
:वेब सीरीज पंचायत उन चुनिंदा सीरीज में से है, जिसके हर किरदार ने लोगों के मन में अपनी छाप छोड़ी है. ऐसा ही एक किरदार माधव का है, जिसे परदे पर अभिनेता बुल्लू कुमार ने जीवंत किया है. बिहार के रहने वाले बुल्लू कुमार आज छठ के मौके पर छठ से जुड़ी अपनी यादों को उर्मिला कोरी से सांझा की. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश
छठ का नाम लेते ही क्या याद आने लगता है ?
मेरे लिए छठ का मतलब नाटक होता था. मैं उससे जुड़ी ढेरों यादें हैं. मैं नवादा से हूं. वहीं से एक्टिंग की शुरुआत हुई थी.पहली बार में स्टेज फीयर में कुछ बोल ही नहीं पाए थे. बड़ी बेइज्जती हुई थी. दो तीन साल बैन हो गए थे. उसके बाद मस्का मारकर फिर मौका पाए.एक दोस्त नाटक कर रहा था तो उसको गाना भी गाना था. मुझे गाना आता था. मैंने उसको ट्रेनिंग देने लगा ,लेकिन वह सुर नहीं पकड़ पा रहा था. कुल मिलाकर उससे गाना नहीं हो पा रहा था. मैंने दिमाग लगाकर कहा कि हम तुम्हारे सहयोगी की तरह काम करेंगे. तुम एक्टिंग करना। हम गाना गाएंगे. उसकी वजह से दूसरा मौका मिला. इस बार अच्छा किया. उसके बाद स्टेज से लगाव ही हो गया. उसके बाद तो छठ पूजा के स्टेज शोज में मेरा गाने का कॉमेडी का कोई ना कोई कार्यक्रम होता ही था.
छठ के काम की जिम्मेदारी में आपके हिस्से क्या- क्या होता था ?
छठ पूजा से जुड़े कामों में भागीदारी की बात करूं तो छठ पर मिटटी का चूल्हा बनता है. उसे बनवाने के लिए मिटटी से लेकर हर चीज की जिम्मेदारी मेरी होती थी. घाट पर दौरा उठाकर लेना जाना भी मेरा ही जिम्मेदारी होती थी. नाटक भी करना होता था.दिन में काम किया और देर शाम के बाद नाटक, जो देर रात तक चलता था.जिससे शुरुआत में सुबह के अर्ध्य के समय उठने में बहुत दिक्कत भी होती थी,लेकिन समय के साथ दोनों को फिर बैलेंस करना सीखा.
छठी मईया से क्या अर्जी है ?
मैं बस छठी माई से आशीर्वाद लेकर ये कहना है कि सब खुश रहे और मस्त रहे.बचपन से ये बात जानता था कि जिंदगी कर्म प्रधान है. काम करेंगे तो चीजें मिलेंगी। वैसे घर में सबसे छोटा रहा हूँ तो मेरी मां शायद मेरे बदले अर्जी छठी मईया के सामने लगाती होगी तो मुझे जरूरत ही नहीं लगी
छठ से जुड़ी सबसे खास रस्म,जो आपके दिल के बेहद करीब है ?
सबसे खास इस पर्व को सूर्य देवता की मौजूदगी बनाती है.सुबह के अर्ध्य को सोचकर ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वह फीलिंग शब्दों में बयां करने वाली नहीं है. महसूस करने वाली बात है. जो लोग भी छठ में उगते हुए सूरज को जब अर्ध्य देते हैं. मेरी बात को समझ सकते हैं.सूर्य साक्षात देवता है. कोई कन्फ्यूजन और मिथ वाली बात नहीं है. किसी पौराणिक किताब या संदर्भ की जरूरत नहीं है.सूर्य की रौशनी से ही धरती चलती है.सूरज है तो जिंदगी और उसकी उपासना बिना किसी पंडित या मंत्र के. यह पर्व वाकई बहुत ज्यादा प्रेरणादायी है.
आस्था के पर्व को इस बार कैसे मना रहे हैं घर पर हैं या शूटिंग में ?
जब मैंने एक्टिंग शुरू की थी. उस वक़्त मैंने तय किया था कि अगर छठ पूजा में पॉपुलर फिल्मकार सुभाष घई की फिल्म भी ऑफर हुई तो मैं मना कर दूंगा,लेकिन समय के साथ समझ आया कि ऐसा नहीं होता है. पंचायत की शूटिंग के वक़्त ही पहली बार मैं छठ पर नहीं जा पाया था. बहुत दुःख हुआ था. इस बार पूरे परिवार के साथ अपने गांव में छठ मना रहा हूं. मेरी पत्नी छठ करती है.पिछले साल से ही उसने शुरू किया है.
युवाओं से क्या अपील करना चाहेंगे ?
युवाओं से यही कहूंगा कि ऊर्जा के साथ -साथ शान्ति से छठ पर्व मनाए. मजबूत बनें.खूब मेहनत करें. छठ पर घर और मोहल्ले की नहीं बल्कि विचार की भी अंदर से सफाई करें.वही इस त्यौहार की असल सीख है.