खबरमध्य प्रदेश

धम्मचक्क प्रवतन सुत्त के आधारभूत सिद्धांतों ने संसार को बौद्ध सभ्यता और संस्कृति के प्रसार की प्रेरणा दी -बौद्ध धम्मगुरु भंते शाक्यपुत्र सागर

भोपाल। दि बुद्धभूमि धम्मदूत संघ के द्वारा होटल रॉयल विला,महाराणा प्रताप नगर जोन 2 में डॉ बी आर अंबेडकर के द्वारा  मंगलवार को बौद्ध धम्म दीक्षा की 68वीं धम्मचक्र अनुप्रवर्तन से दिवस पर सेमिनार का आयोजन किया गया. 68वीं धम्मचक्र अनुप्रवर्तन से दिवस की सुरुवात तथागत भगवान बुद्ध और डॉ बी आर अंबेडकर की प्रतिमा के आगे भंते शाक्यपुत्र सागर थेरों,  आर.आर. गंगवारकर, आईएएस (सेवानिवृत्त), श्री सभाजित यादव आईएएस (सेवानिवृत्त) श्री कैलाश मानेकर,जीएम – जिला व्यापार एवं औद्योगिक केंद्र, भोपाल एवं मंडीदीप, श्री एम.डब्लू. अंसारी, आईपीएस,पूर्व डी.जी.छत्तीसगढ़ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर बौद्ध गुरु भंते शाक्यपुत्र सागर ने उपस्थित अनुयायियों को त्रिशरण पंचशील प्रदान किया.
इस अवसर पर बुद्धभूमि महाविहार उपासक संघ और मैत्रीय बुद्ध महाविहार उपासिका संघ के पधादीकारींओ ने अतिथियों को शाल और बुके देकर स्वागत किया.
सेमिनार के विशिष्ट अतिथि किशन सूर्यवंशी अध्यक्ष नगर निगम भोपाल ने कहा कि सेमिनार के विशिष्ट अतिथि  सभाजित यादव आईएएस (सेवानिवृत्त) ने कहा बौद्ध धर्म एक सामाजिक ,पूर्णता इहलौकिक और स्पष्ट विचारधारा हैं जिसनें सारा बल मानवीय विवेक की स्वतंत्रता पर दिया गया हैं जो अलौंकिक अथवा परा-प्राकृतिक के हस्तक्षेप से न केवल मुक्त हैं बल्कि उसके अस्तित्व को ही नहीं मानती. सेमिनार के विशिष्ट अतिथि श्री कैलाश मानेकर,जीएम – जिला व्यापार एवं औद्योगिक केंद्र, भोपाल एवं मंडीदीप ने कहा कि बौद्ध धर्म का उद्देश जातीविहीन, शोषणविहीन समाज की स्थापना करना है। सेमिनार के मुख्य अतिथि वरिष्ठ बौद्ध धम्मगुरु भंते शाक्यपुत्र सागर थेरो ने कहा भगवान बुद्ध वाराणसी के मिगदाय वन में पहुंचे और वहां उन्होंने अपने पाँच साथियों को सच्चाई के साम्राज्य ‘धम्मचक्क पवत्तन सुत्त’ की देशना करके बौद्ध धम्म की नींव रखी।यह सुत्त अद्वितीय अमरत्व की स्थापना करता है। तथागत द्वारा स्थापित धम्म-चक्क-पवतन-सुत्त के आधारभूत सिद्धांतों ने संसार को बौद्ध सभ्यता और संस्कृति के प्रसार की प्रेरणा दी ताकि सारी मानवता लाभ उठा सके।और इसलिए बौद्ध धर्म बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय धर्म है जिसका जन्म ही मनुष्य की मनुष्यता की रक्षा के लिए हुआ है। इसलिए मानव मुक्ति का एक ही राजमार्ग है- बौद्ध धर्म की शरण में जाना। बाबा साहब इसी विश्वास से बौद्ध धर्म में गए थे। इस अवसर पर श्री एम.डब्लू. अंसारी, आईपीएस,पूर्व डी.जी.छत्तीसगढ़ ने कहा कि बुद्धिज्म वैचारिक और वैज्ञानिक फिलोसोफी का मिश्रण है। यह वैज्ञानिक पद्धति को इस हद तक प्रधानता देता है कि इसे बुद्धीवाद कहा जा सकता है। सेमिनार की अध्यक्षता उद्धबोधन में आर.आर. गंगवारकर, आईएएस (सेवानिवृत्त) ने कहा की 14 अक्तूबर 1956 को नागपूर में धम्मदीक्षा समारोह ना भूतों ना भविष्यति ऐसी एतिहासिक धर्म क्रांति थीं. इस अवसर पर भंते संघशील, भंते रहुलपुत्र , डॉ मेजर मनोज राजे,बी डी अहिरवार,राजेश बंधेवाल,डॉ प्रवीन रंगारे, राजेंद्र प्रसाद, डॉ राज सुर्यवंसी, मेजर प्रभाकर सिंह,डी एस दोहर,डॉ सोमित्रा बाथम,सुनील अहिरवार,डॉ पुनीत किरार, डॉ यश किरार,डॉ राज सुर्यवंसी,एच एल चौधरी,चंद्रप्रकाश गोलाइत,ख़ुशाल सोमकुंवर, चन्द्रभान वासनिक, हीरामनी चौधरी,वंदना मुल्ताईकर,सुशीला गजभिये,उमेश भीमठे,रामेश्वर गजभिये,प्रदीप रामटेके, सुनीता शेज़वाल, शोभा लोखंडे, पदमा सिरसाठ, सुशीला तागड़े,वैशाली मनहर,सेमिनार में समाज के आईएएस, आईपीएस ,प्रोफ़ेसर, डॉक्टर, इंजीनियर, उद्योगपति,मेजर,अधिकारी और वरिष्ठ समाजसेवीं विभिन्न बुद्धिजीवी लोग विशेष रूप से उपस्थित थे.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button