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आईआईटी मद्रास के शोध से पता चला कि आर्टिस्टिक थिरैपी से कॉर्पोरेट फर्मों के कर्मचारियों के काम में निखार आएगा

चेन्नई, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी मद्रास) के एक शोध से पता चला है कि किसी संगठन में कर्मचारियों की क्रिएटिविटी और अभिव्यक्ति क्षमता बढ़ाने का सही माहौल दिया जाए तो कारोबार के कठिन दौर में भी अधिक सफलता मिल सकती है।

दरअसल कई कॉर्पोरेट संगठन जैसे कि बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप, ज़ेरॉक्स पार्क, सीमेंस और आईबीएम अपनेअपने कारोबार के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पहले से हीआर्ट थिरैपीका लाभ ले रहे हैं ।आईआईटी मद्रास के शोध में कर्मचारियों के बेहतर काम करने के लिए उन्हें कार्य में अभिव्यक्ति कला का लाभ लेने का सुझाव दिया गया है और यह बताया गया है कि इससे एक बेहतर कॉर्पोरेट कल्चर बनेगा।

यह शोध करने वाली आईआईटी मद्रास के प्रबंधन अध्ययन विभाग में प्रोफेसर वीविजयलक्ष्मी और डॉक्टरेट कर रही उनकी छात्रा सुश्री जननी एम ने कॉर्पोरेट कर्मियों की कार्य क्षमता बढ़ाने और अधिकतम करने के कई तरीके बताए।

यह शोध जर्नल ऑफ़ ऑर्गनाइज़ेशनल चेंज मैनेजमेंट में प्रकाशित है। (डीओआई(DOI: 10.1108/JOCM-03-2023-0092   

शोध की सहलेखिका प्रो. वी. विजयलक्ष्मी, प्रबंधन अध्ययन विभाग, आईआईटी मद्रास ने इस के मुख्य निष्कर्ष बताते हुए कहा, ‘‘विभिन्न संस्कृतियों में कला का महत्वपूर्ण इतिहास रहा है और यह लोगों के विचारों, भावनाओं और व्यवहारों को आकार देने में सक्षम है।प्रशिक्षण देने की प्रचलित पद्धतियों की तुलना में यदि अनुभव और कला की अभिव्यक्ति पर जोर दें तो कार्मिकों की अधिक सकारात्मक मनोदशा बनती है।उनकी संरचना शक्ति और इनोवेशन बढ़ता है । लोगों के काम करने की जगह उनके विचार और व्यवहार का दायरा बढ़ता है, क्योंकि उन्हें सकारात्मक तुलना और सुधार का लाभ मिलता है।’’

बाजार और कारोबार के अच्छेबुरे दौर का कार्मिकों की सेहत और तंदुरुस्ती और उनकी कार्यक्षमता पर भी लंबे समय तक प्रभाव पड़ सकता है।लेकिन उनकी कार्यक्षमता और उत्साह बनाए रखना जरूरी है, चाहे काम में कितना भी तनाव हो । इसलिए यह जरूरी है कि कम्पनियां कठिन दौर में अपने कर्मचारियों को मजबूत बनाए रखें।

जेनरेशन और टेक्नोलॉजी बदलने की वजह से और दुनिया के दौर में बने रहने के लिए भी यह जरूरी है कि संगठन भी काम के तौर तरीके बदलें, जिससे कर्मचारियों की अधिकतम क्षमता का लाभ मिलेगा और वे संतुष्ट भी रहेंगे।

आईआईटी मद्रास के शोधकर्ताओं का विमर्श एक खास कांसेप्ट पर है जिसेवर्कफोर्स एजिलिटीकहते हैं ।यह कर्मचारियों को उनके संगठन की चुनौतियों से निपटने में मदद करता है।इस तरह वे प्रतिरोध के बजाय संरचनात्मक सुधार का रास्ता चुनते हैं।इससे संगठन के लिए आपदा में अवसर का लाभ उठाना आसान होता है।कारोबा र की चुनौतियों से उत्पन्न खतरों से निपटना भी आसान होता है।

