संपादकीय

दुकानों के बोर्ड पर मालिक का नाम, क्या कहता है कानून

 

● रवि उपाध्याय

आजकल उत्तरप्रदेश सहित देश के कुछेक अन्य राज्यों में दुकानों के साइन बोर्ड या नामपट पर दूकान मालिक का नाम लिखे जाने के आदेश पर सियासी नेताओं एवं कुछेक सामाजिक एवं मज़हबी संगठनों द्वारा अनावश्यक घमासान मचाया हुआ है। इन संगठनों का आरोप है कि राज्य सरकारों विशेष तौर से योगी सरकार के इस आदेश से समाज में कथित रूप से विद्वेष को बढ़ावा मिलेगा। जबकि वास्तविकता यह है कि यह कोई नया आदेश या कानून नहीं है वास्तविकता यह है यह कानून देश के विभिन्न राज्यों में पिछले 66 सालों से दुकान एवं स्थापना कानून 1958 ( shop and establishment act 1958 ) के रूप में प्रचलित है।

इस कानून के अंतर्गत किसी भी राज्य में स्थापित होने वाले प्रत्येक वाणिज्यिक संस्थान, स्थापना और दुकान के लिए 1958 से देश में प्रचलित शॉप एन्ड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट 1958 के तहत पंजीयन कराया जाना अनिवार्य है। कानून के तहत संबंधित व्यक्ति द्वारा दुकान या अन्य व्यावसायिक स्थापना का वैध अनुज्ञप्ति यानि लायसेंस लिए बगैर ऐसी किसी गतिविधियों का संचालन किया जाता है तो वह गैर कानूनी और अपराध की श्रेणी में आता है । इस कृत्य के लिए जिम्मेदार व्यक्ति या संस्था और उसके मालिक, ओनर या प्रोपाइटर पर अर्थदंड या अथवा कारावास या दोनों से भी दण्डित किया जा सकता है।

इस कानून को गुमास्ता कानून के नाम से भी जाना जाता है। इस कानून के तहत दुकानों के बोर्ड पर पंजीयन क्रमांक, दुकान मालिक का नाम लिखा जाना अनिवार्य है। इसके साथ इस कानून द्वारा जारी किए जाने वाले लायसेंस को दुकान में इस तरह सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाना आवश्यक ताकि वह दुकान पर आने वाले ग्राहक को साफ -साफ नजर आए। शासन द्वारा जारी किए जाने वाले पंजीयन/ लायसेंस/अनुज्ञप्ति में दुकान मालिक का नाम, व्यवसाय का प्रकार, प्रबंधक का नाम उनका पूर्ण वैध पता, आधार नम्बर,फोन या मोबाइल नम्बर लायसेंस वैधता की अवधि का उल्लेख किया जाता है।

सामान्यतः जारी किए जाने वाले लायसेंस की वैधता एक वर्ष के लिए होती है। किंतु लायसेंस का नवीनीकरण अधिकतम दस वर्ष तक के लिए किए जाने की व्यवस्था है। यहां यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि जिस व्यवसाय के लिए गुमास्ता लायसेंस जारी किया गया है उस दुकान या स्थापना में उससे इतर कोई अन्य व्यवसाय किया जाता है तो वह अपराध की श्रेणी में आता है। अन्य व्यवसाय के लिए अलग गुमास्ता लायसेंस लेना होगा। इसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि यदि किसी व्यक्ति को दो पहिया (बिना गियर वाला) वाहन चलाने का लायसेंस मिला है तो वह गैर वाला अन्य दो पहिया वाहन या कार नहीं चला सकता। इसी प्रकार जिसे कार ड्राइविंग का लाइसेंस मिला है उस व्यक्ति को कोई अन्य हैवी वाहन ( ट्रक या यात्रीबस या मोटर ) चलाने की अनुमति नहीं होती।

