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वैज्ञानिक खोज में सफलता: MIT-WPU और क्राइस्ट कॉलेज के शोधकर्ताओं ने केरल में डैमसेल्फ्लाई की नई प्रजाति की खोज की

केरल/पुणे , 14 नवंबर। पुणे की एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी और केरल में स्थित क्राइस्ट कॉलेज के शोधकर्ताओं के साथ-साथ वैज्ञानिकों की एक टीम ने केरल के पश्चिमी घाट में डैमसेल्फ्लाई की नई प्रजाति की खोज की, जो विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता है। केरल के तिरुवनंतपुरम जिले के पेप्पारा वन्यजीव अभयारण्य के पास स्थित मंजादिनिनविला क्षेत्र में इस नई प्रजाति की खोज की गई, जिसे “अगस्त्यमलाई बैम्बूटेल (Agasthyamalai Bambootail)” नाम दिया गया है।
इस टीम के प्रमुख शोधकर्ता, विवेक चंद्रन ने बताया कि इस प्रजाति का वैज्ञानिक नाम ‘मेलानोन्यूरा अगस्त्यमलाइका’ (Melanoneura agasthyamalaica) है, जो पश्चिमी घाट के अगस्त्यमलाई क्षेत्र के सम्मान में रखा गया है, क्योंकि इसी इलाके में इसकी खोज की गई थी। शोधकर्ताओं की इस टीम में एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, पुणे की ओर से डॉ. पंकज कोपार्डे और अराजुश पायरा; सोसाइटी फॉर ओडोनेट स्टडीज की ओर से रेजी चंद्रन, तथा; क्राइस्ट कॉलेज (ऑटोनॉमस), इरिन्जालाकुडा, केरल की ओर से विवेक चंद्रन और डॉ. सुबीन के. जोस शामिल थे।
अगस्त्यमलाई बैम्बूटेल (Agasthyamalai Bambootail) और इस जीनस की एकमात्र ज्ञात प्रजाति, यानी मालाबार बैम्बूटेल (मेलानोन्यूरा बिलिनेटा) के बीच बेहद करीबी नाता है, जो कुर्ग-वायनाड क्षेत्र में पाई जाती है।
यह नई प्रजाति बैम्बूटेल समूह का हिस्सा है, जिसे बाँस के डंठल की तरह नज़र आने वाले अपने लंबे बेलनाकार पेट से पहचाना जाता है— और इसी खासियत की वजह से नई प्रजाति को यह नाम दिया गया है।
इससे पहले तक सिर्फ मालाबार बैम्बूटेल ही मेलानोन्यूरा (Melanoneura) जीनस की प्रजाति थी, लेकिन इस खोज के बाद अब इसकी दूसरी प्रजाति का पता चल गया है।
यह नई प्रजाति दिखने में बेहद आकर्षक होने के साथ-साथ इसके और मालाबार बम्बूटेल के बीच आनुवंशिक अंतर की वजह से भी बेहद खास है। दोनों प्रजातियों के माइटोकॉन्ड्रियल साइटोक्रोम ऑक्सीडेज-I (mitochondrial cytochrome oxidase-I) जीन में आनुवंशिक आधार पर 7% से ज़्यादा का अंतर पाया गया। अगस्त्यमलाई बैम्बूटेल (Agasthyamalai Bambootail) का शरीर लंबा एवं काले रंग का होता है जिस पर चमकीले नीले निशान दिखाई देते हैं। इसके प्रोथोरैक्स, एनल अपेन्डिज और सेकेंडरी जेनिटेलिया की संरचना मालाबार बैम्बूटेल से बिल्कुल अलग होती है।
अगस्त्यमलाई बैम्बूटेल (Agasthyamalai Bambootail) को पहली बार घरों के आंगनों से होकर करमना नदी में बहने वाली धाराओं में देखा गया था, जो आरक्षित वन क्षेत्र के बाहरी पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा है। पेप्पारा वन्यजीव अभयारण्य के निकट स्थित यह क्षेत्र आर्यनाद ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है, जो जैव विविधता के संरक्षण में संरक्षित क्षेत्रों के बाहरी पारिस्थितिक तंत्र की अहमियत पर बल देता है। मंजादिनिनविला के अलावा, यह प्रजाति अगस्त्यमलाई क्षेत्र के दोनों हिस्सों, यानी पोनमुडी हिल्स और बोनाकौड में भी पाई गई है।
केरल के क्राइस्ट कॉलेज के विवेक चंद्रन ने कहा, “इस खोज से यह जाहिर होता है कि पश्चिमी घाट में संरक्षण के लिए तुरंत प्रयास किए जाने की जरूरत है, जो बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट के रूप में पूरी दुनिया में जाना जाता है। नई प्रजाति का दायरा काफी सीमित है, और रिकॉर्ड से पता चलता है कि यह केवल अगस्त्यमलाई के आसपास के कुछ इलाकों में ही पाई जाती है। अगस्त्यमलाई बैम्बूटेल (Agasthyamalai Bambootail) के वजूद को बचाने के लिए इस प्रजाति और इसके आवास, दोनों की हिफाजत करना बेहद जरूरी है।”
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के डॉ. पंकज कोपार्डे ने कहा, “इन सब बातों के अलावा, इस खोज ने इस बात को भी उजागर किया है कि बायोडायवर्सिटी को बनाए रखने में नॉन-रिजर्व इकोसिस्टम टीवी बेहद अहम भूमिका होती है। संरक्षण की कोशिशों में आरक्षित वन क्षेत्र की सीमाओं के बाहर के क्षेत्रों को भी शामिल किया जाना चाहिए, जो ऐसी प्रजातियों के लिए मददगार है।”
MIT-WPU और क्राइस्ट कॉलेज के शोधकर्ताओं तथा वैज्ञानिकों की एक टीम ने साथ मिलकर यह खोज की है, जो शैक्षणिक संस्थानों द्वारा वैज्ञानिक खोज की दिशा में किया गया एक महत्वपूर्ण प्रयास है, साथ ही यह डैमसेल्फ्लाई जैसी प्रजातियों को सहारा देने और भारत के इकोसिस्टम में संतुलन बनाए रखने के लिहाज से भी जरूरी है।

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