हम सभी जानते हैं कि आमतौर पर वर्कफोर्स एजिलिटी बढ़ाने में किसी कर्मचारी को व्यक्तिगत तौर पर बहुत कम प्राथमिकता दी जाती है । वर्कफोर्स एजिलिटी में सुधार करते हुए अब तक कार्मिकों के विशेष गुणों पर बहुत कम ध्यान दिया गया है ।लेकिन इस शोध में यह सुझाव दिया गया है कि वर्क कल्चर अच्छा बना रहे इसके लिए कर्मचारियों की संरचनात्मक चाहत को बनाए रखना होगा।

इस शोध पत्र में लेखिकओं ने कर्मचारियों की निजी वर्कफोर्स एजिलिटी बढ़ाने के लिए बतौर बिजनेस मॉडलइंटरमॉडल आर्ट्सबेस्ड इंटरवेंशन’ (आईएबीआई) का प्रस्ताव दिया है।इसमें विजुअल आर्ट्स म्युज़िक, मूवमेंट और थिएटर जैसे विविध कलाएं शामिल होंगी।

इससे कर्मचारियों को कई अभूतपूर्व लाभ मिल सकते हैं जैसे विचारों और व्यवहारों की अभिव्यक्ति करना, सीखने की क्षमता बढ़ाना और कार्य को लेकर नैतिक दुविधा जैसी जटिलता समस्याओं के बारे में सोचने और समझने का अवसर मिलना।इसके लिए फैसिलिटेटर कला पर आधारित कार्यव्यवहार में प्रशिक्षित होंगे, जो कर्मचारियों को धीरेधीरे प्रतिरोध की मानसिकता से स्वीकार करने की मानसिकता की ओर ले जाएंगे।

शोध की लेखिका और आईआईटी मद्रास के प्रबंधन अध्ययन विभाग में डॉक्टरेट स्कॉलर सुश्री जननी एम. की डॉक्टरेट की थीसिस इसी विषय पर है। उन्होंने कहा, ‘‘इस शोध का लाभ कई भागीदारों को मिल सकता है क्योंकि यह ऑर्गेनाइजेशन को आम प्रशिक्षण से आगे बढ़कर अनुभव प्रधान प्रशिक्षण देने में मदद कर सकता है । इससे कर्मचारियों को संगठन के अंदर और बाहर संवाद करने, नए संबंध बनाने और नई सोच लेकर आने में मदद मिलेगी । इनका लाभ लेकर वर्क कल्चर में अपनापन, संवेदना और सहयोग भी भावना बढ़ाई जा सकती है।’’

आधुनिक जीवन और कम्पनियों की सख्त संरचना में कार्मिकों से यह अपेक्षा रहती है कि वे नएनए गोल्स और टार्गेट पूरे करते रहें । इससे पूरे माहौल में ऊब या संरचनात्मक शून्यता पैदा हो सकती है ।कालांतर में कर्मचारियों की कार्यक्षमता में कमी आ सकती है क्योंकि वे जरूरत भर काम पूरा कर लेने पर ध्यान देते हैं और फिर ऐसे मनोरंजन की खोज में रहते हैं जिनका उनके जॉब से दूरदूर तक कोई वास्ता नहीं रहता है।

यह रिसर्च ऐसे कर्मचारियों की मानसिकता का विश्लेषण करते हुए सहज आनंद की अहमियत सामने रखता है, जो जॉब में कर्मचारियों के बेहतर प्रदर्शन में अहम भूमिका निभा सकता है।

प्रो. वी. विजयलक्ष्मी ने यह भी बताया, ‘‘कला में भागीदारी से खुद का एक सुरक्षित मनोवैज्ञानिक स्थान बनता है जिसमें आप अपना वैकल्पिक यथार्थ ढूंढ़ सकते हैं ।इस खोज से कार्मिक अपने सहज व्यवहार को लेकर प्रोएक्टिव हो सकते हैं ।वे भविष्य में होने वाले बदलावों और चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाने और तदनुसार समस्या समाधान करने में सक्षम हो सकते हैं।आपस में जुड़े कला रूपों में भाग लेने वाले कार्मिक विभिन्न अनुभव कर सकते हैं, जैसे कि खुद, परिजन, स्थान और सामग्रियों की खोज करना।’’इस सिलसिले में किसी भी सहयोग के लिए लेखिकाओं से संपर्क किया जा सकता है।

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