खबरमध्य प्रदेश

भव्य कलश शोभायात्रा के साथ श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंम्भ:पं. सुशील महाराज

कलश यात्रा समापन पर कलश सथापन करते वक्त कलशों पर इन्द्र देवता ने जल बरसाया
भोपाल। रुसल्ली करोद में श्री शिव मंदिर परिसर भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत हो उठा, जब भव्य कलश शोभायात्रा के साथ श्रीमद् भागवत कथा का शुभारंभ हुआ।और कलश यात्रा समापन पर ब्यास पीठ के सामने महिलायें कलश रखने पहुंची तो इन्द्र देवता ने कलशों पर जल की बर्षा करवा दी।यह नजारा देख सभी श्रृद्धालुओं के खुशी का ठिकाना नहीं रहा।सभी श्रोता कहने लगे कि यह तो साक्षात इंन्द्र भगवान ने कृपा दृष्टि बर्षाई है।इतना ही नहीं कलश स्थापना के बाद पं०सुशील महाराज ने लगभग दो घंण्टे श्रोताओं के पहले दिवस की श्रीमद भागवत कथा सुनाई।कथा के समय एक बूंद पानी नहीं गिरा।और जैसे ही कथा की आरती पूर्ण हुई।तब से खबर लिखे जाने तक पानी बराबर गिरता रहा है।इसे श्रोता श्री कृष्ण कन्हैया की कृपादृष्टि कह रहे हैं।पं०सुशील महाराज ने इस घटना को ईश्वर की मर्जी बताते हुये आज गोकर्ण धुंन्धकारी की कथा श्रोताओं को सुनाई।
पं. सुशील महाराज के दिव्य सान्निध्य में आरंभ हुई इस कथा में उन्होंने कहा कि हर मनुष्य के भीतर आत्मा और मन दोनों विद्यमान होते हैं। यदि हम अपने मन रूपी रावण पर विजय पा लें, तभी अपने जीवन में रामराज्य की स्थापना कर सकते हैं। इंद्रियों को वेश्या के रूप में, बुद्धि को धुंधली के रूप में और शरीर को युद्धभूमि बताते हुए उन्होंने बताया कि यह कथा केवल धार्मिक नहीं, आत्मबोध का माध्यम भी है। इस आध्यात्मिक आयोजन में विजय सिंह,कथा समिति संरक्षक, श्याम सुंदर शर्मा,मार्गदर्शक, भैरोसिंह रजक, मायाराम अटल और अनूप पांडेय,शुभम पाण्डेय विशेष रूप से उपस्थित रहे। आयोजन की भव्यता को बनाए रखने में नारायण सिंह यादव,(ठेकेदार),अध्यक्ष और उपाध्यक्ष श्री आकाश यादव सहित पूरी मंदिर समिति ने सराहनीय भूमिका निभाई। यजमानों के रूप में रमेश साहू, श्याम पाराशर, कंचन पांडे और प्रशांत कश्यप ने श्रीमद् भागवत ग्रंथ की पूजा अर्चना की और कथा वाचक पं. सुशील महाराज का फूल मालाओं से स्वागत कर उन्हें सम्मानित किया। स्टेज व्यवस्था की जिम्मेदारी श्री पूरन सिंह अहिरवार ने संभाली,श्री घनश्याम गुप्ता और
श्री मीणा जी ने व्यास पीठ का पूजन किया एवं भागवत ग्रंन्थ कि आरती उतारी ।जिससे कार्यक्रम भव्य, अनुशासित और सौम्य वातावरण में संपन्न हुआ।
(पं०सुशील महाराज)

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