साकेत नगर जैन मंदिर में “भगवान तुम क्यों आये” का हुआ मंचन
मात्र दैहिक क्रियाओं का नाम ही तप नहीं है- पंडित पंकज शास्त्री

हास्य से भरपूर नाटक ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया
इसीलिए तो मैं भूखा हूँ- भगवान
मात्र दैहिक क्रियाओं का नाम ही तप नहीं है- पंडित पंकज शास्त्री
भगवान महावीर दिगंबर जैन मंदिर साकेत नगर में पर्युषण पर्व के अवसर पर रोजाना मंचित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में नाटक “भगवन तुम क्यों आए” हास्य नाटक का मंचन किया गया। हेमलता जैन रचना ने बताया कि इनसेम्बल थियेटर इन एजुकेशन एवं समांतर ग्रुप भोपाल के बैनर तले प्रस्तुत, फू. ल. देशपाण्डे .का मराठी नाटक “विट्ठल” से प्रेरित नाटक इस हास्य नाटक का निर्देशन भोपाल शहर के जाने माने, विभिन्न टीवी सीरियल्स, व्यावसायिक विज्ञापनों, फिल्मों तथा रंगमंच पर अपनी अदाकारी का लोहा मनवाने वाले राष्ट्रीय स्तर के कलाकार अखिलेश जैन द्वारा साकेत नगर जैन मंदिर के भव्य विद्यासागर सभागार में किया गया। हास्य और मनोरंजन से भरपूर नाटक “भगवान, तुम क्यों आये” के मुख्य कलाकार अखिलेश जैन, सार्थक त्रिपाठी, समृद्धि त्रिपाठी, सौरभ लोधी, पीयूष पांडा, विकास राठौर, सुमन मिश्रा, पूजा विश्वकर्मा, दीक्षा धनराज चौहान, यश रिक्षारिया , मानव आंनद, उज्ज्वल सिन्हा, सिद्धार्थ सृजन आदि थे। इस नाटक में बताया गया कि आजकल ईश्वर की भक्ति भाव हीन हो गयी है। हम अगर भक्ति करते हैं तो कुछ न कुछ मांगने के लिए ही करते हैं। भगवान ने हमें इंसान बनाया है, मगर हम इंसानियत ही भूल गए हैं। छल और फरेब में इतने लिप्त हो गए हैं कि अगर ईश्वर स्वयं भी प्रकट हो जाएँ तो हम न सिर्फ उन्हें पहचानने से इनकार कर देंगे बल्कि उनसे भी मोल-भाव करने में ज़रा भी पीछे नहीं हटेंगे। एक दृश्य में जब मंदिर का पुजारी बोलता है कि भगवान तो सिर्फ भक्ति-भाव के भूखे होते हैं तो भगवान बोलते हैं कि यही भक्ति-भाव तो आजकल कम हो गया है, इसीलिए तो मैं भूखा हूँ।
पर्युषण पर्व के “उत्तम तप धर्म” पर अपने प्रवचन देते हुए पंडित पंकज जैन शास्त्री जी ने कहा कि ‘इच्छानिरोधस्तपः’ अर्थात इच्छाओं का निरोध/अभाव/नाश करना ही तप है। जब तप आत्मा के श्रद्धान (सम्यग्दर्शन) पूर्वक होता है, तब ‘उत्तम तप धर्म’ कहलाता है। जीवन की प्रत्येक अवस्था में तप को महत्त्वपूर्ण माना गया है। जिस प्रकार, सोना अग्नि में तपाए जाने पर ही अपने शुद्ध स्वरूप में प्रगट होता है उसी प्रकार आत्मा भी स्वयं को तप-रूपी अग्नि में तपाकर अपने शुद्ध स्वरूप में प्रगट होता है। मात्र दैहिक क्रियाओं का नाम ही तप नहीं है अपितु आत्मा में उत्तरोत्तर लीनता ही वास्तविक तप है।
रोजाना नित्य नियम पूजन के साथ-साथ आयोजित किये जाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में भजन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें सहज जैन, तारिधी तारण, लोरी जैन ने ग्रुप ए में क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय, निर्जरा जैन, श्रद्धान जैन, प्रभुता जैन ने ग्रुप बी में, अलंकृता जैन, योग्या जालोरी, अनय जैन ने ग्रुप सी में तथा हेमलता जैन शक्ति नगर, हेमलता जैन रचना साकेत नगर और मोनिका जालौर ने ग्रुप डी में क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त किया। मंच सञ्चालन डॉ पारुल जैन ने किया तथा जज की महत्वपूर्ण भूमिका डॉ महेंद्र जैन तथा ललित मन्या जैन ने निभाई।