

सुरेन्द्र तिवारी
एक झील में एक मछली अपने माता-पिता (पूर्ण व्यस्क मछली-मछला) के साथ रहती थी। उसके माता-पिता की सख्त हिदायत थी, उथले पानी में किनारे पर न जाने की।
कभी-कभार बहुत जरूरी होता तो माता-पिता की कड़ी सुरक्षा व निगरानी में किनारे तक उथले पानी में जाती और यथाशीघ्र पुनः गहरे पानी में लौट आती।
छोटी मछली को गहरे पानी में सुरक्षा तो थी किन्तु उसे सूर्योदय व सूर्यास्त के समय पानी पर बिखरी हुई लालिमा, झील के किनारे लगे बड़े बड़े पेड़ों पर बैठते और हवा में स्वच्छन्द उड़ते पक्षी बहुत लुभाते थे।
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय क्षितिज पर उगता/डूबता हुआ सूरज बहुत अच्छा लगता था, उसे लगता था कि वहाँ धरती और आसमान मिल कर एक हो जाते हैं और वो वहां तक तैर कर जा सकती है।
उसे भी कभी उड़ने का मौका मिलता तो वह उड़कर चाँद तारों के पार चली जाती, और तमाम सितारे लाकर अपनी झील में सजाती।
मछली ने बचपन छोड़कर यौवन की दहलीज़ पर कदम रखा ही था, अब इसे यौवन की उमंग कहिये चाहे हार्मोनल इफ़ेक्ट, माता-पिता की बन्दिशें उसे पैरों में पड़ी हुई बेड़ियाँ लगतीं थीं,
वो माँ-बाप की नजरों से छुप कर कभी-कभार किनारे पर चली जाती थी।
एक दिन वो किनारे पर सुरक्षित गहराई से झील के बाहर की दुनियाँ का अवलोकन कर रही थी कि उसे एक बगुले ने पुकारा
ये उसके लिए मित्रता का आमन्त्रण था…
युवा मछली ने उसका आमन्त्रण स्वीकार नहीं किया परन्तु एकदम मना भी नहीं किया।
किन्तु कुछ समय बाद सुरक्षित दूरी से बात और मुलाकात की शुरुवात हो गयी
धीरे धीरे ये मुलाकातें आए दिन की बात हो गयी, युवा मछली प्यार से बगुले को #बगदूल बोलने लगी।
फिर दोनो के बीच सच्ची मित्रता की बाते, आसमान की ऊंचाइयों मने सफलता की बुलन्दियों को छूने की बातें, सहयोग, सफलता, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व, #गंगा_जमुनी_तहजीब बहाने और Symbol of freedom बनने की बातें
युवा मन पर ऐसे विचार जल्दी असर करते हैं, गहरा असर….
मछली पर भी असर पड़ा…
उसे लगता कि जैसे माता-पिता उसे रंग-बिरंगी दुनिया की तमाम ख़ुशियों से वंचित रखना चाहते हैं।
अब माता-पिता से दबी ज़ुबान से शिकायत की, #बगदुल की तरह उनके साथ आसमान में उड़ान भरने की बात की तो पिता ने डाँट कर चुप करा दिया।
फिर माँ ने प्यार से समझाया कि “बेटी ये दुनियाँ जो दूर से इतनी खूबसूरत और रंग-बिरंगी नज़र आती है
वास्तविकता में उतनी ही बुरी, क्रूर और स्वार्थी है।
ये जो सर से टखनों तक सफेद पंखों वाले #बगदूल हैं न इनका दिल उतना ही काला है।
इनकी भूरी या सुरमयी मासूमियत छलकाती आँखों के पीछे तमाम नफ़रतें छिपी हैं।
इनके इन बेरहम काले पंजों ने हमारी कई पीढ़ियों में तुम्हारी परदादी, परनानी के ज़िस्मों को खाल उतारकर नोचा है, दुश्मन हैं ये दुश्मन
ये सफेद लिबास पहने कोई नेकदिल महात्मा नहीं बल्कि केवल पंखों से ही सफेद हैं, काले दिल वाले शैतान हैं ये
