
छठ महापर्व पर भगवान भास्कर की पूजा की जाती है. अस्ताचलगामी और उदयाचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. बिहार में इस पर्व की अलग महत्ता है. यह लोगों की भावनाओं से जुड़ा है. बिहार के कोने-सोने में भगवान सूर्य की अलग-अलग प्रतिमा मौजूद हैं, जो हजारों वर्ष पुरानी है. इनके बारे में लोगों को मालूम भी नहीं. आईए, महाछठ के दौरान आपको हम उन 12 दुर्लभ प्रतिमाओं के दर्शन करवाते हैं, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को मालूम है
ईरानी वेशभूषा में बूट पहने भगवान सूर्यदेव की प्रतिमा कहीं देखी है. अगर नहीं देखी, तो आईए, छठ महापर्व पर हम आपको भगवान भास्कर के इस रूप का दर्शन करवाते हैं. इतना ही नहीं, ऐसी कुल 12 प्रतिमा की तस्वीरें हम आपके लिए लाये हैं, जिसके दर्शन कर पाना दुर्लभ है. प्रभात खबर के वरीय संवाददाता अनिकेत त्रिवेदी की पुरातत्ववेता व बुद्ध स्मृति पार्क संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ शिव कुमार मिश्र से खास बातचीत में महापर्व छठ और भगवान सूर्य से जुड़ी कई महत्वपूर्ण और ऐसी जानकारियां सामने आयीं हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को पता है.
हजारों वर्षों से जीवित है बिहार में सूर्य उपासना की परंपरा
बिहार की धरती पर सूर्य उपासना की परंपरा हजारों वर्षों से जीवित है. प्रामाणिक साक्ष्य बताते हैं कि यहां के लोग करीब ढाई हजार वर्ष पहले से सूर्य की की पूजा करते आ रहे हैं. विभिन्न पुरातात्विक स्थलों से प्राप्त प्रतिमाओं से यह स्पष्ट होता है कि सूर्य मूर्ति पूजा की सबसे प्राचीन झलक शुंग काल में दिखाई देती है. उस काल की एक दुर्लभ प्रतिमा बोधगया संग्रहालय में सुरक्षित है. इसके बाद गया के ही तपोवन से मिली कुषाण कालीन सूर्य प्रतिमा, जो लगभग दो हजार वर्ष पुरानी मानी जाती है, इस परंपरा की निरंतरता का साक्ष्य देती है. इस प्रतिमा में सूर्य बूट पहने हैं और वेशभूषा में ईरान की झलक मिलती है.
बिहार की धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना में रची-बसी है सूर्य उपासना
इसी क्रम में सुल्तानगंज के मुरली पहाड़ से प्राप्त गुप्त कालीन प्रतिमाएं, कैमूर के मुंडेश्वरी मंदिर में स्थापित सूर्य मूर्ति, भोजपुर के तरारी से मिली मूर्तियां और नवादा की रूद्र भास्कर प्रतिमा ये सभी इस बात के प्रमाण हैं कि सूर्य उपासना बिहार की धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना में कितनी गहराई से रची-बसी रही है. प्रभात खबर में पहली बार पढ़िये 12 दुर्लभ सूर्य प्रतिमाओं का ऐतिहासिक साक्ष्य.
