25 साल बाद मिले, मॉर्निंग असेंबली की फिर मॉक क्लासरूम में मैथ्स और एकाउंटेंसी की लगी क्लास
कैंपियन स्कूल में 1999 के पास आउट बैच का रीयूनियन कार्यक्रम आयोजित, देश और विदेश से भोपाल पहुंचे छात्र
भोपाल। कैंपियन स्कूल के पूर्व छात्रों के बैच ’99 द्वारा अपने 25 साल पूरे होने पर री-यूनियन का आयोजन अनूठे अंदाज में सोमवार को शाहपुरा स्थित कैंपियन स्कूल कैंपस में किया गया। मॉर्निंग असेंबली और परेड के साथ शुरू हुए दिन का अंत मॉक क्लासरूम से हुआ जिसमें मैथ्स टीचर बीना प्रकाश और अकाउंटेंसी टीचर वीना वम्बाले ने सभी स्टूडेंट्स को क्लासरूम में पढ़ाया और 25 साल पुरानी यादों को जीवंत कर दिया।
इसके अलावा कार्यक्रम के दोपहर के सत्र में देश-विदेश से आए एलुम्नाईज ने स्कूल के वर्तमान छात्रों के साथ संवाद किया और अपने स्कूल के कई अनुभवों को साझा किया। इसके अलावा उन्होंने अपने वक्तव्य में छात्रों को अनुशासन, हार्ड वर्क, फोकस के साथ बदलती टेक्नोलॉजी के प्रति अवेयर रहने की जानकारी दी। कार्यक्रम में इस दौरान कई शिक्षकों का सम्मान भी किया गया। गौरतलब है कि कार्यक्रम में हिस्सा लेने बैच 1999 के स्टूडेंट्स भारत के अलावा अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, यूके, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि कई देशों से भोपाल पहुंचे थे।
स्टूडेंट्स द्वारा साझा किए गए कुछ अनुभव और यादें…
मैं स्कूल समय में काफी शर्मिले स्वभाव का था। पहले सीनियर्स को स्टेज पर स्पीच देते देखता तो उनसे इंप्रेस होता था। मुझे लगता था मैं नहीं कर पाउंगा। फिर 11वीं क्लास में स्टूडेंट इलेक्शन के समय पहली बार हिम्मत जुटाकर खड़ा हुआ और वहां अपने विचार शेयर किए थे, तब एक गाने की पंक्ति दोहराई थी “सारी दुनिया पर छा जाएं, बस इतना सा ख्वाब है…”। शायद उसी स्पीच और गाने की वजह से मैं पहले असिस्टेंट स्कूल कैप्टन फिर 12वीं में स्कूल कैप्टन भी बना। यहां से बहुत आत्मविश्वास मिला। फिर आईआईटी और आईआईएम से पढ़ाई भी की। इसके बाद बैंकिंग की पढ़ाई की और अब स्टार्टअप चला रहा हूं। मुझे लगता है यहां जो आत्मविश्वास मिला, एक दूसरे का साथ देना सीखा है और यह जाना कि चांस लेंगे तो सक्सेस आता ही है। यही सफलता का मूल मंत्र है। – ऑरकू भट्टाचार्य, सीईओ एवं फाउंडर, ई-पे लेटर, मुंबई.
अनिरूद्ध बैस ने अपने स्कूल के समय को याद करते हुए कहा कि हमें स्कूल से अपने बेस को मजबूत बनाने में मदद मिली थी। इसी कारण आज करियर में जो भी सफलता मिल रही है, उसका श्रेय काफी हद तक स्कूल को जाता है। – अनिरूद्ध बैस, एसोसिएट डायरेक्टर, डब्ल्यूएसपी, दुबई.
मैं केपीएमजी के साथ 11 साल काम कर चुका हूं। उस दौरान मेरा एक साथी हुआ करता था जो बॉम्बे के बहुत बड़े स्कूल से पढ़ा था। काम करने के दौरान हमारी दोस्ती हुई और फिर हम काम के अलावा स्पोर्ट्स, पॉलिटिक्स, फिलस्फी, हिस्ट्री आदि अलग अलग सब्जेक्ट्स पर बहुत बात करते थे। एक बार उसने जब मेरे स्कूल के बारे में पूछा तो मैंने कैंपियन का नाम बताया। तब उसे लगा मैं बॉम्बे के कैंपियन स्कूल से हूं जहां के लगभग सभी एलुम्नाई देश में काफी रेप्यूटेड प्लेसेज में हैं। पर जब मैंने उसे भोपाल का बताया तो उसे भरोसा ही नहीं हुआ कि टियर 2 सिटीज में भी इतने अच्छे स्कूल्स हैं जहां स्टूडेंट्स एक अच्छी पर्सनेलिटी के साथ निकलते हैं। इसलिए मुझे भोपाल और अपने स्कूल पर बहुत गर्व होता है। – निखिल कुलकर्णी, फाउंडर,
बुकप्रोटोकॉल, मुंबई.मेरी सबसे यादगार मेमोरी में 3 टांग से दौडने वाली रेस में गोल्ड जीतना रहा है। जब मेरे साथ एक साथी की एक-एक टांगों को बांध दिया गया और फिर हम रेस जीत गए।जबकि हम दौड़ने में बहुत अच्छे नहीं थे। ऐसी चीजों से काफी मोटिवेशन मिलता है क्योंकि कई बार लगता है आप नहीं कर पाएंगे चीजें पर हम डेडिकेशन और एफर्ट लगाते हैं इमानदारी से तो जीत मिलती है। – सौरभ चैनपुरिया, वाइस प्रेसिडेंट, एनटीटी डाटा इंक., गुरुग्राम.मुझे याद है जब हम 9वीं क्लास में थे। तब हमारे लिए शॉर्ट पैंट्स पहनने का नियम था। यहां तक कि सर्दियों में शॉर्ट पैंट के ऊपर फुल पैंट पहनकर आते थे। और टीचर उन्हें उतरवा देती थी। छुट्टी के समय वे फुल पैंट वापस मिलते थे। – सौरभ सूद, जनरल मैनेजर, जॉर्ड एनर्जी प्र. लि., ऑस्ट्रेलिया
स्कूल के पनिशमेंट की आज बहुत याद आती हैं। एक बार हम स्कूल लेट पहुंचे तो फादर ने वापस घर जाने को बोल दिया था। तब गुस्से में हमने किसी दूसरे की साइकिल को नुकसान पहुंचा दिया। यह बात फादर को पता चल गई और हमें पिंक कार्ड मिल गया(पिंक कार्ड गलत हरकतों के लिए मिलता था)।