श्री कल्याण मंदिर स्त्रोत महामण्डल सामूहिक विधान का हुआ आयोजन

मानव जीवन में संतोष ही सबसे बड़ा धन है- पं.अरविन्द शास्त्री।
41 जोड़ों ने समर्पित किये अर्घ
श्री 1008 भगवान् महावीर दिगम्बर जैन मंदिर साकेत नगर में दशलक्षण धर्म के अवसर पर उत्तम शौच धर्म पर बोलते हुए पं.अरविन्द जी शास्त्री ने कहा कि-“आत्मा की पवित्रता ही शौच धर्म है। बाह्य स्नान से केवल शरीर ही पवित्र हो सकता है। आत्मा की शुचिता के लिए लोभ का त्याग आवश्यक है। मनुष्य लोभ के कारण ही सभी पाप करता है। आवश्यकताएं तो फिर भी सीमित होती हैं, परन्तु इच्छाएं अनन्त होती हैं। आदमी का पेट तो भर सकता है, परन्तु पेटी कभी नहीं भर सकती। धन, सम्पत्ति और विषय भोगों का लोभी व्यक्ति कभी भी साधु बनकर धर्म साधना नहीं कर सकता, निर्लोभी ही उत्तम शौच धर्म का पालन कर सकता है। मानव जीवन में संतोष ही सबसे बड़ा धन है। हेमलता जैन ‘रचना’ ने बताया कि पं.अरविन्द जी शास्त्री के कुशल निर्देशन में संगीतमय “श्री कल्याण मंदिर स्त्रोत महामण्डल सामूहिक विधान” का आयोजन साकेत मंदिर जी में किया गया जिसमें लगभग 41 जोड़ों ने अर्घ समर्पित किये। विधान हेतु समुचित वयवस्था में मंदिर जी के पुजारी विनोद जैन, अंतिम जैन तथा माली सुभाष सैनी का विशेष योगदान रहा। मंदिर अध्यक्ष नरेंद्र बताया कि आज विधान के अवसर पर मंदिर जी परिसर स्थित भोजनशाला में दोनों समय निःशुल्क भोजन की व्यवस्था समिति की ओर से की गयी थी जिसके पुण्यार्जक बनने का सौभाग्य अशोक कुमार जैन रचना टॉवर एवं जीतेन्द्र नायक रेलवे परिवार को प्राप्त हुआ वहीं सम्पूर्ण भोजनशाला तथा सुनिश्चित पूर्ण सात्विक सुस्वादु भोजन की व्यवस्था बेहद शानदार तरीके से शरद नंदन जैन द्वारा संभाली जा रही है।
साँस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में भजन प्रतियोगिता आयोजित की गयी जिसमें ग्रुप A में अरायाना जैन, तोषी जैन, अनायषा जैन, ग्रुप B में श्रद्धान जैन, स्वरा जैन, नीरव जैन, ग्रुप C में प्रभुता जैन, निर्जरा जैन, अनव जैन, तथा ग्रुप D में अरु जैन, अंकिता जैन एवं डॉ महेन्द्र जैन, हेमलता जैन एवं मधु जैन ने क्रमशः प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान प्राप्त किया। मंच सञ्चालन डॉ. प्रज्ञा जैन ने किया। भक्ति भाव पूर्वक सांयकालीन आरती करने वाले श्रावकों को रोजाना समिति द्वारा पुरुस्कृत किया जा रहा है।