यह गुमास्ता कानून देश के समस्त राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में समान रूप से लागू है। बड़े नगरों में इस कानून के अनुसार दुकानों एवं स्थापना के लिए लायसेंस देने के लिए नगर महापालिका, नगर निगमों को अधिकृत किया गया है। इस कानून के पालन कराने की जिम्मेवारी राज्य सरकार के श्रम विभाग को सौंपी गई है। श्रम विभाग पर यह जिम्मेदारी है कि वह दुकानों – स्थापनाओं में कार्यरत कर्मचारियों की नियुक्ति में श्रम कानून का पालन किया जा रहा है या नहीं। श्रम विभाग इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि कर्मचारियों को साप्ताहिक अवकाश मिलता है या नहीं, उनसे सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि आज से कोई 15 -20 वर्ष पहले तक बाजारों में दुकानों पर लगाए जाने वाले दुकानों के बोर्डों ( दूकान पटों )पर दुकान के नाम के साथ, उसके प्रोपाइटर का नाम, जिस स्थान पर दुकान मौजूद होती है उसका पूरा पता,फोन नम्बर का भी उल्लेख होता था। इससे उस शहर के बाहर से आने वाले व्यक्ति को उस गली मोहल्ले, सड़क के नाम का पता चलता था कि उस स्थान का नाम क्या है। परंतु अब दुकानों के बोर्ड से पता एवं मालिक का नाम नदारद हो गया है।

यह तो हुई 1958 से अस्तित्व में आए दुकान एवं स्थापना कानून की बात। इसके अलावा 2011 में कांग्रेस नीत यूपीए 2 की डॉ मनमोहन सिंह सरकार द्वारा फूड सेफ़्टी एन्ड स्टेंडर्ड कानून संसद में पारित किया गया। इस रूल्स में लाइसेंस की शर्तों पर नजर डालें तो खाने-पीने की दुकानों के लिए कम से कम 15 कड़ी शर्ते हैं. सबसे पहली शर्त है खाद्य प्रतिष्ठानों को अपने लाइसेंस की असली कॉपी दुकान में किसी ऐसी जगह लगाना अनिवार्य है, जो उपभोक्ता को नजर आए.
लाइसेंसिंग की शर्तों में यह भी कहा गया है कि अगर दुकानदार अपने प्रतिष्ठान में किसी भी तरह का बदलाव करता है तो भी उसे लाइसेंसिंग अथॉरिटी को उसकी जानकारी देनी होगी. जैसे- उसने लाइसेंस जिस नाम पर लिया है, अगर दुकान का नाम बदलकर कुछ और कर देता है तो इसकी जानकारी देनी होगी. इसके अलावा जो सामान बेचने के लिए लाइसेंस लिया है, उससे इतर कोई और सामान नहीं बेचेगा.प्रतिदिन प्रोडक्शन, रॉ मैटेरियल और सेल्स का रिकॉर्ड रखना होगा।

कैसे मिलता है दुकानों को लाइसेंस?
खाने-पीने की दुकानों या प्रतिष्ठानों (Food Shop and establishment) के लिए लाइसेंस जरूरी है. यह दो अथॉरिटी जारी करती हैं. पहला केंद्रीय और दूसरा स्टेट. ऐसे प्रतिष्ठान जो केंद्र सरकार के दायरे में आते हैं, उन्हें केंद्रीय एजेंसी लाइसेंस देती है. जबकि जो राज्य सरकारों के दायरे में आते हैं, उन्हें संबंधित राज्य सरकार (State Government) लाइसेंस जारी करती है. उदाहरण के तौर आईआरसीटीसी (जो ट्रेनों में खानपान की व्यवस्था देखती है) जैसे प्रतिष्ठानों को केंद्र सरकार लाइसेंस देती है. जबकि किसी एक राज्य में संचालित प्रतिष्ठान को संबंधित सरकार से लाइसेंस मिलता है.

अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां प्रत्येक जिले में सहायक खाद्य सहायक आयुक्त खाद्य (द्वितीय) या अभिहित अधिकारी होते हैं, जो खाद्य प्रतिष्ठानों को लाइसेंस जारी करते हैं.

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