बेटी, तुम अभी अपरिपक्व हो, इनकी कुटिलता को नहीं समझतीं, इनसे हमेशा दूर रहना, कभी बात मत करना, कभी भरोसा मत करना, हमेशा दूर रहना”
युवा मछली को ये सभी बाते अतिश्योक्ति लगी
लगा कि माँ उसे डरा रही है
बात आयी गयी हो गई।
मछली ने #बगदूल से मिलना नहीं बंद किया,
बगदूल उसे आये दिन अपने साथ आसमान में उड़ने का ऑफर देता
एक दिन मछली ने मन में कुछ सोचा विचारा और #बगदूल के साथ आसमान में परवाज भरने का निर्णय ले लिया
मन में डर तो था किन्तु उसे लगा कि जब वो लौटकर माँ-बाप समेत सबको आसमान की बुलंदियाँ छूकर आने की खबर सुनाएगी तो सब उसे सराहेंगे, उसकी मिसाल देंगे, उसकी सफलता पीढ़ियों से चली आ रही बगदुलो से बेपनाह नफ़रत को एक ही झटके में समाप्त कर देगी।
वो उस जगह तक जायेगी जहाँ पर धरती और आसमान मिलकर एक हो जाते हैं और वापस आकर वहाँ का आँखों देखा हाल अपनी मछली सहेलियों को बताएगी, वो साबित कर देगी कि माता-पिता की ये बात गलत है कि धरती और आसमान कभी भी एक नहीं हो सकते, #बगदूल भी नेकदिल और सच्चे दोस्त होते हैं। हम मछलियाँ उनसे बेवजह डरते हैं और नफरत करते हैं, मेरा वाला #बग़दुल अलग है, आदि आदि आदि..
माँ-बाप की तमाम नसीहतों को दरकिनार करके मछली एक शाम अपने मित्र #बगदूल के साथ आसमान में उड़ान भरने के लिए तैयार हो गई, अपनी कल्पनाओं में सुनहरे सपने बुनती हुई #बगदूल के पास पहुँच गयी, #बगदूल उसे पंजे में दबाकर उड़ चला
अभी पानी से निकले ज्यादा वक्त न बीता था कि मछली को घुटन महसूस हुई, उसे साँस लेने में परेशानी हो रही थी
उसने #बगदूल से वापस झील में पहुँचाने, पानी में जाने के लिए आग्रह किया और अपना दम घुटने की शिकायत की
किन्तु अब #बगदूल ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया
बगदूल उसे लेकर एक सूखी चट्टान पर पहुँचा,
वहाँ उसके जैसे तमाम #बगदूल थे, उनमें मछलियों को मिल बाँट कर शिकार करने और खाने की रीति रिवाज चली आ रही थी, #बगदूलो ने मिल कर मछली की खाल नोंचकर उतार दी,
वे उसे अपनी चोंचों में दबाकर उछाल रहे थे और उसके जिन्दा ज़िस्म से छोटी छोटी बोटियाँ नोंचकर खा रहे थे
मछली को अपनी मां के उपदेश और पिता की patriarchy बहुत याद आ रहे थे, उसे विश्वास हो गया था कि मां की नसीहतें सच थीं, धरती और आसमान कभी एक नहीं हो सकते… मछलियों की #बगदुलो से कभी मित्रता नहीं हो सकती।
कोई चाँद सितारे नहीं तोड़ सकता, लेकिन अफसोस अब कोई लाभ नहीं था।
मछली की चीखें और बचाव की पुकार सुनने वाला वहाँ कोई भी नहीं था, उसके आँसू और खून परस्पर मिलकर बह रहे थे, माँस विहीन हड्डियों व सूखी चट्टान पर खून के दागों से #Symbol_of_freedom बन चुका था
मछली को निपटाने के बाद #बगदुलो ने अट्टहास किया, अपने पंख और चोंच व पंजों पर लगा खून साफ किया, पुनः ज़ल्द मिलने का वायदा किया उड़कर फिर झील के किनारे जा पहुँचे।
फिर वही मित्रता आदि की कहानियाँ खुले आसमान में उड़ने के रंगीन सपने देखती किसी और युवा मछली को सुनाने के लिए …



