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मोहम्मद अली जिन्ना ने लखनऊ से 15 अक्टूबर 1937 को वंदे मातरम् के विरुद्ध नारा बुलंद किया

नेहरू हुए सहमत...', पीएम मोदी ने सदन में कांग्रेस पर लगाया 'विश्वासघात' का आरोप

लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित विशेष चर्चा का आगाज़ करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रगीत को भारत की आत्मा और स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी प्रेरक शक्ति बताया। अपने विस्तृत संबोधन में उन्होंने कहा कि वंदे मातरम् सिर्फ सुरों में बंधा गीत नहीं, बल्कि वह ऊर्जा है जिसने गुलामी के अंधकार में भी देश को हिम्मत और एकता से भर दिया।प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि मैं सभी का आभार करता हूं कि हमने इस महत्वपूर्ण अवसर पर एक सामूहिक चर्चा का रास्ता चुना है। जिस मंत्र, जिस जयघोष ने देश के आजादी के आंदोलन को ऊर्जा, प्रेरणा दी थी, त्याग और तपस्या का मार्ग दिखाया था उस वंदे मातरम् का स्मरण करना हम सबका सौभाग्य है। हमारे लिए गर्व की बात है कि वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने के इस ऐतिहासिक अवसर के हम साक्षी बन रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर कहा, “यही वंदे मातरम् है जिसने 1947 में देश को आज़ादी दिलाई। स्वतंत्रता संग्राम का भावात्मक नेतृत्व इस वंदे मातरम् के जयघोष में था… यहां कोई पक्ष-प्रतिपक्ष नहीं है, हम सबके लिए यह रण स्वीकार करने का अवसर है, जिस वंदे मातरम् के कारण हमारे लोग आज़ादी का आंदोलन चला रहे थे उसी का परिणाम है कि आज हम सब यहां बैठे हैं।”

वंदे मातरम् ने देश को आजादी की ऊर्जा दी

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि वंदे मातरम् 150 की यह यात्रा अनेक पड़ावों से गुजरी है लेकिन वंदे मातरम् को जब 50 वर्ष हुए तब देश गुलामी में जीने के लिए मजबूर था और वंदे मातरम् के जब 100 साल हुए तब देश आपातकाल की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। जब वंदे मातरम् 100 साल का हुआ तब देशभक्ति के लिए जीने-मरने वाले लोगों को सलाखों के पीछे बंद कर दिया गया था। जिस वंदे मातरम् के गीत ने देश को आजादी की ऊर्जा दी थी उसके जब 100 साल हुए तो दुर्भाग्य से एक काला कालखंड हमारे इतिहास में उजागर हो गया। 150 वर्ष उस महान अध्याय को, उस गौरव को पुनर्स्थापित करने का अवसर है।

बंकिम चंद्र चटोपाध्याय ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि वंदे मातरम् की शुरुआत बंकिम चंद्र चटोपाध्याय ने 1875 में की थी, यह गीत उस समय लिखा गया था जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज सल्तनत बौखलाई हुई थी, भारत पर भांति-भांति के दबाव डाल रही थी, भांति-भांति के जुल्म कर रही थी। उस समय उनके राष्ट्र गीत को घर-घर तक पहुंचाने का षड्यंत्र चल रहा था, ऐसे समय में बंकिम चंद्र चटोपाध्याय ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया और उसमें से वंदे मातरम् का जन्म हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि बंकिम चंद्र चटोपाध्याय ने जब वंदे मातरम् की रचना की तो स्वभाविक ही वह स्वतंत्रता आंदोलन का स्वर बन गया, पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण वंदे मातरम् हर भारतीय का संकल्प बन गया। प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि अंग्रेजों ने बांटों और राज करो, इस रास्ते को चुना और उन्होंने बंगाल को इसकी प्रयोगशाला बनाया क्योंकि वो भी जानते थे कि वो एक वक्त था जब बंगाल का बौद्धिक सामर्थ्य देश को दिशा, ताकत, प्रेरणा देता था और इसलिए अंग्रेज भी जानते थे कि बंगाल का यह जो सामर्थ्य है वो पूरे देश की शक्ति का एक केंद्र बिंदु है और इसलिए अंग्रेजों ने सबसे पहले बंगाल के टुकड़े करने की दिशा में काम किया। अंग्रेजों का मानना था कि एक बार बंगाल टूट गया तो यह देश भी टूट जाएगा। 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया लेकिन जब अंग्रेजों ने 1905 में यह पाप किया तो वंदे मातरम् चट्टान की तरह खड़ा रहा। बंगाल की एकता के लिए वंदे मातरम् गली-गली का नाद बन गया था और वो ही नारा प्रेरणा देता था।

