
भारतीय रिजर्व बैंक को उम्मीद है कि सह-उधारी (को-लेंडिंग) पर बनाए गए दिशानिर्देश लागू होने के बाद डिजिटल ऋणदाताओं द्वारा ली जाने वाली ब्याज दर में कमी आएगी। इस मामले से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी दी। इस सप्ताह की शुरुआत में फिनटेक उद्योग के प्रतिनिधियों और रिजर्व बैंक के अधिकारियों की बैठक के दौरान यह संदेश दिया गया था। फिनटेक का प्रतिनिधित्व फिनटेक एसोसिएशन फॉर कंज्यूमर एंपावरमेंट (फेस), यूनिफाइड फिनटेक फोरम (यूएफएफ) और फिनटेक कनवर्जेंस काउंसिल (एफसीसी) के अधिकारियों ने किया। उद्योग से जुड़े एक सूत्र ने नाम सार्वजनिक न किए जाने की शर्त पर कहा, ‘इस पर चर्चा हुई कि नियामक ने को-लेंडिंग के दिशानिर्देशों का मसौदा जारी किया तो उसके बाद क्या कोई समस्या आई थी। हमने इस पर भी चर्चा की कि प्रत्येक मॉडल कैसे काम करेगा, जिसमें सीएलएम-2 (को-लेंडिंग मॉडल 2) और सीएलएम-1 शामिल हैं।’
बैंकिंग नियामक के को-लेंडिंग मानदंडों के मसौदे में कहा गया है कि इसमें हिस्सा ले रहे ऋणदाताओं द्वारी ली जा रही ब्याज दर के भार औसत की गणना की जाए और सबको मिलाकर ब्याज दर तय की जाए। इससे उधार लेने की लागत घट जाएगी। उम्मीद है कि नए नियमों के तहत किसी भी उधार लेने वाले के लिए अंतिम मिश्रित ब्याज दर वह होगी, जो कर्ज में शामिल हरेक ऋणदाता की हिस्सेदारी के अनुपात में होगी। पिछले साल अक्टूबर में चार गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर रिजर्व बैंक की कार्रवाई के बाद ये मानक सामने आए हैं। रिजर्व बैंक ने ज्यादा ब्याज लेने के कारण इन्हें कर्ज मंजूर करने व देने से रोक दिया था। बाद में यह प्रतिबंध हटा लिया गया।
रिजर्व बैंक की को-लेंडिंग व्यवस्था के अनुसार सीएलएम-1 में बैंक और एनबीएफसी (एनबीएफसी) एक साथ ऋण जारी करते और वितरित करते हैं। लेकिन सीएलएम-2 में एनबीएफसी ऋण जारी और वितरित कर सकते हैं। इसमें बैंक को बाद में ऋण राशि का 80 प्रतिशत तक चुकाना होता है।
सूत्र ने कहा कि दिशानिर्देशों के मसौदे पर प्रतिनिधियों की प्रतिक्रिया नियामक को भेज दी गई है, जिसका मूल्यांकन होना है। उन्होंने कहा, ‘प्रतिक्रिया में इस तरह के संकेत शामिल थे कि मानदंडों के साथ क्या चुनौतियां आ सकती हैं, मौजूदा पोर्टफोलियो का क्या होगा आदि।