
मुगल बादशाह शेरशाह सूरी ने शेखपुरा में 500 साल पहले एक कुआं खुदवाया था, जो आज दाल कुआं के नाम से प्रसिद्ध है. यह कुआं छठ व्रतियों के लिए बेहद खास बन गया है. आइए जानते है-
करीब पांच सौ साल पहले शेरशाह के द्वारा बनाए गए शेखपुरा का दाल कुआं छठ व्रत की मुख्य आस्था का केंद्र बन गया है. शासक के द्वारा बनाया गया दाल कुंआ का मीठा पानी छठ व्रत में खरना का प्रसाद बनाने के लिए इस्तेम्मल लिया जाता है. प्राकृतिक स्रोतों कि रक्षा, सामाजिक सौहार्द एवं मनोकामनाओं से जुड़ी इस छठ व्रत में दाल कुआं के मीठे पानी का अलग ही महत्व है. अमीर हो या गरीब सभी महिलाएं और पुरुष नंगे पांव घर से निकलकर कुआं तक पहुंचाते हैं और खरना का प्रसाद बनाने के लिए दाल कुआं का पानी भरा हुआ वर्तन अपने सर पर रख कर घर तक ले जाते हैं. इसके लिए खरना के दिन सुबह 5:00 बजे से ही बड़ी संख्या में पानी लेने के लिए छठवर्ती एवं उनके परिजन बड़ी संख्या में दाल कुआं के पास पहुंचते हैं.
500 साल पुरानी है दाल कुआं
जानकारों की माने तो करीब 500 साल पूर्व अफगान शासक शेरशाह शेखपुरा के रास्ते अपने सैनिकों के साथ गुजर रहे थे. इसी दरम्यान शहर में पहाड़ी की चोटी पर अपने सैनिकों के साथ उन्होंने विश्राम किया था. तभी सैनिकों के सहयोग से शेखपुरा शहर के दल्लू चौक से चांदनी चौक जाने वाली मुख्य सड़क निर्माण के लिए पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया था. इसके साथ ही उन्होंने खांडपर राम जानकी मंदिर के समीप दाल कुआं का भी निर्माण कराया था.
1534 में शेरशाह ने किया था दाल कुंआ का निर्माण
पहाड़ी इलाका होने के कारण यहां पेयजल की समस्या होती थी. ऐसी स्थिति में दाल कुआं में जब मीठा पानी निकला तब कोसों दूर इस पानी की मांग होने लगे. बुजुर्ग लखन महतो कहते हैं जमींदार अपने सुरक्षा कर्मियों के माध्यम से बैलगाड़ी पर दाल कुआं का पानी मंगवाने के लिए मीलों की यात्रा करते थे. 1903 में प्रकाशित मुंगेर गजेटियर में दाल कुएं के ऐतिहासिक महत्व का भी जिक्र है गजेटियर के मुताबिक 1534 में शेरशाह ने इस दाल कुएं का निर्माण करवाया था.


