प्रत्येक शरीर के मनुष्य में 14 स्थानों पर होता है पूतना का निवास स्थान:पं०सुशील महाराज


धूमधाम से मनाई गई श्रीकृष्ण माखनलीला
श्री शिव मंदिर रुसली में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिवस आज पंडित सुशील महाराज ने श्रोताओं को पूतना वध की गूढ कथा श्रोताओं को सुनाई। उन्होंने श्रोताओं को बताया की पूतना अपने असली स्वरूप को छुपा कर और चतुर्दशी के दिन श्री कृष्ण का वध करने के लिए यशोदा के घर में गई थी । पूतना चतुर्दशी के दिन 14 स्थान पर निवास करने के बाद तब यशोदा मैया के घर में श्री कृष्ण का वध करने गई। पूतना की बातों में आकर यशोदा मैया ने अपने पुत्र को अंजान नारी को सौंप दिया था। यह यशोदा मैया की सबसे बड़ी भूल थी।अपने पुत्र को अनजान महिला को नहीं सौंपना चाहिए था अब सवाल यह उठता है की पूछना 14 उन कौन से स्थान पर निवास करके आई थी और चतुर्दशी के दिन ही क्यों आई थी। पंडित सुशील महाराज ने सभी श्रोताओं को एक गुण रहस्य उजागर करते हुए बताया की पूतना का असली निवास स्थान मनुष्य के शरीर में मौजूद रहता है ।और मनुष्य के शरीर में 14 ऐसे स्थान हैं जिन पर पूतना का साम्राज्य स्थापित रहता है। पांच ज्ञानेंद्रिय एवं पांच कर्मेंद्रियां एवं मन बुद्धि चित्त और अहंकार इन 14 स्थान पर पूतना का साम्राज्य स्थापित रहता है मनुष्य के शरीर में पटना इन 14 स्थान पर वास करती है। इसीलिए पूछना चतुर्दशी के दिन श्री कृष्ण भगवान का वध करने के लिए यशोदा के घर गई थी। नीति और धर्म के मना करने पर भी आंखें पराई स्त्री के पीछे भागे तो मन को की आंखों में पूतना बस गई है। पाप आंखों से घुसकर ही मनुष्य के शरीर में जाता है। आंखों में अगर पूतना का वास है तो काम आंखों के माध्यम से मन में घुस जाता है यदि आवश्यक पदार्थ खाने की तीव्र प्रबल इच्छा हो तो समझ लो कि आपकी जीभ में पूतना ने बास कर लिया है। अगर आपकी कान जो है विभक्ति कामुक बातों को सुनने के लिए प्रबल इच्छा रखने लगे । चाहत रखने लगे तो समझ लेना कि आपके कान में पूतना ने अपना निवास स्थान बना लिया है। मनुष्य के शरीर में सभी इंद्रियों में पूतना बसी हुई रहती है ।अगर आप सभी इंद्रियों के द्वार बंद कर लेंगे तो पूतना आपके इंद्रियों के अंदर प्रवेश नहीं कर पाएगी। मन बुद्धि चित्तऔर अहंकार इनमें मन बुद्धि और अहंकार इनका आत्मा रूपी राम के द्वारा बध करवा करवाकर और बुद्धि रूपी सीता का राम से मिलान करवादेवें। तब हृदय रूपी गोकुल में कन्हैया रूपी ईश्वर का साम्राज्य स्थापित होता है। और ईश्वर रूपी कन्हैया को हृदय में बसाने के लिए मनुष्य को अपने चरित्र को ईश्वर के ध्यान में समाविष्ट करना पड़ता है । आज की कथा में धूमधाम से माखन लीला का दृश्य श्रोताओं को दिखाया गया। तथा में यजमान श्याम पाराशर रमेश साहू प्रशांत कश्यप एवं कंचन पांडे ने कथा वाचक पंडित सुशील महाराज का हार फूल से स्वागत किया । एवं भागवत ग्रंन्थ की पूजा की गई । इस अवसर पर कथा समिति के संरक्षक श्री विजय सिंह मार्गदर्शक श्री श्याम सुंदर शर्मा जी मायाराम अटल संतोष जैन शुभम पांडे घनश्याम दास गुप्ता द्वारा भागवत ग्रंथ की आरती उतारी गई।अनूप पांडे द्वारा प्रसादी वितरण करवाया गया ।
(पं०सुशील महाराज)