वंदे मातरम् हर जगह गूंज रहा

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि बंगाल का विभाजन तो हुआ लेकिन बहुत बड़ा स्वदेशी आंदोलन हुआ और तब वंदे मातरम् हर जगह गूंज रहा था। अंग्रेज समझ गए थे कि बंगाल की धरती से निकला बंकिम बाबू का यह भाव सूत्र जो उन्होंने तैयार किया था उसने अंग्रेजों को हिला दिया था। इस गीत की ताकत इतनी थी कि अंग्रेजों को इस गाने पर प्रतिबंध लगाने पर मजबूर होना पड़ा था। गाने और छापने पर ही नहीं वंदे मातरम् शब्द बोलने पर भी सज़ा, इतने कठोर कानून लागू किए थे।

ऐसा भाव-काव्य शायद दुनिया में कहीं उपलब्ध नहीं होगा

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि हम देशवासियों को गर्व होना चाहिए कि दुनिया के इतिहास में कहीं पर भी ऐसा कोई काव्य नहीं हो सकता, ऐसा कोई भाव गीत नहीं हो सकता जो सदियों तक एक लक्ष्य के लिए कोटि-कोटि जनों को प्रेरित करता हो। पूरे विश्व को पता होना चाहिए कि गुलामी के कालखंड में भी ऐसे लोग हमारे यहां पैदा होते थे जो इस प्रकार के भावगीत की रचना कर सकते थे, यह विश्व के लिए अजूबा है।

वंदे मातरम् के साथ विश्वासघात क्यों हुआ?

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि जो वंदे मातरम् 1905 में महात्मा गांधी को राष्ट्रगान के रूप में दिखता था। वंदे मातरम् इतना महान था, इसकी भावना इतनी महान थी तो फिर पिछली सदी में इसके साथ इतना बड़ा अन्याय क्यों हुआ? वंदे मातरम् के साथ विश्वासघात क्यों हुआ? वह कौनसी ताकत थी जिसकी इच्छा पूज्य बापू की भावना पर भारी पड़ गई जिसने वंदे मातरम् जैसी पवित्र भावना को विवादों में घसीट दिया।

जिन्ना ने वंदे मातरम का विरोध किया, नेहरू सहमत हो गए

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर कहा कि वंदे मातरम् के प्रति मुस्लिम लीग की विरोध की राजनीति तेज होती जा रही थी, मोहम्मद अली जिन्नाह ने लखनऊ से 15 अक्टूबर 1937 को वंदे मातरम् के विरुद्ध नारा बुलंद किया। फिर कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा, जवाहरलाल नेहरू ने मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों को करारा जवाब देने, निंदा करने की बजाय उल्टा वंदे मातरम् की पड़ताल शुरू कर दी। जिन्नाह के विरोध के 5 दिन बाद ही 20 अक्टूबर को जवाहरलाल नेहरू ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को चिट्ठी लिखी और जिन्नाह की भावना से सहमति जताते हुए लिखा कि वंदे मातरम् की आनंदमठ वाली पृष्ठभूमि मुसलमानों को भड़का सकती है। इसके बाद कांग्रेस का बयान आया कि 26 अक्टूबर को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक कोलकाता में होगी जिसमें वंदे मातरम् के उपयोग की समीक्षा की जाएगी। पूरे देश में इस प्रस्ताव के विरोध में लोगों ने प्रभात फेरियां निकाली लेकिन दुर्भाग्य से 26 अक्टूबर को कांग्रेस ने वंदे मातरम् पर समझौता कर लिया, वंदे मातरम् के टुकड़े कर दिए। उस फैसले के पीछे नकाब यह पहना गया कि यह सामाजिक सद्भाव का काम है लेकिन इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने मुस्लिम लीग के आगे घुटने टेक दिए।

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