑफ़
द एस्ट्रो विजडम 108
हॉनर एंड द फाउंडर ऑफ़ नमो हरि सोशल क्लब.
भोपाल मध्य प्रदेश.